पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५५९

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मात्रष-पालवा ४६३ पढ़नेका यत्न किया है और २० नाम प्रकट भी किये हैं। यह अक्षा० २२ २० से २५ । ३० तथा देशा घे सव नाम विलक्षण पर्व अस्पष्ट हैं, यथा-मपंचन, ७४३२ से ७६ २८ पू:के मध्य विस्तृत है। इसका यम, मजुप, मपोज, मपय, मगजश, मगोजय, मगच्छ, पय- रकवा ८६१६ वर्गमील है। इसमें १५ शहर तथा ३४८४७ मरज इत्यादि । इन्दी अस्पष्ट पढ़े हुए नामों परसे कुछ गांव लगते है। इसको आ यादी करीव १०॥ लाग्य है। 'विद्वानोंने यह भी कलाना कर डाली है, कि मालय एक मालवाके जैसा उपजाऊ प्रदेश मध्यभारतमें दूसरा विदेशी जाति थी। किन्तु इसका कोई प्रमाण नहीं। कोई नहीं है । वर्षाके अमावसे यहां कमो मो अकाल नहीं 'मिलता। इसलिये हम उसे स्वीकार करनेको तैयार नहीं पड़ता। इन्दौर, भूपाल, धार, रतलाम, जायरा, राजगढ़, है। अव तो मालय जातिका नाम निशान भो नहीं। नरसिंह गढ़ और ग्वालियरके नीमन आदि राज्य इसके । अन्तर्गत हैं। अत्यन्त पुराना भीर प्रसिद्ध अमेन नगर मालव-मानवा देखो। | मालवाकी राजधानी था। विक्रमादित्यका नाम उज्जैन. मालवक (सं०नि०)१ मालपदेशसम्बन्धी, मालवेका।। के साथ इतिहास में अमर हो गया है। -(पु०)२मालवदेशवासी, मालयाका रहनेवाला। प्राकृतिक दृश्य । मालवगुप्त ( सं० पु०) भाचायभेद । रङ्गनाथने इनका इस प्रदेशकी भूमि ऊंची नाची है। छोटी छोरी उल्लेख किया है। शैलश्रेणो और पहाड़ी नदियां तमाम फैली हुई मालयौड़ (सं० पु०) पाड्य जातिका एक संकरराग ।। "' है। बांस, कांटोंक माह तथा तरह तरहको छोटो 'इसमे पश्चम वर नहीं लगता। इसका स्वरग्राम मध। . । छोटो लताओंसे जमोन एकदम ढको हुई हैं। जंगलों. 'नि स रि ग म है। इसका उपयोग वोर रसमे किया में बाघ, चोते, भाद, सूअर, हरिन आदि पशु रहते जाता है। कुछ लोग इसे सम्पूर्ण जातिका मानते हैं। है। लेकिन भय खेताके विस्तारके कारण जगलोंका और इसके गानेका समय सायंकाल यतलाते हैं। रकरा कम हो रहा है। समो नदियां दक्षिणकी ओर मालयरद्र । सं० पु० ) पक कपि । क्षे त फयिफण्टा समुद्र में मिली है। केवल एक नदी उत्तरकी और बदती तरणमें इनका उल्लेख है। मालयत्ति (सं० पु० ) एक प्राचीन जारिका नाम । हुई चम्बल महानदी में गिरी है। लोहा तथा पत्थरको मालवधी (सं० स्त्री०) धोरागकी एक रागिनीका नाम। छोड़ और कोई खनिज द्रव्य निकाला नहीं जाता। यहां य३८६च वर्षा होती है। यह सम्पूर्ण जातिकी रागिनी है और इस गानेका भूतत्त। समय सायंकाल है। नारद इसे मालपकी रागिनी मानते है और हनुमत इसे हिंडोल रागको रागिनी ___ मालवाका पश्चिम भाग दाक्षिणात्यके विस्तृत पहाहा. 'लिखते हैं। हनुमत इसे ओहव जातिको मानते है । से भरा हुआ है। ज्यालामुखो पहाड़से निकले हुए और इसके गाने में धैवत तथा गांधारको यर्जित लिखते द्रव पदाथोस इस भाग रचना हुई है। समूचे प्रदेश, है। इसे मालश्री मोर मालसो मा कहते हैं। घड़ा पड़ो शिलायें इधर उधर पिखरी पड़ी है । यह सय मालवा (हिखो०) पक प्राचीन नदीका नाम । देश भूतत्त्ववेतागोंने निश्चय किया है, कि पर्णत-युगमें "हिररावती वितस्ता च तथा सन्तती नदी। दाक्षिणात्यका ज्यालामुखी पर्वत मोलास्थान था । मालया • वेदस्पतिदेवती मालवाथाश्ववत्यपि ॥" को पत्थर जलवायुफे कारण रूप नहीं बदलते । मालभूमि (भारत १३।१६।२५)) प्रदेशमें इस तरहफे पत्थर बहुत मिलते हैं। मांद नगरी. मालया-मध्यभारतका एक प्रदेश । यह मध्य भारत के मयन यनानेके लिये जो सब निज पत्थर निकाले एजेन्सीके पश्चिमांशमें सबसे बड़ा भाग है। इसमें कई गये थे घे मी तक वर्तमान हैं। देशी राज्य है। यह पोलिटिकल एजेएट के अधीन मौर यह मएडलेश्वर तथा महेश्वर नामक दो स्थान में नर्मदा- ‘पोलटिकल एजेण्ट मध्यमारतफे एजेएटके अधीन हैं। । नदोके पंकोंको तइसे बना हुआ एक बड़ा भूमिका Vol, Xvil, 124