पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६०५

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पाहिथ्य ३३३ 'ज्योतिष शाकुन शास्त्र साशास्र जीविका । "एतेषा याजनं पस्नु बामण' कुरुते यदि । मुगन्ध यनिता यन्त्र गीत' ताम्बुनमांजगम् ॥४६ स याति नरक पार पावदिन्द्रामदुई श॥ सय्या विभपा मुरतं भोगाष्टकमुदाहृतम् ।" (पूर्वाद २६), अद्विजाना जान चान पाजनक प्रविग्रहम् । क्षत्रिय और पैश्या संयोगसे माहिष्य जातिको । याहाणी नेय राहनीयादिति प्राहुर्मुनीश्वराः ॥" उत्पत्ति हुई। ये अष्टभोगनिरत, चतुःषष्टि मयित् है। अर्थात् मनुष्य जिस खो द्वारा घश्यावृत्तिसे धन इस जातिको उपनयनादि सत्र किया वैश्यकी तरह उपाज Mat a उपार्जन करता है, उस स्त्री या भार्याको महिपो कहते होती है। ज्योतिप, शायन और स्वरशास्त्र ही इस • ६, उससे जो पुत्र उत्पन्न होता है, यह माहिप मामले एडगोलक, ब्राह्मण जाति के लोगोंको उपजीविका है। सुगन्ध, स्त्री, वस्त्र, । गीत, पान, शय्या, अत्रकार और रनिकोड़ा आदिको । औरस और शूद्राके गर्म से जो पुत्र होता है, घे और माहिपेय सुत--ये सब निन्दित है। जो प्राह्मण इनका अप्ठभोग कहते हैं। याजन ( यजमानी करता है, यह १४ इन्द्रफे अयस्यान मांचलायनने कहा है- समय तक घोर नरक में जाता है । मुनीभ्यरोंका आदेश , "श्यायां क्षत्रियाज्जातो माहिन्याम्बसंगकः । | कि कोई ग्राह्मण इन अद्विजों का जल, अन्न या यजमानत्ति चायास्यामनेनैव भवदीवरसंशकः ॥" और दान प्रहण न करे । जो हो, उक्त प्रमाणसे हम तोन (आश्यसायन स्मृति० २१ अ.) ! माहिप्य पाते हैं. १ क्षत्रिय धैश्याजात उच्च श्रेणोश • क्षत्रिय और वैश्याफे संयोगसे माहिल्य अबाउ जाति । माहिश्य, २ करणीके गर्भजात मध्यम मादिग्य और येश्या- भीर गुप्तमापसे (अवैधरूपसे ) क्षत्रियसे ही पैश्याफे वृत्तिसे उत्पन्न मति जघन्य माहिप्य। 'गर्म से धोयर जाति उत्पन्न हुई है। इस समय बङ्गालके केयर्स अपनेको मादित्य करते - आश्चलायनका और भी कहना है,-- हैं। इस सरदका परिचय देने का कारण प्रायवर्तपुराण. "अम्बष्ठायां समुत्पन्नः सुवर्णेन द्विजोत्तमाः। में लिखा है। मग्निनयन्तकाल्यो स इति प्रोन मपिमिः ॥ "क्षत्रीय बेग्यायां केवत: परिकीर्तितः। करणायान्तु विगैन्द्रा माहिन्यारूपोऽभिजायते । कप्ती तीवरमसरि धीवरः पठितो गुपि ॥" सतमा रथकारम्भ प्रोतः शिल्पी च याई पो । (ममस्वपट १०११) लोहफारच कारः इति चेदयिदो विदुः ॥" (२१ अ०) । क्षत्रियके भीरस और घेश्याय गर्भसे जो जानि उन,ग्न अर्थात् सुवर्ण जाति द्वारा अभ्याप्टाके गर्भसे जो उत्पन्न हुई है, यह फेवत नामसे प्रसिद्ध है। कलिकालमें तीयर. हुआ, उसको महर्पियोंने अग्निनयन्तक कहा है। फिर फे संसर्गसे पे धीयर फैयत्तं धरातलमै पतित हुए हैं। C वर्तमान समयमे हालिक केयत्तंगण जालिक (धीयर, सुपर्णफे औरस और कणण कन्याफे गर्भसे जो उत्पन्न हमा उसको मादिश्य संशा हुई। यही माहिष्य पेदयिदों से विलकुल स्वतन्त्र हैं। इसलिपे ये कहा करते हैं, कि द्वारा तक्षा (सूत्रधार या पद ), रथकार, शिल्पो, | पे विशुद्ध कैवतं या मादिप्य ६, पतित या धीघर फैयर्त मदों हैं। भावलापनने यह सन्देह दूर कर कदा पांच पो, लोहार या लोहार नामसे पुकारे गये हैं। है, कि 'वीर्येण' अर्थात् गुमरूपसे मयेधमापसे शो फिर माधनायनने कहा है,- उत्पन्न हुभा है. पदो घोयर या फेवन । किन्तु "महिषी सोच्य भार्या मगैनोनितं धनम् । । किसी भी काम में माहिष्य फैयर्त कद कर उल्लेया नहीं सस्यो यो मापा पुत्रो स माहियः मुना स्मृतः ॥" दिया गया है। "पालेय व मुरगममा जुट्योनिमः । माहिष्य और वर्ग के सिमा सलिय मोर येत्या ... ... निन्द्यास्नु मारिपयोगि विप्रजाः ॥" । संयोगसे मौर गो का जातियां उदरान हुई है। जैसे-- Vol. x.11, 134