पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५५८

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४६२ पानपूभा-पालव शकरके रसमें गोला घोलते हैं। फिर उसमें चिरौंजी । "यादी मानवरागेन्द्रसतो मलारसंशितः। पिस्ता आदि मिला कर धीमी आंच पर घीमें थोड़ा 'श्रीरागस्तस्य परचा यसन्तस्तदनन्तरम्। थोड़ा डाल कर निझा कर छान लेने हैं। कभी कभी हिडोटश्चाथ कर्याट एते रागाः प्रकीर्तिताः ॥" पानीकी जगह घोलते समय इस दूध या दही भो (सनीतदा०) मिलाते हैं। इस रागका स्वरग्राम- मालपूया (हि० पु०) मालपूआ देखो। . सा ऋग म ध नि सा मालवरी ( हिं० स्त्री०) एक प्रकारकी ईख जो सूरतमें मतान्तरसे-नि सा होती है। ग म प ध नि:: . मालभंडारी (हिं० पु०) जहाज परका यह कर्मचारी जिस मतान्तरसे-सा ग म प ध नि सा:: के अधिकारमें लदे हुए माल रहते हैं। (संगीतरत्नाकर ) मालभक्षिका (सं० स्त्रो०) मालं मत ( मंज्ञायां । पा| ____संगीत दामोदरमें इसका रूप माला पहने, हरित ३३१०१ ) इति ण्वुल् । कोडाभेद, प्राचीनकालके एक | वस्त्र गरी, कानों में कुडल धारण किये, संगीतशालामें प्रकारको खेलका नाम । त्रियों के साथ बैठा हुआ लिया है। इसकी धनश्री, माल भारिन् (सं० लि. ) मालां विनि-भू णिनि ( इष्टके. मालश्री, रामकोरी, सिंधुडा, मामायरी और भैरयी नाम: पीका माताना चितममारिषु । पा ६:३०६५ ) इति पूर्व को छः रागिनियां हैं। कोई कोई इसे पाड़य जानिफा पदस्थ हम्यः। मालाधारी, माला पहरनेवाला । । और कोई सम्पूर्ण जातिका राग मानते हैं। पाय मालभारी । सं० वि०) मालभारिन देखो। माननेवाले इसमें मध्यम स्वर वर्मित मानते है। यह मालय (सं० पु०)मा शोभा तस्याः लयः भास्पदं। १ | रातको गाया जाता है। ३ अश्वपति राजाफे मालती चन्दनाश । २ गराड़के एक पुतका नाम । ३ व्यापारियों- गर्भजात पुत्रगण । का झुड। ४ अभिसार-स्थानभेद, वह स्थान जहां जिया- ४ उपोदको, एक प्रकारका साग । ५मालवदेश. . से नायक मिलता है। वासी वा मालव देशमें उत्पन्न पुगप । ६ सफेद लोध । "क्षेत्रं वाटी भग्नदेवालयो दूतीगृहं धनम् । (त्रि०) मालवदेशसम्यन्धो, मालवेका। मालगन्ज श्मशानव नद्यादीनां तटी तथा ॥" मालय-भारतवर्षको एक प्राचीन हिन्दू जाति। इसका अधिकार अयन्ती (पश्चिम मालया ) और आकर (पूंयों ५पसमाप्ट। ६श्रीमंडनन्दन । (ति०) मलय. मालया) पर रहनेसे उन देशों का नाम मालय (मालवा) सम्बन्धी, मलयका। हुमा । ऐसा अनुमान किया जाता है, फि मालबोका "तनुच्छटोसमातमा नया भुवोत्तमाज्ञया । अधिकार राजपूतानेमें जयपुर राज्यके दक्षिणी अंश, फोटा भहारि शीतमाशयानिगमधूठमानया ॥' (लोदय २३७) तथा झालावाड़ राज्यों पर रहा हो। वि० स० पूर्यको ' मालय (सं० पु०) मालः उस्तक्षेन गत्स्यल माल (फेमाद री सदीके आस पासफी लिपिके कितने तायेके सिपके योऽन्यतरस्पा । पा २१.६ ) इत्यत्र 'अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते जयपुर राज्य उणियाराके निकट प्राचीन नगर (कों काशिकोपतःप प्रत्ययः । १ सयन्तिदेश। टक नगर)-फे संडहरसे मिले हैं जिन पर 'मालवानां जय' "अनायझा मगुरका अन्तगिरियगिरी। लिखा है। इस प्रकार और भी कितने सिपके पाये. नुदोत्तराः प्रनया मागवाईय माना" गये हैं। ये सय मिपके मालवगण या मालय जातिको (म.स्यपु० २१३६४४०) विजयके स्मारक हैं। परन्तु ऐने छोटे सिन्नों पर उन २ रागविर, छप्रकार राममि में प्रथम राग के नाम और विमदका यजमान हो भानसे उन नार्मा- कोई कोई इसे गैस्य गग भी काटने हैं। का स्पष्टीकरण नहीं हो सकना । कुछ लोगोंने उनके नाम (साहित्यद०३ परि०) | आयसार अषन्ता (पाश्चम मालया। आर आकर यूपा