पाहतावान् पाईशी-
जीयन्त समाधिका स्थान भान भी देघनमें माता है। इन चारों योगमि माहेन्द्र योग विजयाकारक, रण.
मागाया (फा पु०) चिलमयी।।
| पनप्रदा यायु नित्यनमण करानेवाला और यम - मृत्यु,
मादिन्द्र (सं० लि०) महेन्द्री देवता अस्य महेन्द्र ( महेन्द्राद देनेवाला है। .
पापच• पाMINIRE) इति भण्। १ महेन्द्र देवत्य, ४ जैनियोंके एक देयता जो फल्पभय नामक वैमानिक
जिसका देवता इन्द्र हो।
देवगणमें हैं। ५ एक अनका नाम ।
"मविभ्रमात शस्त्रमपीक राक्षसी रये।
६ सुथुतके अनुसार एक देयमह । इसके माममण:
सदस्यध्यपदासाय मारन्द्रशमयेरितम् ॥"
करनेसे प्रहस्त पुरुषमें मादात्म्य, शाय, शारत्र गदिता, '
(भष्टि १५४६३) मृत्यमरण आदि गुण एकाएक आ जाते हैं।।
२. महेन्द्रसम्बन्धी, इन्द्रसभ्यन्धी । (पु) "माहात्म्य शौर्यमाशा म पततः शास्त्रक्षिता।
महेन्द्रस्यायं अण्। ३ शुमदएडपिशेष, पारके अनुसार मृत्याना भरपचापि माहेन्द्र लक्षयेरितम् ॥"
भिन्न भिन्न दंडों में पड़नेपाला एक योग जिसमें पाता
(मुभूत यत्र ४०)
फरकारिपान है 1 रवि आदि समो घारों में माहेन्द्र माहेन्द्रज (सं० पु० ) जैनियों के एक देयताका नाम । .
यारण आदिदिएट है, उस दण्डको साधारणतः माहेन्द्र माहेन्द्रवाणी:( स० स्रो०) महाभारतके अनुसार एक
योगे पा'माग्दिक्षण कहते हैं। यह योग प्रतियोरफो। नदीका नाम
पमानुमार पंद्रह पार आता है। प्रतिदिनके दएटोन माहेन्द्री (सं० सी०) महेन्द्र स्पेयं महेन्द्र मण, निकोप । .
पे धारचार योग मिन्न मिन फ्रमसे बात रहते हैं। इन्द्राणी । २ गामो, गाय । ३ इन्द्रवायणीलता; पदा
माहेन्द्र, 'परण, यायु और यम। इनमें ययण और यण। ४ सप्त मातृकामेद, सात मातृकार्मि से एक । ५'
मादेन्द्रका एट "शुभ तथा घायु"और यमका दण्ड स्कन्दानुचर मातृभेद । ६ पेन्द्रशक्ति, इन्द्रको शक्ति।
माम 10 चारों योग सप्ताहफे प्रति दिने इस प्रकार' माय (सं० लि. ) माही ढ। १ महोका अपत्य, मिहीर
आया करते है।
का बना हुआ। (पु.) २ महाभारतये अनुसार एक:
दिन प्रथमदपष्ट द्वितीयदपट - नृतीयंदपष्ट चतुर्थदण्ड - जनपदका नाम । ३मंगलग्रह । ४ जातिविशेष । ५ विदुम,-
रपि यायु' घरण" यम माहेन्द्र" मूगा। .
चन्द्र माहेन्द्र पायु परण' यम 'मायो (सं० स्त्री०) महासुरम्याः अपत्यमिति महो
भौम बरण यम माहेन्द्र ' पायु (नादिभ्यो टफ ! पा ४२९७ ) इति ढक लियां की।
युधः माहेन्द्र यायु ययण" यम १गामी, गाय 1 २ मादी नदी।
गुरु घायु' चरण" यम- माहेन्द्र माहेल (स.पु.) एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषिका नाम ।
शुभा माहेन्द्र यायु यम चरणमादेश (सं० पु०) महेश 'अण। १ महंगसम्बन्धीय,
शनि पम माहेन्द्र पायु" यरुण । महेशका (ली०) महेशेन एतमित्यण । २ व्याकरण
विशेष, माहेशव्याकरण।
"लगा.पा प प मा गरेमा पाप प कालानिधी । । | मादेश-हुगली जिलेके गंगातीरयत्ती एक प्रसिद गांय।
य प मान्या फुले या मा मा य ज मुधांशुगे। यहां जगमापदेवफे स्नान और स्थपाता उपलशमें एक
गुरी या य य मा नेय मा या य तथा भूगी । मेला दगता है । महेन्स देतो।।
सम्पु प प मा पा 'पटीयुग्म शुभाशुभम् ॥ मादेशी (सखो०) महशस्पेयं मदेश-भपा, झोप ! दुगा।।
माहेन्द्र रिजपो नित्य यारो धनागमः ।।
"महापान मृत्पमा महान्तरीक्षपये या
पापो सप्रमते नित्य ममेऽपि मरयम यम".
माई उनपस्या माईसी सेन सा हता,
(मारम)
(देवीधु० १५ म०)
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६१०
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