पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४३६

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१८४ पाध्याहिक-पाधनामण . फिसी यन्तुको सप ऊपरसे नीचे गिराते हैं, तब यह, माध्यमाह्मण-दाक्षिणात्यो एक पीके माह्मण ।। प्रथम मुहत्तम जहां तक जाती है, दुमरे मुहर्नमें उससे मध्यावार्यके मतावलम्वी ग्राह्मण माध्यमायण या पैष्णय भी दूर चली जाती है। इस प्रकार तीय और चतुर्थ कहलाने हैं। इस णोके ब्राह्मण भठार योर्कोम मुहर्नमें उसका पंग और भी बढ़ता ही जाता है। विभक है । वम्यां प्रदेशमें धारपार जिलेके प्रायः समो इसका कारण यह है कि जार फेकी गई यस्तु पतन बड़े बड़े शहरों और मार्मोमें इस श्रेणोके ग्राहाणोंका काल में जितना हो गीचे उतरेगी, उतनी ही उसको भार थास है। समाज में इनका यथेट सम्मान गोर प्रतिपति पंणी-क्ति भी बढ़ती ज्ञापगी। माफर्पणी शक्तिको देखी जाती है। इनमें से परे हजारों वर्गले एक दो . म विशेषताफे कारण घड़ीफे दोलक ( Pendulum). स्थानमें पंशपरम्परासे यास फरसे भा रहे हैं। . . की गतिका पार्थपय निरूपित हुमा है। इस धणीके ग्रामण कभी भी अपने हाथ से दल मंदों उपरोक्त घोसे साफ साफ प्रमाणित होता है, कि यस्तुमात्र दो पफ पेन्द्रातिग-आकर्षण प्रभावसे एक " चलाते । सरकारी नौकरी, व्ययसाय, याजकता अथया दूसरे के साथ नियद्ध है। जागतिक सभी पदार्थ जिस भूम्याधिकारिताफा भयलम्बन कर अपनी जीविका प्रकार भूपेन्द्रकी और एक सरल रेखा पर आकर्षित होते निर्याह करते हैं। फणारी उनकी मां मापा है। फिर किसी फिसी थोकफे लोग मराठों अधया मराठी मिश्रित है, उसी प्रकार ये भी अपनी अपनी फैन्द्राभिमुखी आफ- गो-शक्तिसे भूरेन्द्रकी गोर भारष्ट होते हैं। .. फणाड़ी भाषा भो योलचाल करते हैं। पुरयों के नाम - इस प्रकार नक्षत्रादि गतिका लक्ष्य पर बैज्ञानिकोंने पहले देय और जियोफ नाम पहले देयी अधया नदी स्थिर किया है, कि प्रत्येक प्रह अपनी अपनी. रोक याचक शयका प्रयोग रहता है। उनके उपास्य देयता है व्यवधानानुसार सूर्य केन्द्रकी भोर आकर्षित होता है। मङ्गलरफे अन्तर्गत उदंपोफे कृष्णं, मान्द्राजके अन्तर्गत हम लोग देखते है कि इसी एक नियम और शापितयशसे! अहोयले, निजामराज्यके अन्तर्गत फाफे नृसिंद, श्रीर- उपप्रम-मएइली भी अपने अपने काम पर घमती है। सर पत्तन रहनाथ, तिमतिफे येपूररमण धार पएदरपुरके विठोया आइजक न्युरन जागतिक दोनों यस्तुको परस्पर माक- " .. ..." पंणमपितफा निरूपण कर जनसाधारणमें जिस नियमः इनके अठारही धोको मापसमें गान-पान चलता फोलिपियर कर गये, पत्तमान युगमे पद मिन्न है। सगोत यिया प्रचलित नहीं है। जी-पुरुष दोनों ही मिन्न शानिकसे भिन्न भिन्न रूपमें प्रतिपादित होने देखने सुन्दर और बलिष्ठ होते हैं। पर भी जनसाधारणने उसीको सत्य समझ कर प्रण ये लोग ललारमें धीमुद्रा मण्या मातीप चित्र धारण कर लिया। करते है जिससे राई सदनमें पदयाना जाता है। पिया माध्यामिक ( नि.) मध्याकाल सम्बन्धीप, टोक दिता खियां मांग सिन्दूर पहनती तथा धिया कपाल मध्याह साय किया जानेयाला कार्य। पर छोरीसीधीमुद्रो गौर फगरेमा गडित करती हैं। माध्य ( सं० पु.) १ मध्यातायफे मतायलम्बोमार, इन लोगों पुरोदित अपरिमितमोगी है. किन्तु दिन- पैष्णयोंफे चार मुगप सम्प्रदायमिंसे एक जो मध्यावार्य रातमे सि एक ही नाम पाते हैं । सगुन और पास का चलाया दुभा है। इस मायाले पा लगा पाता। उत्सयादिम गिराड़ी भादि गुल. भौर प्रति य कांफिन होते पने . . . मी घ्यहार होता है। ये लोग पर - मनायारी, माया ". २ मध्याचायंका निप-मम्मदाय . माएको सराय) . ट भी दी। उस . . सुगन्धित पो. हरने है। गुम