पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४४९

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मानभूम, ३६३ सिया कई.जगद्द लोहे, तवे तथा कोयलेको खाने पाई। उपलक्षमें लगता है । पुरुलियासे बड़ाफर जाने में गई हैं। यहांसे यह सब चीजें निकाली जाती हैं। अनाड़ा एक ग्राम आता है । चैत संक्रान्तिकं अवसर पर

, पतास पत्थर काटे जाते हैं और उनसे देवमन्दिर, चड़कपूजाके उपलक्ष्य अनाड़ामें मी एक मेला लगता

देवमूर्ति, पत्थरके वरतन आदि तैयार किये जाते हैं। है। यह मेला कोई बीस दिन तक रहता है। निकटके पातकुमके अन्तर्गत चैतन्यपुर में एक उष्ण प्रस्त्रवण है। जिलोंके व्यवसायी दुकाने ले कर यहां आते और वाव. यहाँका जल स्वास्थ्यके लिये विशेष उपयोगी है। सायसे लाभ उठाते हैं। • शाल आदि लकड़ियोंके सिवा यहां के वनविभागसे यहां कांसाई, दामोदर, सुवर्णरेखा आदि नदियोंके लाह, टसर, मोम और धूना आदि संग्रह किये जाते और किनारे किनारे हिन्दू तथा जैनमन्दिर दिखाई देते हैं। इन पाहर भेजे जाते हैं। मन्दिरों तथा इनके सामनेको पड़े खण्डहरोंको देख कर ___ अंगरेजोंके अनुग्रह तथा रेल हो जानेकी सुविधासे अनुमान होता है, कि एक समय हिन्दू और जैन- विविध प्रदेशोंसे आ कर यहां लोग वस गये हैं। वाणिज्य- यणिक नदी द्वारा यहाँ आ कर बस गये थे। समय पा - के कारण कितने ही व्यवसायो महाजन यहां आ कर बस कर जब पुरुलियाने प्राधान्य लाभ किया, तो यह नगर ', गये हैं। इस जिलेका प्रधान नगर पुरलिया है। इस । श्रीहोन और खण्डहरके रूपमें परिणत हुआ था। समय इसकी शोभा देखते ही बनतो है। असंख्य सोध. पुरुलियाके स्टेशन के निकट कांसाई तीर पर पलमा मालाओंसे विभूपित यह नगर धनजनसे पूर्ण हो जाता वस्तीमें ध्वंसप्राय एक जैन-मन्दिरका नमूना दिखाई है। यथार्थमें अनार्य ही यहाँके मादिम अधिवासी है। देता है। इस मन्दिरमें कई जैन तीर्थरोंकी मूर्तियां असुर, शयर, भर, भूमिज, प्रांगड़, खड़िया, मुण्डा, नापक, पाई गई है। नाया, नाट, पहाड़िया, पुराण, सरदार और सन्थाल, सिवा इसके पुरुलियाके निकट चाडामाममें श्रावको अनार्या में उल्लेखनीय हैं। कुमी, वाग्दी, बाउरी आदि का एक देवालय है। दामोदर नदीके तट पर अवस्थित जाति अनार्य भायापन होने पर भी इनमें बहुत कुछ तेलफुपीमें विरूपदेयका मन्दिर और कांसाई नदोके तीर. हिन्दुभाव दिखाई देता है। दलमागिरि-वासी पहाड़ी के चोरमग्राममें एक हिन्दु मन्दिरका ध्वंसावशेष दिखाई "सिनानधाटी गुहा में देवीके सामने नरवलि चढ़ाते थे। देता है। कांसाई और पारश शेलके बीच युद्धपुरग्राममें "सत्य अनार्य जातियों में भी यह कुप्रथा दिखाई देती है। चार देवमन्दिर और कई प्राचीन कीर्तियोंके ध्वंसाय- भूमिज पञ्चकोटकी रङ्गिणी देवीके सामने नरबलि देते । शेष इधर उधर पड़े दिखाई देते हैं। यहांके चैत्र थे। सन् १८३२ ई० में गङ्गानारायणके नेतृत्वमें यहां एक, संक्रान्ति पर लगनेवाले 'चड़क' मेलेमें दूर दूरको दुकानें यलया भी हुआ था जो “चूयाड़का वलया" कहलाता। आती हैं। . है। यहाँके अनेक राजे भी अनार्य जातिके हैं। जहां प्राण्डद्रोडने बड़ाकर नदीको पार किया है पराहभभ देखो। यहांसे थोड़ी ही दूर एक खण्डशेल पर चार चायशिल्प- , पुरुलिया, झलिदा, रघुनाथपुर, काशीपुर और मान मय मन्दिरका ध्वंसावशेष पड़ा हुमा है। इनमें एक • बाजार यहाँका प्रधान व्यवसायिक स्थान हैं। यथार्थमें शिलालेख भी पाया गया है। यह शिला लेख रानी हरि- नगरकी अपेक्षा इन्हें प्रामसङ हो कहते हैं। ये सव प्रिया देवीके समयका है। यह बङ्गाक्षरमें, सन् १३८३

नगर यहांको म्युनिस्पलिटोके अधीन हैं। इससे पे दिनों शक्रका लिखा हुआ है। युधपुरके कांसाई-तोर पर एक

दिन उन्नति कर रहे है। पुरुलिया नगरमें ही जिलेको कोसमें और उसके दो कोस उत्तर वाक्पीड़ा ग्राममें नौ सदर अदालत है। फीट ऊँची एफ बोर मूर्ति के साथ साथ योर भो कितने पुरलियाके दक्षिण वाकुलता प्राममें प्रत्येक वर्ष गेला ही मन्दिर दिखाई देते हैं। . , . . होता है । यह मेला आश्विन महीनेके छातापर्य के ! सुवर्णरेखा और फरकरी नदीके सङ्गमस्थित वालमी . . tol, ITI, 99