पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४३९

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माध्वग्राह्मण कार्योपलक्षमें प्रस्तुत पिटकादिका श्राद्धादिमें तधा श्राद्ध : हैं। केवल राजा और रानी अपने पैरों में सोनेके अल- कामें प्रस्तुत पिटकादिका विवाहादिमें व्यवहार दिल. कारादि पहन सकती हैं। क्योंकि जनता उन्हें देवता कुल निपिद्ध है। भोजके समय पहले कुल सामग्री विष्णु, समझ कर पूजती है। लक्ष्मी और हनुमानको उत्सर्ग करते और तब लोगोंके माध्वग्रामण साधारणतः कार्यदक्ष, विनीत, परि- थोच परोसते हैं। शुभकार्यादि उपलक्षमें भोजन के समय । फार परिच्छन्न और अतिथियत्सल होते हैं। शास्त्रानु- केले के पत्ते का जो अश वाम भागमे रहता है, श्राद्धादि । मोदित क्रियाकलाप तथा नानाविध व्रतनियमादिके अनु- उपलक्षमें भोजन के समय यह अंश दक्षिण भागमें रखना ' टानमें सभी तत्पर रहते है। शिवरान तथा होलीमें . होता है। सभी उत्सव मनाते और एकादशी तथा जन्माष्टमीमें ___ छोटे छोटे बच्चों को छोड़ कर सूर्योदय और सूर्यास्त : उपवास करते हैं। विष्णुपञ्चरात तथा चान्द्रायणका के मध्य कोई भी दो बार नहीं खाता। विधवा दिनमै अनुष्ठान भी सर्वत दिखाई देता है। समय समय पर धे एक वार खाती और रातको सिर्पा जल पी कर रहती, काशी, वदरिकाश्रम आदि प्रधान प्रधान तीर्थों के भी है। पर्वाह, पक्षान्त, मकरसंक्रान्ति, विपथसंक्रान्ति आदि दर्शन करने जाते हैं । हरपकको दीक्षागुरास मन्त्र लेना दिनोंमें ब्राह्मणमात्रको ही एकाहारो रहना होता है। पड़ता है। विवाहित व्यक्ति भी दीक्षा-गुरु हो सकते हैं। माध्वग्राह्मणोंको धारणा है, किरात में ब्राह्मण-भोजन, किन्तु दीक्षागुरु होनेके वाद यह खोका मुखदर्शन अथवा करानेसे अत्यन्त पुण्य होता है। भोजन करनेके बाद किसी कन्याका पाणिग्रहण नहीं कर सकता। गर्भा- कोई पान रहाता, कोई तमा पीता और कोई नस धानसे ले कर अन्त्येष्टि तक सोलह प्रकारके संस्कार लेता है। प्रचलित हैं। प्रथम प्रसयके समय कन्याको अपने मैके इनकी स्त्रियां फुरता पहनती हैं। विधवा सफेद | जाना होता है । प्रसवके समय जव ाधिक वेदना मालम साड़ी पहनतों और उत्तरीयसे अपने शरीरको ढके रहती होती है, तब पुरानी मुहरको जलमें धो कर बही जल हैं। ब्राह्मण शिखामात्र रस्य कर शिर मुड़वाते हैं। उसे पिलाया जाता है। इससे प्रसुति सुम्नपूर्वक प्रसव उपनयनसे पहले वालकोंका मस्तकमुण्डन नहीं होता। कर सकती है। शिशुके भूमिष्ट होते ही एक पहुत पुरानी पुरुषमात्र ही मूछ रखते हैं। वालिका और विवाहिता सोनेको अंगूठीको मधुमें डाल कर दो एक बूंद वही स्त्रियां जुड़ा वधिती है और उसे तरह तरहकी पुष्प..मधु उसको मुख में दिया जाता है। जातकर्मसे निष्क्रमण मालासे सजाती सी हैं। और अन्नप्रशनसे विवाह पर्यन्त सभी संस्कार नियम- पाश्चात्य शिक्षा और सभ्यतायो प्रादुभांबसे अङ्ग पूर्वक होते हैं। लड़केको मासो हो उसका नाम रसती रेजी शिक्षित युवकोंमेंसे कितने विलायती पोशाकके | है। इस समय उसे नया कपड़ा मिलता है। शौकीन हो गये हैं। माध्य-संन्यासीको वेशभूषा स्वतन्त्र वालकका उपनयन संस्कार बड़ी धूमधामसे होता है। वे सिर्फ गेय कौपीन पहनते हैं। वे लोग यज्ञोपवीत | है। जिस वालकके यज्ञोपवीत हो गया है, वह तीन बार अयया अलङ्कारादिका व्यवहार नहीं धारते । किन्तु सभी । सन्ध्योपासन करता है। ललाटमें जातीय तिलक धारण करते हैं। उनके हाथ इन लोगोंमें वाल्यविवाह प्रचलित है। यालकोंका डा और पैरमें खड़ा रहता है। माधवनामों में से २० वर्षके भीतर और वालिकाओंका से ११ वर्षके पालविधवाये भी किसी प्रकारका अलङ्कारादि नहीं । भीतर बियाह होता है। अर्थ के लोभसे माता-पिता पहनवो। ६०७० वर्षके बूढ़े साथ कन्याका विवाह देनेसे भी ___पुरुष और स्त्री दोनों ही शरीरको शोभा बढानेके | याज नहीं आते। लिये अलङ्कार पहनते हैं । जो धनी हैं उनके पैर भूषणः कन्याका पिता ही पहले यरकी तलाश करता है। को लोड़ कर और सभी भूपण सोने, मणिमुक्ताफे होते | घर मिल जाने पर कन्याका पिता घरके पिताके पास ___Vol. XVII. 97 .