पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५३१

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मार्गवनी-मार्गशीपी ४७३ मार्गवनी ( स० स्त्री०) पथिकों की रक्षा करनेवाली एक, है। यह नया धान पहले देवता और पितरों को उत्सर्ग देवोंका नाम। कर ब्राह्मण, आत्मीय और फुटुम्त्रों को खिलानेके बाद मार्गयशानुग ( स० वि०) पथानुवत्ती, पथस्थित । पीछे आपको खाना चाहिये । नये अन्नसे पितरोंका श्राद मार्गवशायात (स० वि० } मार्ग यशानुग देखो। होता है, इसीसे इसको नवानश्राद कहते हैं । यह श्राद्ध मार्गवाहिनी ( स० स्त्री०) छोटी नाडी। पार्वणके विधानानुसार करना होता है। नवान देखो। मार्गविद्या (सं० स्रो० ) १ संगीतके देवता और प्राचीन मार्गशीर्षमास ही नचानका मुख्य समय है। यदि ऋपियोंके बनाये हुए गाने वाजे और नृत्यको प्रकरणविद्या । कोई दैवविडम्बनाके कारण इस मासमें नवान्न न कर २ पथनिर्माणादि विद्या, रास्ता आदि बनाने को विद्या।। सके, तो माघ मासमें कर सकता है। इस मासको मार्गवेय (सपु०) ऐतरेय ब्राह्मणोक्त एक ऋषिकुमार शुक्ला चतुर्दशी तिथिको सौभाग्यको कामना कर पापाणा. का नाम । राममार्गवेय देखो। कार पिष्टक द्वारा देवताको पूजा करे और पीछे उस मार्गशाखिन् ( स० पु० ) मार्गे या शास्त्री । मार्गस्थित पिएकको आप पाये। पूर्णिमा तिथिमें पार्वण श्राद्ध वृक्ष, रास्ते पर जो पेड़ रहता है उसीको मार्गशाखी | अवश्य करना चाहिये। ( कृत्यतत्त्व ) मार्गशीर्पमासमें कहते हैं। (रघु १।४५) यदि किसीका जन्म हो तो वह पालक धार्मिक, परोप- मार्ग शाखी ( स० पु०) मार्गशाखिन देखो। कारी, तीर्थ या प्रयासरत, सदत्तियुक्त तथा कामुक मार्गशिर (संपु०) मृगशिरानक्षवयुक्ता पौर्णमाम्यत्र । होता है। मृगशिरा-अण। मार्गशीर्ष मास, अगहनका गहीना। "यस्य प्रमतिः खलुः मार्गमासे तीये प्रवाणे मतनं मतिः स्यात् । "शुक्ले मार्गशिरे पक्षे योपिद्भत रनुभया। ' परोपकारी धृतसाधुवृत्तिः सदनियुनी लाननामिनापी ॥" आरभेत प्रतमिदं सर्वकामिकमादितः ।।" (कोशीपदीप) (भाग०६१२) यह मास सभी मासोम श्रेष्ठ है। स्वयं भगवानने मार्गशिरस् (सपु० ) मार्गशीर्ष, अगहनका महीना। कहा, कि मैं मासमि मार्गशीर्ष । मार्गशीर्ष (सं०३० मार्गशीपों अण, मृगशीन युक्ता "मासान मार्गशीषोऽहम तूना कमाकरः ।" पौर्णमासी मार्गशीपी सास्मिन मासे भवति मार्गशीर्ष । (गीता १० म.) अग्रहायण मास, अगहन का महीना । इस मासकी। ज्योतिपमें लिखा है-उस मासमें ज्येष्ठ पुत्र पूर्णिमातिथि मृगशिरा नक्षतका योग होता है, इमोसे, और कन्याका वियाद वा चूड़ाकरण नहीं करना इसफा 'मार्गशीर्ष' नाम हुआ है। पर्याय-सहा, मार्ग, ! चाहिये। आग्रहायणिक, मार्गशिर, सह । (शब्दरत्ना०) । "मार्गशीय तथा ज्या क्षौर परिणय मतम् । __यह मास सौर, मुख्यचान्द्र थोर गौणचान्द्रके भेदसे ज्येप्पुत्रदुहिनोग्य यत्नतः परिवर्जयेत् ॥” (दीपिका) तीन प्रकारका होता है। जब तक रवि वृश्चिक राशिमें किमी किसोका मत है, कि ज्येष्टमासमे प्रथन दश रहते हैं, उतने ममयको सौर मार्गशीर्ष, रविक गृश्चिक । दिन या १८ दिन बाद दे कर विवाहादि किया जा सकता राशिमें रहते समर शुक्ल प्रतिपदुसे अमावस्या पर्यन्तको है, लेकिन अग्रहायण मासके सम्बन्धमें ऐसा कोई नियम मुथ्यचान्द मार्गशीर्ष और रविके गृश्चिक राशिमें रहते ! नहीं है। यह समूचा मास वर्णनीय है। कोई कोई समय कृष्ण प्रतिपद्से मुख्य चान्द मार्गशीर्षकी पोर्ण-। कहते हैं, कि मार्गशीर्ष मासमें भी ऊपर कहे गये दिनो- मामी तकको गोणचान्द्रमार्गशीर्ष कहते हैं। प्रात्यतत्त्वों को याद दे कर विवाहादि किया जा सकता है। किन्तु मामव्यस्थल में (अर्धान किस माममें श्या करना भाव जो ऐसा कहते हैं उनका त नितान्त अश्रद्धेय और श्यक है) कहा है कि इस मास नवान्न धादा अशास्त्रीय है। करना उचित है। मन्तिक धान इसी समय पकता मार्गगोपी (सं० खो० ) अगडनको पूर्णिमा। Vol. XII, 119