पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५८६

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पारो (पाली)-मालेरकोटला . उपासना करते हैं। प्रत्येक गृहस्थके घरके सामने एक । इनका विश्वास है, कि देमानो प्रसन्न हो कर जो वस्तु । काठका टुकड़ा गाड़ा रहता है । कृषिकार्यके समय तथा मांगेगा उसीसे उस मृत् व्यक्तिको प्रेतात्मा तृप्त होगी। कोई मुशीवत आने पर उस काठके टुकड़े में सिन्दुर । इसके बाद जनसाधारणके साथ देमानोको भी पिलाया तेल आदि लगाया जाता और क्करे, मुर्गे आदिको बलि जाता है। दे कर उसकी पूजा की जाती है। पूजाके समय गांवके । पर्वतके शिखर पर प्रायः समतल स्थान देख ये लोग . . . लोग यहां अधिक संख्यामें जमा होते हैं। इनका पुरो- बांसके टुकड़ोंसे घर बनाते हैं । गाय, सूअर आदि पशुओं- हित सरदार ही होता है। वह काठकी पुतली धर्मके | का निन्दित मांस तथा दुसरेका जूठा खानेमें ये लोग गोसाई (सूर्यदेव)-रूपमें पूजी जाती है । शराब चुआनेके जरा भी घृणा मालूम नहीं करते। . : . समय अथवा गांवमें बाघ, संक्रामक रोग आदि उपद्रव मालेगांव-१ बम्बईके नासिक जिलेका एक तालुक । यह उपस्थित होने पर एक खएड काले पत्यरको वृक्षके नीचे अक्षा० २०२० से २०५३ उ० तथा देशा०७४.१८ से रख कर ये लोग रक्षीदेवताको पूजा करते हैं । अलावा ७४.४६ पू०के मध्य विस्तृत है। भूपरिमाण ७७७ इसके १० ग्रामके या प्ठात्रीरूपमें चालनाद-देवताकी वर्गमोल है। इसमें १ शहर और १४६ ग्राम लगते हैं। पूजा होती है। उक्त प्रतिमूर्ति भी फाले पत्थरकी धनी जनसंख्या लाखके करोव है। इसका उत्तर-प्रदेश पर्वत- होती है। चालनादिकी पूजाके समय वकर, सूअर और मय और दक्षिण प्रदेश समतल है। यह स्थान बहुत गायकी वलि दो जाती हैं। इस प्रकार बांस, पत्थर स्वास्थ्यकर है। घोचमें गिरना नदी कई शाखा प्रशाखा. और काठके टुकड़े को ले कर ये पो गोसाई, द्वार गोसाई, में विभकं हो गई है। वर्ष भरमें यहां औसतसे २० इञ्च फुलगोसाई, गुमो गोसाई, चामदा गोसाई आदिकी पूजा वृष्टिपात होता है । पिण्डारो-युद्धके समय मालेगांव फरते हैं। सभी पूजाओं . नामदा गोसाईकी पूजा बड़ी अरवसेना द्वारा अधिकृत हुआ था। अगरेज-सेनापति धूमधामसे होती है। फर्नल डावेलने १८१८ ई में नगर और दुर्ग पर कब्जा गांवके मोडल (सरदार ) को छोड़ कर नाइया, किया। किन्तु युद्ध में २०० अंगरेजी सेना मारी गई देमानो और चेरिन भो किसी किसी काममें इनके पुरोहित थी। सरव लोग युद्ध में हार खा कर जलपधसे भागे। होते हैं। इन सबों में देमानो हो-अधिकतर शक्ति सम्पन्न नरुशङ्कर नामक एक अरव-सरदारने १७४० ईमें यहाँका और जनसाधारणके पूजनीय है। उनका विश्वास है, दुर्ग वनवाया था। कोई कोई कहते हैं, कि दिल्लीश्वर- कि ये ऐश्वरिक शक्तिसे शक्तिमान हैं। भूत भगाने और के भेजे हुए एक स्थपतिसे उक्त दुर्ग बनाया गया था।' रोग झाडने में ये लोग बड़े निपुण हैं। ये गलेमें कौड़ीकी २ उक्त तालुकका एक शहर। यह अक्षा० २०३३ माला पहनते और हल्दी नहीं खाते हैं। . ' उ० तथा देशा०७४३२ पू०के मध्य विस्तृत है। भूपरि- घे लोग मृतदेहको गाड़ते हैं। सांप काटने अथवा माण २० हजार के करीव है। १८६३ ई०में यहां म्युनिस्- किसी वीभत्स व्यापारसे मृत्यु होने पर लाश जंगलमें | पलिटी स्थापित हुई है। शहर में दो सूत कातनेके कार- फेंक दी जाती है । उनका विश्वास है, कि मुर्देको खाने हैं। अलाया इसके एक सव-जजको अदालत, दो जमीनमें गाड़नेसे वह प्रत बन कर गांवमें ऊधम मचा अंगरेजी स्कूल और एक अस्पताल भो है। ... सकता है। मृताशौचके पांचवें दिन ये आत्मीयवर्गको मालेया.(सं० स्त्री० ) मल ढक ततप्टाप् । स्थूलैला, बड़ो भोज देते हैं। इन लोगों में भी पापमासिक और वात्स- इलायची। . .. .. . रिक धाद्धको विधि है। किन्तु यह हिन्दूशास्त्रानु- मालेरकोटला---गाव • गवर्मेण्टके अधीन एक करद मोदित नहीं है। इस पाण्मासिक वा वार्षिक पिण्ड राज्य । यह अक्षा० ३०२४ से ३० ४१ उ० तथा देशा० दानके समय देमानो मृतव्यक्तिको तरह अपनेको सजा ७५४२ से ७५.५६ पू०के मध्य अवस्थित है। भूपरि- कर मृतव्यक्तिके आत्मीयसे अभिलपित वस्तु मांगता है। माण १६७ वर्गमोल और जनसंख्या ८० हजारके लगभग