पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पास ५२५ - . १२ महीनेका घर्ष होता है। किसी किसी समय की शुका पञ्चमीको योर फाल्गुन मासको पूर्णिमाको १३ महीनेका भी ध हो जाता है । जिस वार १३ महीने होलो मनानी चाहिये। (पद्मपुराण पाताक्षस. १२०) फा वर्ष होता है, उस वर्ष इन तेरह महीनों में एक मास हरिभक्तिपिलासमें भी मासहत्यका विशेष विवरण · मलमास होता है। यह मास निकृष्ट है ; इसीसे 'मल- दिया है। मास' नाम हुआ है। विशेष विवरण मन्नमास शब्दमें देखो। मात्तं रघुनन्दन त्यतत्यमें मामत्यफे विषयमें • , दो दो मासकी एक एक ऋतु होती है। इनमें कहते हैं.-- माघ फाल्गुन शिशिर, चैत्र वैशाग्न घसन्त, ज्येष्ठ आपाढ़ पैगाखकृत्य- वैशावमाममें प्रातःस्नान, संकान्ति. ग्रीष्म है। ये तीन ऋतुर उत्तरायण हैं, पे देवताओंफे दिन के दिन भोज्य पदार्थ के साथ जलपूर्ण घटदान और है। श्रावण भाद्र घर्पा, आश्विन कार्तिक शरत्, अप्रहण अक्षय तृतीयाके दिन स्नान, दान और शतादिका अनु. और पाप हेमन्त है, ये तीन ऋतुप दक्षिणायण हैं। ये छान करना चाहिये। इस मासमें मसूर और गोमको देवताओंकी रात्रि है। पत्ती जरूर खानी चाहिये। मोमके भोजनसे सर्पका भय "तथा च ध्रुतिः-तपस्तपस्यो शैशिरातुः, मधुश्च । नहीं रहता। मामके किमी दिनको गोमकी पत्ती वा माधयश्व यासन्तिकातुः शुभश्व शुचिश्च मावृत्तुः, लेनी चाहिये । मतदुदगयनं देवानां दिनम् । नमश्व नमस्यश्च यापिका- "मसर निम्यपत्राभ्यां योऽत्ति मेपगते रयो । वृतः इपश्च उजश्च शारदातुः सहाश्च सहस्पश्च है. भपि रोपान्यितस्तस्म तनफा किं करिष्यति ॥" न्तिकातुः, अयैतदक्षिणायन देवानां रात्रिरिति ।" (कत्यतत्त्व) ( मलमासतत्त्व ) भूतु गन्द देखो . म मासफे शुमा द्वादशीको पिपीतक बादशीयत मौर • किस किस मासमें फोन कोन धर्म कर्म करना यवधान करना होता है। चाहिये, इसका विशेष विशेष विधान शास्त्र में लिया है। ज्येप्रकृत्य-कृष्णा चतुरंगोम माथिवांयत, शुझा पठोको पहापुराणमें मासत विधान इस तरह लिखा है.- भारपणपठो और महाउपेष्ठोमें जगनाथ दर्शन या गङ्गा मापाढ़ मासकी शुमा द्वितीयामे वृपोत्सय, एकदशीफे । म्नान करना चाहिये। दिन स्वापोत्सय (शयनैकादशा), थायण श्रवणाविधि, भापादकत्य-अम्युवाची ममयमें समय निवारणके भादमें जन्माष्टमी, माश्चिनमासमें पाच परिवत्त नः। लिये दुग्धपान, नवोदकश्राद्ध और चातुर्माम्य-प्रतारम्म पकादशी और कात्तिकमे उत्थान. एकादशी करनी : और विष्णशयन एकादशीयत करना चाहिये। चाहिये। जो यह नहीं करते यह विष्णुद्रोही होते हैं। श्रावणकृत्य-श्रावणमासी शुभ पंचमोको आंगन में कार्तिक मासमें दीपदान, भप्रदायणका शुरुषष्ठोंमे शुन्न यन्त्र नूहोवृक्ष (धुर)-को स्थापना कर मनसादेवो और मा. मारा छीपूमा और सूनो यत्र द्वारा विष्णुपुमा, पाप : नाग की पूजा करना चाहिये। इमस मर्पमय नियारित • मासमें पूथ्याभिषेक और माघमासकी संझान्ति निधी होता है। . सुगन्धित तण्डुल, विष्णुको निवेदन कर निनोक्त मन्त्र भाद्रकृत्य-जन्माष्टमीयत, शुगा पश्चमीमें सर्पका • पाठ करना होता है, चिव यना कर पूजा करनी चाहिये। इसीसे इसको "जीवन सर्वभवाना जनस्व जगद्गुरो। , नागपञ्चमी कहते हैं। पाय परियत ग एक.दशीमत भी सन्मापालीनता माता स्वयेषजनिता प्रभो ॥" भवश्य कय है। इस मासको गुहा और पण चौथके (पापु० पाता: स. १२ भ०) दिन चन्द्र नहीं देखना चाहिये । भाद्र शुक १५ घनमी. पीछे नाना प्रकारको स्वादिष्ट यस्तुओं द्वारा प्राह्मण का नाम भघोरा-चतुर्दगो है। इस दिन शियफे लिये भोजन कराना चाहिये। इस दिन एक माहाण भोजन | उपवास और अनन्तप्त करना चाहिये। इस मासको फरो प्राण मोजन करानेका फल होता है। मापस शुला सप्तमी, थरमी मीर नयमी निधि पुगकुटीबत, Vol.xVII, 122