पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

माध्यादिक-माध्यमाह्मण i. किसी यम्नुको जर ऊपर से नीचे गिराते हैं, तब पद . माध्वग्राह्मण-दाक्षिणास्पफे एक अंगोफे प्राहाण । प्रथम मुहम जादा तक जाती है, दूसरे मुहर्नमें उससे मध्यानार्य मतावलम्बी मालण माध्यमालण यायलय भो दूर चली जाती है। इस प्रकार नृतीय और चतुर्थ कहलाते हैं। इस Jणीके ग्राहा मा पोको मुहमें उस! येग और भी बढ़ता ही जाता है। बिमक है। वम्यां प्रदेशमें धारवार जिले के प्रायः रामी . इम कारण यह है कि ऊपर फेफी गई पस्तु पतन बड़े बड़े शहरों और ग्रामोन इस श्रेणोके प्रालीका काल में जितना हो नोचे उतरेगी, उतनी ही उसकी भाफ-, वास है। समाजमें इनका यथेष्ट सम्मान और प्रतिपत्ति गो-शाक्ति भी बढ़ती जायगी। मार्पणी-शक्तिको देखा जाती है। इनमेंसे यहुनरे सारों पर्णसे एक हो स विपनाके कारण पट्टीफे दोलक ( Pendulum ). ! स्थानमें वंशपरम्परासे यास करते आ रहे हैं। की गतिका पापय निरूपित मुभा है। इस धेणीफे घालण कभी भी अपने हाधसे हल नहीं उपरोक्त पड़ोसे साफ साफ प्रमाणित होता है, कि पस्तुमास दो पफ फेन्द्रातिग-आकर्षण प्रभायसे एक चलाते । सरकारी नौकरी, व्ययसाय, याजकता अपया इसरपं. साध नियत है। जागतिक सभी पदार्थ जिस भूम्याधिकारिताफा अवलम्बन कर अपनी जीविफा निर्वाह करते हैं। कारी उनकी मातृ-भाषा है। फिर मकार भूपेन्द्रको मोर एक सरल रेखा पर आकर्षित होते है, उसी प्रकार घे भी अपनी अपनी केन्द्राभिमुपी साफ- किसी किसी थोकर्फ लोग मराठी मधया मराठी मिश्रित पंजो-शपिनसे भूपेन्द्रकी शोर थाहर होते हैं। - फणाड़ी भाषामें भो पोलचाल करते हैं। पुरुषोफे नाम इस प्रकार नावादि गतिका लक्ष्य पर शानिने पहले देव और त्रिपकि नामफे पहले देयी अपंया नवी. . स्थिर किया है, कि प्रत्येक प्रह अपनी अपनी. दूरोफे याचक शब्दका प्रयोग रहता है। उनके उपाय देयता प्यमानानुसार सूर्यफेन्द्रको सार आकर्षित होता है। मङ्गलरफे अन्तर्गत उदपीफे एण, मान्दाजके अन्तर्गत धम लोग देखते हैं, कि इसी पक नियम और शक्तियशस अहोवले, निजामराज्यके अन्तर्गत काफे मृसिंह, धीर- उपप्रद गएश्ली भी अपने अपने कक्ष पर घमती है। सर पत्तनके रङ्गनाय, तिरुपति येवररमण और पएटरपुरक भाजक न्युटन जागतिक दोनों वस्तुको परस्पर आक- विठोया। पंण शक्तिका निरूपण कर जनसाधारणमे जिस नियम। इनके अठारही घोमि मापसमें पान-पान चलता को लिपियर पर गये है, वर्तमान युगमे यह मिन्न है। सगोत-विवाद प्रचलित नहीं है। स्त्री-पुरुष दोनों ही मिग्म शानिझसे भिन्न भिन्न रूपमें प्रतिपादित होने देग्नई सुन्दर गौर लिए होते हैं। पर भी जनसाधारणने उसोको सत्य समझ कर ग्रहण ये लोग ललाटमें धीमुश मया जातीय हि धारण कर लिया है। फरत है जिससे उन्हें सदनमें पहचाना जाता है । यिया माध्यामिक (म०लि.) मध्याकाल सम्याधीय, ठोक हिताखियां मांगों सिन्दूर पहनती तथा यिधया कपाल मध्यारो समय फिया जानेवाला काय । पर छोटीसी धीमुद्रा मौर फगरेघा मदित करती है। माध्य ( म० पु. १ मध्यानाफे मतावलम्योमान, इन लोगों पुरोशिस अपरिमितमोमो है, किन्तु दिन: यपियों चार मुष्प सम्प्रदायमिंसे पक जो मध्याचार्य रातमें सिपा एक शाम पाते हैं । सगुन और पास का पलायामा है। इस मतया काले तिलक लगाने कोई भी गद्दों पाता। उत्सवादिम विगही भादि मुरा. भार प्रति यपंचमांकित होते रहते है। रोचक नफा भी ध्ययदार होता है। ये लोग फल नापारी, माना और पूर्ण देतो।। अधिक मा ६। २ मध्यामार्गका निप.मामाप । ३ माघपो गय, मधुपको गराय। ४ मपुर कटा नामकी मछली। मामी मोगले तक भी नहीं। उR. मायर (10) मापांश गंदारियाहार. यादिम गगनाभि, फापूर तथा मन्पान्य सुगम्पिा मो. म्पा माध्यीक, महपको शरा साप सुयासित पेय पदार्ग प्रस्मुन कर है। गुम