पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५४५

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पालदही-मालदेव १८५ गिरतो थी। गौड़के उजड़ जाने पर वहां के बहुत से लोग फ्रान्त राजा मारवाड़ों और कोई भी नहीं हुए थे। संग्राम मालदहमें आ कर वस गये। इस नगरमें पहले मुस. सिंहके मरने पर मारवाड़में जो शोक-रजनीका भाविर्भाव लमानोंकी ही प्रधानता थी। पीछे मुसलमानोंकी हुआ था, मालदेयके अप्रतिहत प्रभावसे राजस्थानका संख्या क्यों घट गई और हिन्दुओं की बढ़ गई, वह ठीक. सौभाग्याकाश पुनः प्रभात-सूर्यको गण फिरणमे रचित ठीक. मालूम नहीं। आज भी घर बनाते समय कत्र । हो उठा 1 मुसलमान ऐतिहासिक फेरिस्ताने इन्हें राज- दिखाई देती है। पुराने मालदहको क्रमशः अवनति पूताने में सबसे बढ़ कर पराममो राजा बतलाया है। होती जा रही है, जनसंख्या घट गई है, वाणिज्यको श्री सिंहासन पर बैठते ही मालदेवने लोदियों के अधिकृत वृद्धि नहीं है। । नगर और अजमीढ़का पुनरुद्धार किया। १५४३ ६० ये नदीके उत्तरी किनारेसे पाण्डु आका उपनगर आरंभ सिन्धियोंसे झालोर, शिवोना तथा भद्रार्जुनको अपने हुआ है। अभी मूल पाएडुआ नगर ही जंगलोंसे ढका अधिकारमें लाये। इस प्रकार धीरे धीरे ४० प्रदेशों को गा। उपनगगेंमें अभी एक भी दिखाई नहीं देता। अपने वाहुवलसे जीत फर इन्होंने मारवाडराज्यको सीमा. किन्तु यहां पहले बहुतसे लोगोंका वास था, इसका अनु. को बहुत छ पढ़ा दिया। इन्होंने नाना प्रकारके दुर्ग 'मान यहाँको बहुसंख्यक पुष्करिणी और इधर उधर पड़ी और अट्टालिका बना कर राजधानीको अलंकृत किया ईटोको ढेरसे किया जाता है । यहां मुसलमानोंके आगमन' था। इन्होंने जोधपुरके चारों ओर दुर्भय उच्च प्राचीर, के पहले वहुतसे हिन्दू राजा राज्य कर गये हैं। वीव वीच प्रायः तीन लाख रुपया खर्च करके मेरताका मालकोट दुर्ग, में यहां देवनागर अक्षरमें चिहित मुद्रा में पाई जाती है। भटिजातिको परास्त कर पोकर्णमें सुदृढ़ दुर्ग तथा भीम संथाललोग जव पहले पहल यहाँके जंगलको परिकार लोह पर्वत पर दुर्ग बनवाया । फलतः इनके शासनकाल करते थे, तय इस तरहकी बहुत सी मुद्राएं पाई जाती में जोधपुर उन्नतिकी चरमसीमा पर पहुंच गया था। थी। पाएड माके निकट राइहोराणी नामक एक देवी शम्बर झीलके लघणको आयसे इनका खजाना हमेशा का स्थान है जो अभी हिन्दूदेवी मानी जाती है। भरा रहता था। . पहले यह नगर नाना शौधमालासे विभूपित था। १५४२ ई० तक राज्यसीमाको बढ़ा कर मालमेय अभी यह भग्नस्तूपमें परिणत हो कर अनोत गौरयका ! राज्यकी रक्षामें लग गये। इस समय चारों ओर छोटे परिचय दे रहा है। पुरानी मस्जिदमें जुम्माकी मसजिद छोटे राजपूत-दलपति स्वाधीन होनेकी चेष्टा कर रहे थे । आज भो विद्यमान है। १००४ हिजरी में अकबर शाहके मालदेवने बड़े कौशलस उन्हें प्राण अधिकार देकर ':समय उक्त मसजिद बनाई गई थी। जुम्मा मसजिद, शान्त किया था। यहुत प्राचीन नहीं होने पर भी प्राचीन उपकरणोंसे बनी। उस समय हुमायू दिल्ली के बादशाह थे। किन्तु थोड़ हुई है। हिन्दुराजोंके बने मन्दिरका खोदिन प्रस्तर ही दिनोंके अन्दर प्रादेशिक शासनकर्ता सेरशाहने इसमें दिये गये हैं। . हुमायूको भगा कर दिल्लीका सिंहासन अपनाया। तब मालदही (हि० स्त्री०), १ एक प्रकारको नाय। इसमें राज्यव्युत-टुमायू ने मालदेषसे सहायता मांगी। किन्तु माझी छप्परके नीचे बैठ कर खेते हैं । २- एक प्रकारका मालदेवने विश्वासघातकता द्वारा अपने नामको कालड़- रेशमी डोरिया कपड़ा। यह कपड़ा पहले मालदहमें । कालिमासे कलुपित कर दिया। वियानाके प्रसिद्ध युद्ध में धनता था और इसके लहंगे धनाये जाते थे। इनके पड़े लड़के रायमल मारे गये। किन्तु उस समय मालदार (फा०पु०) धनधान्, धनी। मालदेवने ऐसा स्थानमें भी नहीं सोचा था, कि हुमायूं के मालदेव-जोधपुरके एक प्रसिद्ध राजा । मारवाड़ देखो। ये भायो घंशधर अशयर भारतके राजराज्येश्वर होगा । .राठोर-शफे. उज्ज्वल सूर्य स्वरूप थे । १५३२६०में इन्होंने हुमायूं के भागते समय मरभूमि-मध्य भमरकोटनगर. राठोर सिदासनको मुशोभित किया। इनके जैसे परा- में अपरफा जन्म हुआ ! मालदेवने शरणागत मतियिके Vol. VII. 122