माधुर्ग-माध्यन्दिनीयक -
.
गाविम्याघरमाधुरीति शिपया सोऽपि चेन्मानम । माधृक (सं० पु०) वर्णसहर जातिविशेर। इस जातिके:
नस्या लासमाविहन्तविरमाधिः कथं पड़ते ॥" लोग मधुर मन्दोंमें लोगोंको प्रशंसा करते हैं इसीसे ऐ
(गीतगो०३ सर्ग)| माला। गोमा
माधूक कहलाते हैं। मनुष्यों को सदा प्रशंसा फरणा
माधुर्य (म मो० ) मधुरस्य भावः मधुर-( वयंदादिम्पः इनकी गृत्ति है।
प्य च पा ५॥१॥१२३) इति प्यम्। १ मधुर होनेका "मैयफन्तु येदेहो माधूक सम्प्रसयते।
माय, मधुरना। २ लावण्य, सुन्दरता।
नन् प्रशंपत्यज्यजस यो पपटाताडोऽरयोदये ॥"
"शिमल्यनिर्वाच्य तनोर्माधुर्य मुच्यते।"
- (मनु १०३ ।
(उज्यसनीनमणि) कुछ लोग इन्हें यन्दी भी कहते हैं। ये मा.
शरीर किसी अनियंचनीय रूपविशेषका नाम | घंटा यजा कर राजाओं को अजस्र प्रशंसा करने
माधुर्य । २ पाञ्चालीरोतिविशिष्ट काव्यगुण । साहित्य | उनकी नोंद टूट जाती है।
दर्पणमें लिखा है कि जिस रचनामें चित्त द्रयीभूत होता माधूकर (सं०नि०) मधुमक्खियोंके जैसा .
और अत्यन्त प्रसन्नता आती है उसे माधुर्य फहते हैं। पाला।
या गम्भोग, फरण, विप्रलम्भ और शान्त रसमें ही माधूची ( स० स्त्री०) मधुम्राह्मणपूनम .
साधिक होता है। इसमें अत्ति या अल्पवृत्ति तथा वा देवप्रीतये मधुमाध्वीभ्यां मधुमा
इसकी रचना मधुर होगी। इस रचनामें गन्त्यवर्ण,
(शा
युनायर्ण तशा ट, ठ, इ और द आदि यों का प्रयोग माधूचीभ्यां मधुम्राहाणमश्चयतः ...... .."
दोषायद है।
ताभ्यां मध्यगम्यामिति प्राप्त डोपि
“चित्तद्रवीभायमाहलादीमाधुर्य गुच्यते ।
मिति लिङ्गव्यत्यः आदिदीघश्यान्न
मम्भोग करुगे विप्रतम्भे शान्तेऽधिक क्रमात् । माधूल (स० पु० ) मधूल गोलाप
गर्दिन यान्त्वपणन युक्ताष्टठ-द-दान यिना । माधो (हि.पु०) १ श्रीकृष्णा
रगी न मायक्ती वा फारगातां गताः ॥ माधौ (हि० पु० ) गाय देखो।
निपनियां मधुरा रचना तगा।'
माध्यन्दिन (सं०नि०) मध्ये
(साहित्यदर्पण ८ परि०) | ठम्। पा ४१३६० ) इत्म
...
३ नायिकोंका भयाज अलङ्कार विशेष। मध्यं दिनण् चास्मात्
"सोमेरप्यनुऐगा माधुर्य परिकोनितम् ।" मध्य माग, दोपहर 1,
(गाहित्यदर्पण ३११२६) माध्यन्दिनशाखा ( स
..."
सोमकालमें भी जो चित्तका अनुढेग रहता है, उसे माना।
माधुय याहते हैं। ४ साविक नायक गुणमेद, विना | माध्यन्दिनायन (म :
किसी कारण शृङ्गार आदिक ही नायकका सुन्दर शान | पत्य । ..
परगा। ५ याफ्यमें पफसे अधिक अर्याका होना, माध्यन्दिनि (मा
याश्पका लेप।
एक चैयाकरण
"या पादनाशाय बन्गा प्रकीत्यते।" माध्यन्दिनी (
मिटा मिठास।
माधुर्य प्रभाग ( म० पु० ) गाने पर प्रकार, यह गाना माध्यग्दिनीय
जिसमें माधुका अधिक ध्यान रगा जाप भार उसके म्योप।। .
शुज रूपपं. दिगइनकी पाया ग को सांप। -
HMMM..
Pxii.
.
नाम ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४३२
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
