पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

माल्पक-पाल्यवान् ५५ मानसिक और शारीरिक शक्ति बढ़ती है, ऐसा शास्त्रों "सोऽय शैनः ककुभमुरभिर्माल्यवानाग यस्मिन् । कहा है। माला पहन कर स्वयं उसे गलेसे उतार न नोलस्निग्धः अयाते मिसरं नूतनस्ताययाः ॥' फेंकना चाहिये तथा केनों के बाहर भी माला धारण (उत्तर रामचरित) निषिद्ध है। सिद्धान्तशिरोमणिके मतसे यह पर्वत फेतुमाल और "नारनीयात् संधिवेलायां नगच्छेनापि संविशेत् । इलावृत चर्पके सीमापतरूपसे निर्दिष्ट है। नील श्रीर ग चैव प्रक्षिखेद्भुमि नात्मनोपाहरेत् सनम् ॥" निषध पर्वत तक इसका विस्तार है। - न हि गर्दा कथां कुर्यादेवहिर्माल्य न धारयेत् । २ राक्षसविशेष । यह राक्षस गन्धर्यकन्या देय. ‘गवाक्ष यानं पृटेन सर्वधीय विहितम् ॥" (मनु ४ अ०)। यतोके गर्भसे राक्षस सुफेशके गौरससे उत्पा हुआ 'नच माला घृता स्ययमेवापनयेदर्थादन्येनापानयेदिस्युक्त है। इसके भाईका नाम सुमालो था । इसी सुमाली- मिति, केशकलापादहिमाल्य न धारयेदिति च। (कृल क) की कन्या निकपाके गर्भसे विश्वविख्यात रारणका जन्म .. अपने हादसे उठा कर माला नहीं पहननी चाहिये । हुमा धा । (रामायण उ०६ स०) (त्रि०) ३ मालाविशिष्ट, इससे कोई फल नहीं होता, बल्कि अति शीघ्र श्रीभ्रए । जो माला पहने हो। होना पड़ता है। | माल्ययती ( स० स्त्री० ) पुराणानुसार एक प्राचीन नदी. "स्यय माल्यस्यय पुष्प स्वय पृटच चन्दनम् । का नाम । (नि.)२जो माला पहने दो। नापितस्य रहे. दौर काकादपि हरेत् भियग ॥" | माल्ययन्त (स० पु०) माल्यवान् देखो। (फर्मलोचन) मान्न्यवान् (मालवान् )-वम्बई प्रदेशके रतागिरि जिला- . अग्निपुराणमें लिखा है--ध्रद्धापूर्वक ब्राह्मणोंको न्तर्गत एक उपविभाग । यह अक्षा० १६१ से १६१६ निमन्त्रण कर यदि गन्धमाल्यादि द्वारा उन्हें प्रसन्न उ० तथा देशा० ७३ २७ से ७३°४१ पू०के मध्य भय- किया जाय, तो भगवान उस पर बहुत सन्तुष्ट होते हैं। स्थित है। भूपरिमाण २४० वर्गमील और जनसंपया भामन्त्रयित्वा यो विमान गन्धमात्य श्र मानः। लाखसे ऊपर है। इसमें मालयान नामक एक शहर । तर्पयेन्ट्रद्धया युक्तः स मामयते सदा" (अग्निपु०) और ५८ माम लगते हैं। इसके उत्तर में देवगढ़ उपविभाग - माला पहम् कर बाहर नहीं जाना चाहिये। पूर्वमें सामन्तवाडी-सामन्तराज्य, दक्षिणमें कालीमाड़ी . "वहिर्मास्य यहिगन्ध' भार्यया सह भोजनम् । और पश्चिममें अरय-सागर है। . विध्याद त्या या प्रसव वियर्जयेत् ।" (कुर्मपु०) रतगिरिका अधित्यकामय उपकूलमाग ले कर यह माल्यक ( सं० पु०)१मदनस, दौनेका पेड़ । २माला। उपविभाग संगठित है। इसके मध्य दो फर कोलम्य माल्यचन्दन (सं० क्ली) सम्माना व्यक्तिको सम्मान और कालावली खाड़ी चलो गई है। इस उपविभागके रक्षा के लिये प्रदत्त मालाचन्दनादि वस्तु । मध्यदेश में जंगलोंसे आच्छादित गिरिमाला गोमा देती माल्यगुण (सं०१०) मालाका गुण । है। पथरीली जमीन होने पर भी फसल अच्छी लगती माल्पजीवक (सं०पु०) मालाका, माली। है। काली और कालायलो पानी के निकट धान और माल्यपिण्डक (सं० पु०) माल्यगुल्छ। इस बहुतायतसे उपजती है। मालपान उपसागरफे माल्यपुष्प (सं० पु०) मालाकाराणि पुपाण्यस्य। शण- राजकोट अन्तरोपस्टोमरोंके रहने के लिये एक सुन्दर वृक्ष, सनका पेड़। चन्दर है। उक्त दोनों गाड़ी में छोटी छोटो नाये २० माल्यपुरिया :( सं० सी०) माल्यपुष्प कन्-टाप, मत मील तफ माल ले कर आतो जानी है। मालयान उप. इत्यश्च । शणपुप्पो। मणपुषी देखो। फूलस्थ देमगढ़, आनष्ठा और माल्यवान पन्दरमें याणिज्य माल्पयत् (स'० पु. ) मालामतुप् मस्य यः। १ पर्यंत जोरों चलता है। पिशेर २ उता. उपविभागका एक नगर । यह अक्षा ।