पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५९१

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माल्ला (मावाद) ५१७ रामचन्द्रने नदी पार कर जिस पथका अनुसरण किया था, खड़विन्द, चाधमी आदि और भी कई शाखा जातियों के यह इस समय 'रामचौरा के नामसे विख्यात है। इस नाम दिखाई देते हैं। समय भी यहां मलाहगण पूर्ववत् नदी पार कराया करते ___उपयुक्त श्रेणीको ममी जातियां निषादवंश-उम्भूत हैं। मिर्जापुर के रहनेवाले मल्लाह टोस ( तमसा ) नदी नहीं हैं। श्रावस्ती देशमें रहने के कारण याथा, श्रीयाधय तीरवत्तों शीर्ग प्राममे रहते और नायोंके चलाने का काम : या श्रीवास्तय नागमे परिचित हैं। चादन चर्य नामक करते हैं। बनारसके मलाहों का कहना , कि रामचन्द्रने जातिच्युत पैश्य जातिका एक शाखामे उत्पन्न है। प्रसन्न हो कर उनके दलपतिको एक घोड़ा दिया। निपाद धुविया, घट, यडविन्द, निषाद आदि जातियां निराद । की शामाये हैं। दलपतिने मूर्वताके कारण घोड़े की ठगामको मुहको ओर न लगा पूछकी ओरसे लगाया था। उसी सम्य .. इन जातियों में परस्पर खानपान नहीं है और तो पया से उनमें नौकाके पीछे पाल लगाने की प्रथा हो गई। । हुक्का पानीको भो एकता नहीं है। इनमें युटोंकी एक. - इन किम्बदन्तियों में कुछ तथ्य हो या न हो किन्तु पञ्चायत बनाई जाती है। यह पञ्चायत स्यजाति लोगोंके इतना जरूर कह सकते हैं, कि प्राचीन कालम जो अनार्य | गुण और दोषों पर विचार करते हैं। यदि किसीको निगद-सुत मार्गय जाति नाय चलाया फरतो थी, पञ्चायत जातिच्युत करती है, तो यह भोज दे कर जाति मिल जाता है। जो सामाजिक अवस्थामै अपेक्षारत यही मुसलमानी युगसे अरबी मल्लाह नामसे पुकारी जाने लगी । इसमें जो स्वतन्त्र एक श्रेणी विभाग उन्नत है घे ही वालविवाहके पक्षपाती हैं। वियाहफे पहले यदि कन्या पर-पुरुप पर आसक्त हो, तो उसको था, यह भी एक उत्तम दलमें परिणत हुआ है। जाति- तविद पण्डिनोंका भी यह अनुमान है। यह अनु- समानमें बड़ी लांसना भोग करनी पड़ती है। स्वजाति के मान कहां तक युक्तिसंगत है. यह विवेचनोय है। निषाद पुरुषसे भासत होने पर उतना दोपायह नहीं होता, यदि धादि छोटी जातियोंके सिया मुसलमान आदि अन्यान्य मन्य किसी जातिगे पुरुपसे प्रणयासक्त हो, नो यद कन्या जातियों में भी मलाह जातिका अस्तित्य देखा जाता है। और उसका पिता जातिच्युत कर दिया जाता है। किन्तु इस समय निम्न शूनश्रेणोकी छोटी छोटो अनार्य जातियां जातिके लोगों को फेवल एक मोज देनेसे ही सब झगड़ा तय हो जाता है। यह कन्या फिर समाज में विचार कर भी इसी गृत्तिके भयलम्बन पर याध्य हुई है। बङ्गालमें सकती है। इस समय गौरी, चारनविन्द, केवट, तोयर, मुरियारी, इनमें विवाहका कोई नियत निदृष्ट समय नहीं और सुरगया, मालो और फेयर्त भी माला नाममे पुकारे जाते एक यंशमें पियाह फरने में कोई अड्चन दिसाई गद्दी और मल्लाहका काम करते हैं। देतो। जो अपने यंगको जानने है, ये अपने यंगमें कमी गत मनुष्यगणनासे मालूम हुआ है, कि हिन्दू मल्लाहोम, विवाह-सम्पन्ध नहीं करते। हां, जी चार पांच पोदी ६२५ शाखायें तथा मुसलमान मलाहोम २२ शाखायें हैं। पर अपने यंशको भूल गये हैं।ये होभलस अपने यंश. इनमें अलीगढ़का चौधरिया, मधुराका चालिया, भागरे में विवाह कर सकते हैं। गौर मैनपुरी जिलेका जरिया, कानपुरका भोक, इलाहा- इनकी वियाह-पदति चहीया नामस पिण्यात है। वादका नाथ, बनारसका भारमार, गाजीपुरका तोयर, पहले यर और कन्याका देवा देखी, उसके बाद कुएदली. पलियाका कुलयत, गोरखपुरका गोंदिया, यस्तीका धेल. का मिलान, इसफे याद यर-कन्याको घर उपहार दे फोंडा, महोदर, सोनहार और तुरहा, गढ़वालका भोंटियाविवाह-सम्बन्ध हद किया जाता है। इसके बाद पण्डितों. भार मछहा, लखनऊ और वारायको मिलेका रामटिया, को घुला फर शुम दिन निपत कर घर-कन्याको तेल उन्नाय जिलफा धार, फैजावादका रीतिया और सुल- ऊबटन लगाया जाता है। इसके बाद लम्न ठाक पर तानपुरका मास तथा जलसतो शाता हो प्रधान है। दोनों पक्ष अपने अपने हितनात इष्टमित्रको निमन्त्रण दे उपर्युक दल भीर मारगफे सिया इलाहापादफे घोष, कर पुलाते है। Pol, aru. 130