पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५२९

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' 7- मार्कण्डेय कवीन्द्र-मोपलो 'अच्छी सेवाटहल की। जाते समय 'तुम चिरायु हो' समय मार्कपलोको उमर १५ वर्षकी थी। दो वर्ष बाद - कह कर ऋषियोंने इन्हें आशीर्वाद दिया। किन्तु जय मार्कपलो और एक पुरोहितको साथ ले चे भ्रमणमें "उन्हें मालूम हुआ, कि बालकको आयु थोडी है, तब वे ; निकले। पुरोहितने पोपको पनादि दे कर उन सर्वोका उसे ले कर ब्रह्माके पास गये। ब्रह्माके घरसे ब्रह्माकी | साथ छोड़ दिया। एकरसे ले कर सिरिया उपकूल परमायुके समान इनकी भायु हुई। मार्कण्डेय इस प्रकार : भागमें उन्होंने तीन वर्ष तक भ्रमण किया। पोछे योग- 'दीर्घायुः लाभ कर अपने घरको लौटे । इनके विषयमें : 'दाद और हमुंज होते हुए वे फर्मान, 'बोरासन, बालख ऐसा प्रसिद्ध है कि ये अब तक जीवित हैं और रहेंगे। और यदकसान तक गये । यदक्सानमें मार्कपलो धीमार मार्कण्डेयेन प्रोक्त अण।२ पुराणविशेष, मार्फण्डेय 'पड़ा जिससे उन्हें वहां बहुत दिन तक ठहरना पड़ा था। पुराण। यह अठारह महापुराणों में सातयां महापुराण : वदाक्मानसे वे फच और श्रीकोल हदको पार कर पमीर है। पहले स्वयम्भुने मार्कण्डेयको जो उपदेश दिया था , उपत्यकामें पहुंचे। यहाँसे काशगर, यारकन्द और उसीको ले कर यह पुराण आरम्भ किया गया है। यह खोटान होते हुए एशियाको गोयी मगभूमि पार कर "पुराण पढ़ने वा सुननेसे 'आयुद्धि और सभी कामनायें ! चीनदेशके उत्तर-पश्चिममें आपे। । सिद्ध होती तथा समस्त पाप जाते रहते हैं। विपदसे चीनदेशकी चहारदीवारी घुसने पर कुवला का बचने के लिये घर घर जो चण्डी पाठ होता है वह इसी । कर्मचारी उनके समीप भाया। उस समय कुबला खाँ पुराणके अन्तर्गत है। पुराण देखो। चहारदीयारीसें ५० मील उत्तरं सांट नगरमें राज्य करते ___३नाडीपरीक्षाके प्रणेता। थे। पीछे पिता-पुत्र पिकिन नगरमें भाये। मार्कपलोको मार्कण्डेय कवीन्द्र-प्रारतसर्वस्वके रचयिता उमर उस समय २१ वर्ष यो । घे थोड़े, दो समयमें चीन- मार्कण्डेयंचूर्ण (सं० पु०) आपविशेष । प्रस्तुत प्रेणालो भाषा सीख कर चीन-सम्राटके प्रियपात्र हो गये। पीछे पारा, गंधक, हिंगुल, सुहागेका लावा, त्रिकटु, जायफल, ] २६ वर्ष तर्फ घहां रह फर मार्कपलोने बलुतसे राजकीय लयङ्ग, तेजपत्र, इलायची, 'चितामूल, मोथा, 'गजपीपल, तथा उच्च कर्मचारोफे कार्य भी किये थे । राजकन्याके सोहा अतिवला, अवरक, धयका फूल, अतीस, साहि- साथ तातारवंशीय पारस्य राजकुमारको विवाद स्थिर जनका धोया, मोचरस और अफीम प्रत्येक एकं पल ले हुआ था-मार्क गलो राजकन्याके रक्षकरूपमें पारम्पदेश ___ कर अच्छी तरह. चूर्ण करे । इसोका नाम मार्कण्डेय- गपे धे। उन्होंने एक बार और यूनानप्रदेश होते हुए चूर्ण है। चीनीके साथ प्रतिदिन १ माशा सेवन करने सीमान्त-प्रदेशको यात्रा की । पीछे ये कोटिलान्तर्गत से संग्रहणी-रोग आरोग्य होता है। ... .. काराकोरम नगरमें पहुंचे। यहांसे भारत-महासागरफे ....(भपज्यरत्नावली महययधिकार), सुमात्रा द्वीपमें जलपथसे रवाना हुए । कुयला खोके मार्कपलो-एक प्रसिद्ध पर्याटक । भिनिस नगरके फिसो भतीजे अर्गान खांके बियाह के लिये एक सर्याङ्गसुन्दरी संम्रान्त घंशमें इनका जन्म हुआ था। निकली और कन्याको तलाशमैं मार्कपलोको मुगल-देश भी जाना पड़ा माधु नामक दो भाई थे। कुस्तुनतुनिया और क्रिमिया | था। . इनके पहले सुमात्रा दोपका हाल किसीको भी उनका याणिज्यकेन्द्र था। उन्होंने १२५४ हमें मिनिस मालूम नहीं था । मार्क पलो १२८५६० में मिनिस लौटे। का परित्याग कर पूर्वकी यात्रा की। १२६० ई०में थे। 7 ) अनन्तर १२६८ ई० में कुर्जलाकी लड़ाई में ये फैद किये कुस्तुनतुनियाको छोड़ कर योखारा होते हुए कुयल खो गये। स्वदेश लौट कर इन्होंने अपना म्रमणत्तान्त वाय. के राज्यमें गये। कुषल खान उन दोनोंको पोपके निकट से लिख कर जनसाधारणमें प्रकाशित किया। सेनोमा. दूत बना कर भेजा। तदनुसार ये १२५६ ईमें एकर- यासी राष्टिजिया नामक एक व्यक्किने सबसे पहले इनके 'नगरमें पहुंचे। निकलोने यहां जा कर देखा, कि उनको अपूर्य प्रगणरत्चान्तको लिपिबद्ध कर जनसमाजमें - स्त्री पुव मार्कपलोको छोड़ परलोक सिधार गई है। उस । प्रनार किया. उत्तान्त १३२० ६०को लाति I