पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४२१

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पाधवसरस्वती-पाधवसिंह ३७५ हाथ धुलानेके लिये जल ला दिया था। अलावा इसके लिए उन युगल किशोरके प्रेम में मैंने लन्ना, धम, मान,

शोलक्लिए माधवको अपना शीतवस्त्र दान, उनको ले कर | धन, आत्मजन, यहां तक कि अपने प्राणको भी न्योछा-
गोपालको फुलवारीमें कटहलकी चोरो उसके साथ जग- वर कर दिया है।

न्नाथदेयकी वृन्दावन याता आदि बहुत-सी अलौकिक ! दीवानने यह संवाद राजा माधवसिंहके पास कहला घटनाएं सुनी जाती हैं । वृन्दावन में उन्होंने बिहारोजी भेजा। माधयसिंहने दीवानके पत्रका मर्म पुत्र प्रेम भुने हुए चनेको भोग दे कर परितुष्ट किया था। सिंहको कह सुनाया। पुत्र भी माताके समान कृष्ण . घन्दावनसे नीलाचल लौटने समय वे अपने तीन । भक्त थे। उन्होंने पितासे कहा, 'मैंने श्रेष्ठ कृष्णपद शिष्योंके अभीष्ट पूर्ण कर माताके दर्शनके लिये पूर्व प्राप्त किया है । माताको इस भगवद्भक्तिसे ही हम . आश्रम गये। बाद उसके वहांसे चे पुण्यमय पुरीधाममें लोगोंके तीन कुलीका उद्धार हुआ है ।' पुत्रके इस वचनसे पधारे। जगरनाथजोके साथ उनको मित्रता हो गई थी। उन्हें बहुत गुस्सा आया। उसो गुस्से में आ कर उन्होंने (भक्तमान ) | पुलकी घोर निन्दा की और रानीका शिर काट डालनेका माधवसरस्वती-१ पद्यावलोधृत एक कवि । २ न्यायचूडा. टुपम दे दिया। इससे पिता-दुलमें लड़ाईकी नीयत मा 'मणि नामक येदान्त अन्धके प्रणेता। आप चएडीश्वरके। गई। अनन्तर लोगों के समझानेसे दोनों में मेल हो गया। • गुरु तथा विश्वेश्वरके शिष्य थे। ३ पदचन्द्रिका नामको | राजा रानीको दण्ड देनेके लिये अति शीघ्र घरको योगवाशिष्ठ टीकाके रचयिता। लौटे। मंतीको सलाहसे स्रो-हत्या न कर रानीको माधवसिंह-जयपुरके एक राजा । ये महाराज मानसिहके। वायके मुखमें फेंक देना ही स्थिर हुआ। अंतमें राजाकी

छोटे भाई.थे। . उनको पटरानी कृष्णभक्ति परायणा) पशुशालासे एक बाघ ला कर रानीके घरमें, छोड़ दिया

थीं। जय माधयसिंह अपने ज्येष्ठ भ्राता मानसिंहके | गया। साथ कावुल गये तय दोवान हो राजप्रतिनिधिरूपमें रानो उस समय कृष्णकी पूजामें लीन थी। बाघको राजकार्य चलाता था । इसी समय एक दिन रानी। इतना साहस न हुआ, कि यह कृष्णभक्तके प्रति अन्याय पलंग पर सोयी थी, दासी उनका पांच दबाते दवाते । अत्याचार करे। और तो क्या, यह भी नन्न हो कर कृष्णविषयक प्रेमगीत प्रफुल्ल चित्तसे गाने लगी । इस | रानीके पैर नाटने लगा। बाघको पासमें देख रानीने अपूर्व गानके सुनते ही रानीका हृदय पिघल गया। उसे पकड़ लिया तथा कृष्णका नाम लेनेके लिये पार उसी दिनसे उन्होंने कृष्णका प्रेमधन पानेको प्रत्याशासे | वार कहने लगी। इस पर वाघ भी पुलकित हृदयसे आत्मजीवन उत्सर्ग कर दिया। . अपनो छ हिलाने लगा। .

विषयवासना और भोगविलासको छोड़ उन्होंने कृष्ण भक्तिका,ऐसा माहात्म्य देख राजा डर गये। वे कुटुम्ब

की सेवामें मन:प्राण समपंन किया । घे घरमेंके चिनको परिवार और मित्रको साथ ले कर रानोके पास आये देखकर ही कृष्णके साथका सुख गनुभव करती थी। और क्षमाके लिये प्रार्थना करने लगे। एक दिन जब राजा वैष्णव सेपासे कृष्णमे प्रेम होगा, ऐसा विचार कर उन्होंने माधयसिंह और मानसिंह नदीके किनारे घूम रहे थे पैष्णवसेवा आरम्भ कर दी। वैष्णवगण उनको आइासे, उस समय भो रानोके अलौकिक प्रभावका स्मरण कर हमेशा राज-मन्तःपुरमें आने जाने लगे। ये अपने ही हाथों . उन्होंने प्रवल तूफानसे रक्षा पाई थी। से माला और चन्दन देकर वैष्णयकी सेवा किया करतो माधवसिंह- फोटाराजवंशके प्रतिष्ठाता। ये दीके हर थीं। रानोको इस प्रकार पारहित देख कर दोबान आंग राजवंशीय राजा राय रतसिंहके मध्यम पुत्र थे। सम्राट बयूले हो गये और इसका परहेज करनेको उनसे कहा ।। शाहजहांको अमलदारीमें बुर्हानपुरकी लड़ाई में बड़ी वीरता - उत्तरमें रानीने कहला भेजा, कि धोकृष्णके चरणों में मैंने दिम्वा कर माधयने फतह पाई थी । मम्राट्ने उनके , पर्दाके साथ यह क्षणभंगुर शरीर समर्पण किया है। इम | कृतकार्यके पुरस्कारस्वरूप उन्हें कोटाप्रदेश और उसके