पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५८३

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माली ५०७ नवशाखके मध्य गिने गये हैं। इनका छुआ जल श्रेष्ट' डाक्तर वायेजने लिखा है, कि ढाके मादिके मालियों. ब्राह्मण भी पी लेनेमें आनाकानी नहीं करते। . में दो दल हैं। किन्तु इनमें विशेष पार्थपय दिनाई नहीं बालके माली मानी उत्पत्तिके सम्बन्ध में कहा करते देता। फेवल विवाह आदिफे रिवाजोंमें युछ अलगाव है-उनका पूर्व पुरुष मथुराराजवंशके दरबार में फूल दिया दिखाई देता है। एक दल दूसरे दल में यदि विवाह करता था। मगवान राष्ण कंसासुरको मारनेके लिये करता है, तब उसको दोनों दलके लोगों को भोज देना मथुरामें उपस्थित हो कर अपनी वेशभूपात पर पड़ता है। कन्यापक्षको अधिक दान दहेज नहीं देना घर्तन करना चाहते थे ऐसे समय इन मालियों का पूर्व- पड़ता। वाल्यविवाह प्रचलित है, विधवाविवाद नहीं। पुरुष कंसका मालो फूल ले कर कंसके घर जा रहा धाः पन्नीके चरित्र दोष दिखाई देने पर उसको जातिच्युत भगवान श्रीकृष्णने इस मालीको बुला कर अपनी चूड़ाम होना होता है और उसके स्वामीको भी प्रायश्चित्त करना फूल लगा देनेके लिये कहा । उन वाञ्छाकल्पतरु विष्णुः पड़ता है। के अवतार श्रीकृष्णको अभिलाषा पूर्ण करने के लिये बङ्गालके माली सभी वैष्णव है। गोसाइयोंसे मंब. उनको चूडाम मालीने फूल लगा दिये। किन्तु फूलोंका दीक्षा लेने हैं। चेयकको (वसन्तरोग ) वीमारीको वन्धन ढीला देव भगवान्ने सून से बांध देनेका हुन आराम करनेमें ये बड़े निपुण होते हैं। चैन महीने के दिया। मालीको उस समय कहीं सूना दिखाई नहीं ले दिनको मदाधूमधामसे शीतला देवीको पूजा करते दिया । चट उसने अपने यज्ञोपवीतसे सूता तोड़ कर कृष्ण हैं। इस समय सभी शीतला देवी की पूजा अपने अपने का आदेश पालन किया । यह देख कृष्णने तिरस्कार कर । घरों में किया करते हैं। कहा-"हाय ! तूने यमोपवीतके विषयसे अनभिज्ञ होनेके पिहारकं माली वङ्गालके मालियोंसे विशेष उन्नत है। 'कारण ऐसा अनर्थ किया है, इससे अब तुमको यशो.। यहां ये कुम्हार, फोहरी भोर कहार आदिफे घरायरीके हैं। पवीत प्रहण नहीं करना होगा। इस पापके प्रायश्चित्त- इनके हायका जल ब्राह्मण पीते हैं। पार्थपय इतना ही स्वरूप तुम्हें शूद्रत्व भोग फरना होगा। उसी समयस, है, कि इनमें विधयावियाह प्रचलित है। 'मालो जाति यज्ञोपवीत-संस्कारशन्य हो शूद्रत्यको प्राप्त! फिर युक्तप्रदेशके मालियोंकी उत्पत्ति घट्वालको तरह नहीं। इनका कहना है कि पकवार पुष तोड़ते बङ्गालो मालियोंका विश्वास है, कि अन्यान्य उच्च समय पार्यतीको उंगली में कांटा चुभ गया । इस कांटेको श्रेणोफे लोगों को तरह ये भी बादशाह जहांगीरके जमाने शङ्करने निकाल कर रतनावको बन्द किया था। पार्वती- में युकप्रदेशसे ही आ कर बस गये हैं। बङ्गाल में इनको को उगलोसे जो रक्तपात हुभा था, उसी रनासे माली बहुत अधिक बस्ती देखी जाती है । इसका कारण यह भी! जानिकी उत्पत्ति हुई। हो सकता है, कि यङ्गाली भारतीय विलासप्रिय जातियों यह जाति युक्तपदेशमें इस समय सामाक्षिक में पक है। इनके यहां फूलोंका व्यवहार अधिक देव उन्नतिमें अप्रसर है। वैदिक युगमें पुप्पोका उतना आदर जाता है। इससे इनकी संख्या और प्रान्तोंसे समधिक) ऐना नही जाता है। हां, जवसे पुणोंके सुम्मा-सौन्दर्य सिदेती। बहालको मालियों में दो दल हैं। १ला को देख लोग यिमोदित होने लगे है. तब (पुष्प-ध्यय. फूलकटा माली-पे कई तरहके फूलोफे गहने बना कर सायी जाति) माली जातिको आवश्यकता मुई। पाश्चात्य घेचते हैं। दूसरा दुकानदार माली-यह दुकान पर कवि होमरके समकालमें यूनानी पुष्पका मादर होने माला, हार या फूलोंके गहने दना बना कर येत्रा करते पर मो इसकी उपजका कुछ विशेष उल्लेख दिखाई नहीं । फूलका मालियों में तीन श्रेणियां हैं-राठी यारेन्द्र और अररिया। इनमें मालम्यायन, काश्यप, देता। मौदल और शारिदत्य गोल देखा जाता है। अन्यान्य ___यहां वहॉलिया, भागीरयो, दिलीपाल, गोले, कपूरी, उपजातियों की तरह इनमें सगोत्र विवाह नहीं होता। । कनोजिया, और फूलमाली नामसे भाट प्रधान श्रेणी