पालकैगुनी-मालजातक
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है। इन दानों में तेलका अंश अधिक होता है जिससे , हिंडोल, वसन्त, जयजयवंती और पञ्चमके योगसे वत-
इन्हें पर कर तेल निकाला जाता है। मान्द्राज में उत्तः लाई जाती है।
रीय सरकार तथा विजिगापट्टम, दलोरा आदि स्थानों में ' रागमालाके मतसे यह पाटलवर्ण, नोलपरिच्छर
इसका तेल बहुत अधिक तैयार होता है । यह तेल यौवनमदमत्त, यष्टिधारी और स्त्रीगणसे परिवेष्टित, गले में
नारंगी रंगका होता है और औपके काममें आता है। । शवोंके मुण्डकी माला पहने और हास्यमें निरत है।
- विशेष विवरण ज्योतिष्मती शब्दमें देखो। इस मतमें टोड़ी, गौरी, गुणकरो, खंभात और ,ककुमा
मालकैगुनी ( हि० स्त्रो०) माजकंगनी देखो।
नामक पांच स्त्रियाँ , मारु, मेवाड़, पड़हंस, प्रवल, चंद्रक,
मालक (सं० क्लो०) मलते धारयति शोभामिति, मल' नन्द, भ्रमर और खुबर नामक माठ पुत्र बतलाये गये हैं।
धारणे वल१ स्थलपन। २ निम्य वृक्ष, नीमका पेड़। भरतके मतानुसार गौरी, दयावती, देवदाली, खंभावती
मालगुनी (हिं० सी०) मालफंगनी देखो।
और कोकभा नामक पांच भार्याय ; गांधार, शुद्ध, मकर,
मालकन्द (सं० पु०) स्वनामख्यात महाकन्द शाक। लिञ्जन, सहान, भक्तबल्लभ, मालीगौर और कामोद नामक
मालका (सं० स्त्री०) मल-ण्वुल स्त्रियां टाप् । माला। आठ पुत्र हैं।
मालकुडा (हि पु० ) एक प्रकारका कुडा । इसमें नील मालकोस ( हिं० पु० ) मालकोश देखो ।
कड़ाहेमें डाले जानेके पहले रखा जाता है।
। मालखाना ( फा० पु०) वह स्थान जहां पर माल अस.
मालकोश (सं० पु०) मालस्य हरेः कोशात् फराठान्तिर्गतः । वाव जमा होता हो या रखा जाता हो।
दरि अण। रागविशेष | इसे कौशिकराग भी कहते है। मालखेड़-राष्ट्रकूट राजाओंकी राजधानी । इसका प्राचीन
हनुमतके मतानुसार यह छ रोगोंके अन्तर्गत माना गया नाम मान्यखेट है।
है। यह संपूर्ण जातिका राग है। इसका सरूप योर मालगाड़ी ( हि० पु०) रेलमें यह गाड़ी जिसमें केवल
रसयुक्त, रक्त वर्ण, वीर पुरोसे आवेष्टित, हाथमें रत्त माल आसयाव भर फर एक एक स्थानसे दूसरे स्थान
वर्णका दण्ड लिये और गलेमें मुण्डमाला धारण किये पर पहुंचाया जाता है। ऐसी गाड़ी में यात्री नहीं जाने
लिखा गया है। कोई कोई इसे नील वस्त्रधारी, श्वेत , पाते ।
दएड लिये और गलेमें मोतियोंकी माला धारण किये , मालगुजार (फा० पु० ) १ मालगुजारी देनेवाला पुरुष ।
हुप मानते हैं। इसकी ऋतु शरद और काल रातका २ मध्यप्रदेशमें एक प्रकारके जमींदार। ये फिसानोंसे
पिछला पहर है। कोई कोई शिशिर और वसन्त ऋतुको ' घसूल करके सरकारको मालगुजारी देते हैं।
भी इसकी ऋतु वतलाते हैं। हनुमत्के मतानुसार | मालगुजारी (का. स्त्री० ) १ यह भूमिकर जो जमींदारसे
कोशिकी, देयगिरि, वरवारी, सोहनी और नीलाम्बरी ! सरकार लेती है। २ लगान।
पांच इसको प्रियाए और वागेश्वरो, ककुमा, पर्याका, । मालगुर्जरी (सं० स्त्री०) सम्पूर्ण जातिको पक रागिनी ।
शोमनी और खंभाती ये पांच भार्याद तथा माधय, । इसमें सय शुद्ध स्वर लगते हैं। कुछ लोग इसे गौरी
शोभन, सिंधु, मास, मेवाड़, फुन्तल, फलिङ्ग, सोम, और सोरठसे बनी हुई संकर रागिनी मानते हैं।
विहार और नीलरंग ये दश पुत्र हैं।
मालगोदाम (हिं० पु०) १ यह स्थान जहां पर प्यापारका
___ मतान्तरसे केदारा, हम्मीर, कामोद, खम्भाती और ; माल जमा रहता है । २ रेटके स्टेशनों पर यह स्थान जहां
वहार नामक पुन, भूपालि, कामिनी, मिझोटी, कामोदी। मालगाड़ीसे भेजा जानेवाला अपयश आया हुआ माल
और विजया नामकी पुत्रवधू । बागेश्वरी, बाहार, नहाना, रहता है।
अताना, छाया और कुमारो नामको रागिनियां तथा मालचक्रक ( स० पली०) पुछे परका यह जोड़ शो कमर.
शङ्करो और जयजयवंती सहचरियां हैं। किसीफे मत- के नीचे जाधको हो और फूल्दैम होता है।
से यह सपराग है। इसकी उत्पत्ति पट ‘सारंग, मालजातक (सं० पु० ) गन्धमाार, गंधविडाल ।
Fol, ITII. 21
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५३९
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