पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५४८

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४८६ मालदेव-मालद्वीप (मलयद्वीप) । प्रति जो सघ्यहार नहीं किया था, इसके लिये उन्हें मालूम होता है, कि अकबरशाहने मालदेवके दुर्य - भविष्यमें बहुत अनुताप करना पड़ा था। अकबर देखो। यहारसे अपरकोटमें आसन्नप्रसवा जननो का दुःख स्मरण मालदेव शरणागत हुमायूं को सहायता नहीं करने पर कर ही सिंहासन पर बैठते हो १६६१ ई में मारवाड़ पर भी सेरशाही दृष्टि पर चढ़ गये। चढ़ाई कर दी थी। मालदेव का प्रियदुर्ग मैरता या माल ' १५४४ ई० में सेवाहने ८० हजार सेना ले कर माल-| फोट अकवर के हाथ लगा। नवलदृप्त अकबरने मालदेव. देवके विरुद्ध युद्धयात्रा कर दो। मालदेवने ५० हजार के सुरक्षित शैलदुर्ग जीत कर दोकानेरफे राजा रायसिंह- सेना ले कर उसका सामना किया। राजपूत सेनाओं को दे दिये। को सुशिक्षा और व्यूह निर्माणको देख कर युद्धविशारद दूरदशों मालदेवने सौभाग्यलक्ष्मीको अकबरको अनु.' सेरशाह दंग रह गया और मन ही मन पश्चात्ताप करने | रागिणो देख सम्राटको अधीनता स्वीकार कर ली और लगा। आखिर भागने का भी कोई उपाय न देख छावनी | अपने चौथे लड़के चन्द्रसेनको कुछ भेंटके साथ आजमेर डाल कर वहीं पर रहने लगा। इस प्रकार एक मास भेजा। उस समय अकयर अजमेरको जोत फर वहीं बीत गया, पर सेरशाहको राजपूत-सेना पर चढ़ाई करने रहने थे। उन्होंने चन्द्रसेनको उद्वत व्यवहार पर असंतुष्ट का साइस न हुआ। रणने पीठ दिखाना अत्यन्त अप. हो बीकानेरके राजा रायसिंहको सनद दे कर फिरसे मानजनक समझ कर कूटबुद्धि सेरशाहने विश्वास समस्त जोधपुरराज्य प्रदान किया। घातकताका अबलम्बन किया । वह राजपूत सेनापतियों- कुछ दिन बाद ही शत्रुको सेनाने जोधपुर पर धाया में अविश्वास पैदा करनेकी कोशिश करने लगा। किसी बोल दिया। मालदेवकी राजधानीमें घेरा डाला गया। सेनापतिके साथ संधिका प्रस्ताव चल रहा है, इस आशय युद्ध घोर यड़े साहससे युद्ध करके भी परास्त । पर एक पत्र लिख कर उसने मालदेयके पास एक दूत पोछे उन्होंने वश्यता स्वीकार कर तीसरे लड़के उदयं- भेजा। दूतके हाथ पत्र पा कर मालदेव को अपने सेना सिंहको उपढीफनके साथ सम्राटके पास भेजा। अक- पतियों पर संदेह हो गया। इस संदेह पर उन्होंने उन | घर उदयसिंहके नम्र व्यवहार पर बड़े सन्तुष्ट हुए और लोगोंके प्रति धुरा व्यवहार आरम्भ कर दिया। इस | उन्हें जोधपुरका भायो राजा यनाया। इसके कुछ दिन पर प्रभु भक्त राजपूतसेनापतिगण पडे मर्माहत हुए। वादें मालदेव १५८४ ई में इसे लोकसे चल यसे। मरते एक सेनापति इस अमूलक संदेहको सह्य न कर १२ समय उन्हें यहुत पश्चात्ताप करना पड़ा था। विपुल हजार मेनाके साथ मयल वेगसे सेरशाहको सेनाके मध्य | पराक्रमसे उन्होंने जो विशाल राज्य संगठन किया था घुस गया। हजारों पठानसेनाको यमपुर भेज कर पोछे उसका अधिकांश अभी मुगलसाम्राज्यमें मिला लिया आप रणनमें खेत रहा। उसके विक्रमसे सेरशाहका गया। किन्तु उनके जीते जी किसी भी मुसलमानको न्यूद दिलकुल छिन्न भिन्न हो गया। मालदेवको बहुत ऐसा साहस न हुआ, कि यह राजपूत कुलललनाका देरीसे सेरशाहकी चातुरो समझमें आई। सेरशाहने पाणिग्रहण कर सके। अगर ये कुछ दिन और घड़े कष्टसे उस विपद्से बच कर कहा था, 'मैं मरुभूमिमें | जोयित रहते, तो उदीयमान वित्तोरराज प्रतापसिंहके उत्पन्न मुट्ठी भर भुट्टे के लिये भारत-साम्राज्यको चौपट | साथ मिल कर राजपूत स्वाधीनताको स्थापन करने में करने उद्यत हुआ था। समर्थ होते । . : . . कुछ दिन बाद हुमायूको अदए लक्ष्मी प्रसन्न हुई। ____मालदेवके धारह पुतॉमसे १ १ ५८४ ६०में दिल्ली के राजप्रासाद पर मुगल-पताका उड़ने लगी। पितृसिंहासन पर बैठे । उदा कुछ दिन बाद ही हुमायू की मृत्यु हुई। होनहार पालक यहिन जोधयाईको समर्पण अंदर चौदह वर्षको उमरमें दिल्ली के राजसिंहासनपर मालद्वीप ( मलयद्वीप.) धेठा। । सिंहलके समीप एक . ।