पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४५१

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पानमोड़ा : ३६५ फुटकी ऊँचाई पर 'चैत्य' नामसे प्रसिद्ध बहुत-सी चौद्ध और दरवाजे के ऊपर "गहपतिपुतानां दोनङ्कस चौगभं गुहाएँ हैं। उन सब गुहाओंको लोग भीमशङ्करका अंश देयधम्म" ऐसा लिखा है । इसकी छो गुहा, 'अम्बिका' समझते हैं। भीमशङ्कर गुहाएँ जुन्नरसे आध कोस नाम्नो अनदेवमूर्ति प्रतिष्ठित है। इसोसे इस गुहाका नाम दक्षिण-पूर्व ले कर पूना जानेके रास्तेसे आध कोस 'अम्बिकालेने पड़ा है। नाना स्थानोंसे जैन और जुन्नर- पश्चिम प्रायः माघ कोस तक फैली हुई हैं। उक्त ' वासी हिन्दू उस देवीको पूजा करने जाते हैं । उस गुहा- गुहामोंका परिचय बहुत संक्षेपमें नीचे दिया गया है :-- के दरवाजे के बाएं भागमें जैन क्षेत्रपालमूर्ति और दाहिने ली गुहा लयना ( लेना ) वा वानरवास कहलाती भागमें एक ताख पर 'चकवरी' को मूर्ति रखी हुई है। हैं। इसके एक अंशमै बरामदा और दूसरे अंश, कोठा । इस गुहाको २रो अटारी पर नेमिनाथ, आदिनाथ, है। इसके धीचमें जो खंभे लगे हैं, वे प्राचीन आन्ध्र ' अम्बिका तथा अम्बिका पुत्र सिद्ध और युद्धको मूर्ति 'ढंग पर बने हैं। २री गुहाका नाम वैत्य है। इसके प्रतिष्ठित है। मुसलमानों के हाथसे अधिकांश मूर्ति 'द्वारदेशमें "सिद्ध उपासकस नगमस, सतमलपुतस, भग्न या अनहोन हो गई हैं। पुत चोरभुतिन्" यह लिपि खुदो हुई है। ३रो गुहा यहाँको ११वों गुहा एक असम्पूर्ण चैत्य है। पहले एक सत्र है। उसके दक्षिण जलका एक चहवचा यही जैतोंका प्रधान पूजाका स्थान समझा जाता था। मौजूद है। ४यो और ५या गुहा में भी चार बड़े बड़े लो सदोके अक्षरों में जो शिलालिपि उत्कीर्ण है, उसे जलाधार दिखाई देते हैं । या गुहाकी दीवार पर "सिव | पढ़नेसे मालूम होता है, कि यानद प्रामवासी पलपने इस समपुतस सियभुतिनो देयधम्म पाढ़ि' यह लिपि उत्कीर्ण चैत्यको दान किया और इसको देनरेख अपराजितीके है। ६ठो गुहा 'मएड' वा विनाममण्डप कहलातो है। पयोगक (प्रयोगक) नामक एक व्यक्ति करते थे। इसको इसको छत्तको दोवारमै जो "राणो महाखतपस सामि । दूसरी शिलालिपिसे मालूम होता है, कि यह गुहा उस महपानस ममात्यास वचस गोतस भयमस देयधम्म पढि समय 'गिधविहार' नामसे प्रसिद्ध थी। कोणाविक मतपोच पुनशययस ४६ कतो" शिलालिपि उत्कीर्ण है। श्रेणीमुक्त 'आदुथुम' नामक एक शक उपासकने इसे उससे मालूम होता है, कि महाक्षतप खामी नहपानके । विहारके उद्देशसे दान किया था। इस विहारको १०यों प्रधान मन्त्रो वत्सगोलीय अयमने इस मण्डप और जला- शिलालिपिसे ही मानमुकुद (मानमुकुट) नामक पुरका घारको उत्सर्ग किया था। ७वीं और वों गुहाके द्वारमें पता लगता है। यहांको १८वीं शिलालिपिमें मन्दन्त बहुत छोटो छोटा अटारो हैं। ८यों गुहासे प्रायः ३ फुट । स्थविर-सुदर्शनके शिष्य वैविध दैत्यक स्थविरका नांचे स्वी गुहामें एक बड़ा सत या भोजमएडप है। इस प्रसङ्ग है। को छत अमा टूट फूट गई है। ८वों और स्थी गुहा. भूतलिन। के योचमें बहुतसे जलाधार है। पहाइके ऊपरका जल अम्बिकासे २०० गज दूर पूर्वोक्त दोनों श्रेणोको . इन जलधारामें गिरता है। उक्त जलाधारोंसे दक्षिण ८० गुहामालासे ऊपर और भी १६ गुहाए देखो जाती हैं। गजको दूरी पर १०वी वा भीमशङ्करको अन्तिम गुहा लोग उन्ही गुहाओं को 'भूतलिङ्ग' कहते हैं। यह सब अवस्थित है। गुहाए वद्दुत पुरानो होने पर भी भास्करकार्य और - . . अम्बिका। शिल्पनेपुण्य उतना अच्छा नहीं है। इन गुहाओंके भीमशङ्करसे ३०० गज दूर अम्बिका नामक गुहा- निकर और आस पासमें बहुतसे सोते देखे जाते हैं। श्रेणी मारम्म हुई है। पूर्व-दक्षिणसे पश्चमोत्तरको ओर उक्त गुदाको लोग बौद्धगुहा मानते हैं। इसकी यो' विस्तृत उत्तर पूर्वमुखो १६ गुहाओं को ले कर यहां | और स्वों गुहा एक बौद्ध 'दाघोध' समझी जाती है। आम्बका श्रणी बनी है। अम्बिकाको अधिकांश गुहाएँ। यी गुहाको 'यवनस चन्दानं देयधम गमदार' इस अमो दूट फूट गई हैं। इसकी चौथी गुहाको छतके नोचे लिपिसे जाना जाता है, कि इसका गर्भगृह 'चन्द्र'