पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६२३

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. जिन्हके असि मति सहज न आई, | मित्र-आय जातिके एक प्राचीन देवता। ऋक्संहितामें ते शठ हठि वस करत मिताई । । (१०१७२१८-६) लिया है। कुपथ निवारि मुपथ चलावा, "अष्टौ पुत्रासो अदितेय जातास्तन्यस्परि । गुण प्रकट अवगुणहिं दुरावा । देवा उपौत्सतभिः परा मार्रायडमास्यत् ॥ देत लेत मन ,सक न धरही, सतभिः पुढेरदितिरूप प्रेत्पूयं युग। बत्त अनुमान सदा हित करहीं। प्रजा मृत्यवे त्वत्पूनर्मात्पडमाभरत् ॥" विपतिकाल कर सत गुण नेहा, ___ अदितिके तनुसे जो माठ पुत उत्पन्न हुए थे, उनमें सुति फह संत मित्र गुण येहा । सात पुल ले करघे देवलोक गई, किन्तु मात्तएड भागे कह मृद वचन वनाई, नामक पुलको उन्होंने दूर फेंक दिया। इस तरह प्राचीन पाछे अनहित मन कुटिलाई । | कालमें अदिति सात पुत्र ले कर गई, फेवल जन्म भीर जा कर चित्त अहि गति सम भाई, मृत्युके लिये हो मार्तण्डका पालनपोषण किया गया था। भस कुमित्र परिहरे मलाई ।" सायणने उक्त ऋक्के भाष्यमें लिखा है,- प्रकृत विश्वासी व्यक्ति ही मिन होने योग्य है। "अष्टौ पुत्रासः पुत्रा मित्रादयोऽदितेर्भवन्ति । तान् चाणक्य-नीतिमें कहा गया है,- अनुक्रमियामो मित्रश्च चरणश्च धाता च भर्यमा "कुलीनेः सह सम्पर्क परिहतेः सह मित्रताम् । च अशश्च भगश्च विवस्वनादित्येश्चेति ।" अर्थात् शातिभिश्च सममेलं कुर्वाणो न विनश्यति ॥" अदितिसे जो आठ पुत्र हुए थे ये मितादि हैं। उनके किन्तु फुमित्र, कुमार्या, कुराजा, कुम, कुबन्धु : कमसे नाम इस तरह है-मित्र, वरुण, धाता, भयमा, और युदेश गादि यह सब त्याज्य है। क्योंकि नीति । अंश, भग, विवस्वान और आदित्य आदि । शतपथ- कहती है- । ब्राह्मण (३१॥३॥३) में लिखा है- "दुष्टा भार्थ्या शर्ट मित्र' भृत्य चोत्तरदायकः । ___ "गष्टी ह चै पुत्रा अदितेः। या स्त्ये वो मादित्या उस च गृहेवासो मृत्युरेय न संशयः ॥" । इत्याचक्षते सप्त ह वै ते" अर्थात् अदितिके आठ पुत्र हुप दुष्टोंको मिलता मिवा नुकसानके तिलमान नफा थे, किन्तु उनमें सप्तदेव ही आदित्य कहे जाते हैं। ऋष- होनेकी सम्भावना नहीं। अतएव खूब सोच समझ संहितामें ये सात आदित्य इस तरह कथित हुए हैं-- . •फर जान बूझ फर मिलता स्थापित करनी चाहिये। "इमा गिर आदित्येभ्यो घृतस्नुः सनाद्राजम्योजुह्वा जुहोमि । संसार में कोई किसीका न मित्र है और न कोई किसीका शृणोतु मित्रो भय'मा मगो न स्तुविजातो वरुणो दक्षो मशः ॥" • शत्रु। मनुष्य अपने कामोसे दुसरेको शत्रु-मिन बनाया ' मैं जुहु द्वारा सदा शोभायमान आदित्योंके उद्देश्यसे .. फरते हैं। (पु.) ४ सूर्य। । घृतस्रायो स्तुति कर रहा हूँ। मित्र, अर्यमा, भग, .."स्वस्ति मित्रः राहादित्यः स्वस्ति रुद्रा दिशन्तु ते ।" तुविजात या धाता, वरुण, दक्षा और अंश मेरे स्तयको (गौड़ीय रामा० २।२२.) सुने। ५द्वादश आदित्यों मेंसे एक। जो हो, सबसे पहले ये सात या आठ आदित्य ___“धाता मित्रोऽयं मा शक्रो वरुणस्त्वश एव च ।" . (महाभारत १६५।१०) मरुतोमेंसे एक । (हरिव० १९६।५२) ७ वशिष्ठ- मायकारने दक्षकी गणना आदित्यमें नहीं की है। किन्नु 'के एक पुत्रका नाम जो ऊ के गर्भसे उत्पन्न हुआ था। उक्त भूकमें और यास्कके निरुतमें इस दक्षको भी एक आदित्य ' चित्रकेतुः सुरोचिश्च विरजा मित्र एव च । कहा है। इस मृक्में सूर्य का नाम नहीं रहने पर भी १०।१८। उल्वया चसमृदयाना द्य मान शक्त्र्यादयोऽपरे॥" . ११ ऋकमें सर्य भादित्य नामसे ही वणित हुए हैं।... ( भागवत ४११६३७)

. .. ... ... • सर्प देखो।

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