पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६३७

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मिन्न-पियांगज ७१ वास है । ये लोग गाने पड़ोस मानगुआनिस जाति, नासिरिया विश्वविद्यालय के सभापति हुए थे । सन् के साथ मिल कर रहते हैं, कभी भी आपसमें विवाद | १२५२ ई० में दिल्लीके बादशाह सुलतान नासीरउद्दीन नहीं करते। महमूदके शासनकालमें उक्त इतिहासको रचना कर उसे मिन (सं०नि०) क्लिन्न, पीड़ित । इन्होंने बादशाहके कर-कमलों में समर्पण किया था। मिन्नत ( १० स्त्रो०) १ प्रार्थना, निवेदन। २ दीनता। दिल्लीमें ये "सदरे जहां" आदि कई उपाधियोंसे विभू- ३एहसान, कृतज्ञता । पित किये गये थे। मिस्मिन ( स० त्रि०) सानुनासिक वाक्यविशिष्ट कुछ मिमक्षा (सं० लो०) गजनेच्छा, मांजने के लिये चेष्टा । नाकसे निकले धीमे स्वर में । वायु-फफके साथ मिल कर मिमक्ष ( स० त्रि) मसन इच्छाछ सन् ततडः। शब्दवाहिनी धमनियोंको बाच्छादित किये रखती है, मजनेच्छ । इसीसे बहुतेरे मनुष्य बहुत नहीं बोल सकत तथा मूक, "यद्दन्तिनः कटकटाहतटामिमा- गद्गद् भापी और मिनिमय होते हैं। मसूदपादिपरितः पटनरलीनाम ॥" (माघ ५॥३७) "भावृत्या वायु सकफो धमनी शब्दवाहिनी। नरान करोत्यक्रियकान मूकमिन्मिनगद्गदान ॥" मिमत ( स० पु० ) एक प्राचीन ऋपिका नाम । इस रोगको चिकित्सा-घी ४ सैर ; चूर्णके लिये' समिमन्यिा ( स० स्त्री० ) मन्थनेच्छा, मथनेकी सोहिअनकी छाल, पच, सैध्रय, धयफूल, लोध और इच्छा । आकनादि प्रत्येक आध पाय , जल १६ सेर और बकरो- मिपन्धिपु (सं० त्रि०) मन्थनेच्छु, मथनेकी इच्छा करने का दूध ४ सेर, इन सबसे नियमपूर्वक घृत पाक करना | करवा चाला। होगा। उपयुक्त मात्रा सेवन करनेसे जड़ता, मूकता | मिम यिषु (स'० त्रि०) मईन कराने इच्छुक । भौर गदगद खर नष्ट होता है, स्मरण शक्ति बढ़ती है। मिमदिपु ( स० वि०) मई नेच्छु, दलनाभिलापी। ओर उचारण स्पष्ट होता है।

मिमिक्ष ( स० वि० ) गलसिक्त, पानीमें सींचा हुआ।

मिन्हाज-इ सिराज-तयकत-इ-नासीरी मामक प्रसिद्ध ! मिमिक्ष ( स० त्रि०) स्तोतृगणके इच्छानुसार फलवर्ष- इसलाम राज्यके इतिहास-लेखक। इनका घर जर्जियाम | नेच्छु । था। यह एक प्रसिद्ध कवि भी थे। ये मुसलमानी | मियाँ (फा० पु.) १ स्वामी, मालिक । २पति, खसम । राज्यको आदि प्रतिष्ठासे ले कर सन् १२५६ ई० ३ बड़ो के लिये एक प्रकारका सम्बोधन, महाशय । १६५८ हि०) तकको सारो घटनाओं का उल्लेख अपने इति- ४ वच्चोंके लिये एक प्रकारका सम्बोधन । ५ मुसल- हाम-प्रन्थ कर गये हैं। इनका यथार्थ नाम है, आबू-|- मान | ६ शिक्षक, उस्ताद । ७ पहाड़ी राजपूतोंकी उमर मिनहाज उद्दान-मोसमान विन्द सिराज उद्दोन अल-1 एक उपाधि। जुर्बानो ( जजिया) । पे सन् १९२७ ई० (६२४ हि०) | मियांगक्ष-अयोध्या प्रदेशके उनाव जिलान्तर्गत एक बड़ा में घोर राज्यस सिन्धुप्रदेशमें आये थे। क्रमशः वहां-गाँव। यह अक्षा० २६ ४८ उ० तथा देशा० ८०.२४ ., से उच्चा और मुलतानका परिभ्रमण कर दिलोके सुलतान पू०के मध्य विस्तृत है। नवाव आसफ उद्दौला और शमसुद्दीन गलतमशके अधीन राजकार्यमें नियुक्त हुए। सयादत अली खाँके राजस्व सचिव मियाँ अनमस अलीने इसके बाद क्रमसे इन्होंने सुलताना रजिया और सुलतान । १७७१ ई०में यह नगर वसाया। किन्तु दुर्भाग्यवशतः वह वहरामशाहके अधीन भी कछ दिनों तक कार्य किया। अभी श्रीभ्रष्ट हो पड़ा है। १८०३ ई में लाई भालेन्सिया यहादुरशाहफे मृत्युपरान्तं ये हि० ६३६में लश्मणावतीको (Valentia) ने इस नगरको समृद्धिका वर्णन किया है। देखनेके लिपे गये थे। यहां ये तीन वर्ष रहने के बाद | किन्तु दुःखका विषय है, कि उसके २० वर्ष बाद इंसा- हि० सन् ६४२में फिर दिल्ली लौट गये। इसके बाद ये धर्मयाजक देवर १८२३ ई०में उसकी इमारतोंके कुछ