पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४०५

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मातृकान्यास-मतिकायन्त्र यंका करतल पृष्ठाभ्यां फट । इस प्रकार करन्यास फर-1 मूलमें रं, स्कन्धौ लं, वाहुमूलमें वं, हृदादि दक्षिणहस्तमें के पोछे अ के ५ आं हृदयाय नमः, इत्यादि प्रकारसे शं, हृदादि यामहस्तमें पं, हृदादि दक्षिणपादमें सं, हृदादि अंड्न्यास करे। वामपादमें हं, हृदादि उदर में लं, हृदादि मुखमें क्ष। इस

"अ आ मध्ये कवर्गन्तु ५६ मध्ये च वर्गकम् । प्रकार सब वीके अन्तमें नमः शब्दका उच्चारण करके ।

• • उॐ मध्ये स्वर्ग न्तु ए ऐ मध्ये तवर्गकम् ॥ न्यास करे। ओं औं मध्ये पवर्गन्तु विन्दुयुक्त न्यसेत् प्रिय । न्यासमें अंगुलिनियम- अनुहारविसर्गान्तर्यशवगौ सलक्षको । "लमाटेनामिका मध्ये विन्यसेन्मुखपद्धजे । दृदयञ्च शिरोदेयि ! शिखा कवचकं तया | तर्जनी मध्यमाऽनामा वृद्धाऽनामे च नेत्रयोः ॥ मेममन्त्र न्यसेत् देऽन्तं नमः क्रमेयातु ।। अंगुष्टं कर्णयोन्यस्य कनिष्ठागुन्ठको नसोः । वषट् हुँ योपड़न्तञ्च फड़न्त' याजयेत् प्रिये ॥" मध्यास्तिस्रोगपडयोश्च मध्यमाञ्चोष्ठयोर्नसेत् ॥ (ज्ञानार्णव) अनामा दन्ययोय॑स्य मध्यमामुत्तमागके। अन्तमातृकान्यास-विन्दुयुक्त अकारादि पोइश स्वर, मुखेऽनामा मध्यमाञ्च हस्तपादे च पार्श्वयोः ॥ कण्ठमूलस्थित पोडशदल कमलमें ; विन्दुयुक्त ककारादि कनिष्ठाऽनामिकामध्यतास्तु पृष्ट च विन्यसेत् । द्वादशवर्ण सविन्दु द्वादशदल हत्पार्म ; सविन्दु कारादि । ता: वांगुष्ठा नाभिदेशे सर्वाः कुक्षौ च विन्यसेत् ।। दश वर्ण, नामिस्थित दशदल पद्म में, यकारादि पड़वर्णको हृदये च ततं सर्व असयोश्च ककुस्थले। विन्दु-संयुक्त करके लिङ्गमूलमे पड़दल कमलमें ; विन्दु. हृत्पूर्व हस्तपत्कुतिमुखेषु तालमेव च ॥" युक्त यकारादि चार वर्ण, मूलाधारमें चतुर्दल पद्ममें दानामिका और मध्यमाको एकत्र कर ललाट, तजनी' न्यास करें। ह क्ष इन दोनों में विन्दु लगा कर भू मध्यस्थ | मध्यमा और अनामिकाको निला कर मुख, वृद्धा और द्विदल पद्ममें न्यास करना होगा। अनामाको मिला कर दोनों आँख, मंगुष्ठसे दोनों कान , पाह्यमातुकान्यास- कनिष्ठा और अंगुष्ठको मिला कर दोनों नाक, मध्यको “पञ्चाशल्लिपिभियिमनमुखदोपन्मध्यः वक्षःस्थला, तोन उँगलियोंसे दोनों कपोल, मध्यमासे दोनों ओष्ठ, भास्थन्मौलिनिवद्धचन्द्रमकन्नामापीनगुद्गसनीम् । अनामिकासे दांतोंको दोनों पंक्ति, मध्यमासे मस्तक, मुद्रामदगुण मुधायकनस विद्याश्च स्तम्बुजे. अनामिका और मध्यमाको एकत्र कर मुख, कनिष्टा, . विभ्राग्यां विगप्रभा त्रिनयना यागदेवतामाश्रये ॥" अनामिका और मध्याको एकल कर हस्त, पाद, पाय, . इस प्रकार ध्यान करके न्यास करे। गीतमीय तन्त्र तथा मध्यमाको सम्बद्ध कर नाभिदेश और कुतिस्पर्श लिया है, ललाटमें अनमः, मुम्ब गृत्तमें आं नमः, दोनों करे। हृदय, दोनों अ'स, ककुद, हृदयके पूर्वभागसे ले चक्ष में दोनों कानमें ऊ, दोनों नाफमैं घर', कर हस्त, पाद, कुक्षि, मुख, इन्हें हस्ततल द्वारा स्पर्श दोनों गएडमें लालू, ओष्टमें ए', अधर में ऐं, ऊर्ध्वदन्त करके न्यास करना होगा। " में यो: अधोदन्तमें औं, ब्रह्मरन्ध्रमे य', मुखमे अ, दक्षिण | विशुद्ध श्वरतन्त्रमे लिखा है-यासिद्धि के लिये . वाहमल में कफीर में खं, मणिबन्धमें गं, अंगुलिके मूलमें। वाग्भवाद्या, श्रीद्धिके लिये रमाथा, सर्वसिद्धिके लिये घ, अंगुलिके अप्रभागमें डं, इसी प्रकार चकारादि पञ्च, हल्लेखाचा, लोक-वशीकरणके लिये कामाद्या, इस प्रकार .. वर्णको चामवाहु, दामूल, वाइसन्धि और सन्धिकै अग्र धोकराठादि न्यास करनेमे सभी मन्न प्रसन्न होते हैं। भागहें, 2 आदि,पशवर्णको दक्षिणपादमूलमें, पादसन्धि __! (तेन्त्रसार) और पादाप्रमें पञ्चवर्णको यामपाद, पादमूल, पादसन्धि मातृकामय (स० वि०) सोलह मातृकाका योजमन्नयुक्त। और वामपादान, दक्षिण पार्श्वमें पं, वामपार्च में फं, मातृकायन्त ( स० श्लो० ) तान्त्रिकोंके अनुसार एक पृष्ठमै यं, नाभिमें में, जठरमें में, हृदयमें यं, दक्षिण वाहु-। यन्त्र । - - - : : - , : .. Hol. XVII, 91