पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६६४

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. मिल्टन घे गलियर मवेलके सहयोगी और स्वाधीनताप्रयासो आत्मोत्कर्ण लाभ कर रहे थे ।' चालीस. वर्गके पहले पल ( Independants ) के थे। | उन्होंने अपने को महाकाव्य लिखने के अयोग्य कहा था। मिल्टन विद्यालयकी पढ़ाई खतम कर जब नोको लक्ष्मी सरस्वतीका सौतियाडाद सय देशोंमें प्रत्र. लेटिन (Grenco-Latin) भाषाके कविता-फाननमें पहुंचे, लित है। इसीसे कविता देवोके प्रसिद्ध सेवक मिल्दन तव कविकीर्ति लाभके लिये दुनियार गमिलाप,ने उनके दरिद्र थे। . . हृदयमें चित्त चाञ्चल्य पैदा कर दिया। उन्होंने इसके किन्तु विधाताके विचित्र नियमसे परस्पर विरो. अनुसार युरोपके गाना देशोंमें परिभ्रमण कर निसर्गके घिनो लक्ष्मी सरस्वतीको संगति सदा हो . एकाश्रय निरूपम दृश्यको देखा और वे जातीय महाकाव्यका मसाला दुर्लभ है । अतएव विद्य.निलागे धनवान नहीं होते। पकन फरने लगे। यौवनके प्रारम्मसे उन्होंने मनुष्यका इन्ही सनातन नियमो अनुसार मिल्टनका दारिदा अधःपतन अवलम्यन कर एफ अविनश्वर काव्य लिखनेका | विस्मयजनक नहीं। उन्हें पैराडाइजलोटके प्रथम संस्क- संकल्प किया। यौवन-सुलभ रचनावलीमें उन्होंने मुक्त रणमें ५०) रुपये मिले थे। . . . . । फएठसे लिखा था, "मैं अध्ययसाय और परिश्रमसे इसमें मिल्टनके चित्तकी दृढ़ता. और गम्भीरता सभीके ऐसी कविताकी रचना करू'गा, जिससे हमारे घंशज वित्तको आकर्षण करती है। दागण दरिदता. और भूल न सकेंगे। (which the postcrity will not let निर्यातनको कठोर यन्त्रणाको सहते हुए दृष्टहीनतारूप _it dic) बङ्गीय फयि माईकेलफी तरह फपियशः प्राथों दुर्दयसे विडम्बित होने पर भी. कवितारूपिणी उद्दाम मिल्टनने सोचा था, कि मेरे रचे हुए मधुचक्रसे लोग, लोलाम्यो कल्पनाने स्वच्छन्दविहारिणो विद्याधरोको चिरसुधा पान करेंगे। तरह मन्दारपुसुमालंत नन्दनकाननको. विचित्र शोमा,. फिस भापामें यह काध्य रचा जायगा, इसका भी नरककी घोरयन्त्रणा और धीमस्स दृश्य दिखलाया था। पहले उन्होंने विचार नहीं किया था। अन्तम निश्चय | अंगरेजी भाषामें मिस्टनका नाम सदा गौरवान्वित किया, कि लेटिन भाषामें इस काव्यफी रचना करू'गा। रहेगा। इसके बाद उन्होंने स्वजाति यात्सल्यको प्रेरणासे प्रेरित मिल्टनने अपने सैमसन गोनिटिस ( Samson हो मातृमापाकेकण्ठमें अपनी अलङ्कारभूमिष्ठा गांभीर्य | Agonistic) नामक छोटेसे नाटकमें अपने अन्धजीयन के गुण भूपिता अपूर्व फाप्यमालाको पहनाना चाहा। मालूम जिस करण चित्रको अद्धित किया है, यह अत्यन्त मर्म- होता है, कि कुललक्ष्मीने उनसे स्वप्नमें कह दिया था, स्पशों है। दाम्पत्य जीवन मिल्टन मुखलाभ कर न 'वत्स! तुम्हारे घरमें रत्नोंको राशि है-तुम्हारी मातृ सफे, इसीलिये डेलाइलार चरित्रको उन्होंने दारण कलङ्क भापाफे भाण्डारमें रत्नका गमाव नहीं । तुम उन्हीं रत्न कालिमासे लोप पोत दिया है। खोजातिके प्रति मिल्टन से फोर्तिमयो काव्य मेखलाको मातृभाषाके कटि-देशमें की श्रद्धा यहुत कम थी। सैमसनकी चिलापहागोम अश्वः शर्पण करो।" संघरण फिया नहीं जा सकता। यही मिल्टनका यथार्थ मिल्टन साम्प्रदायिक मतफे लिये उनका महाकाव्य चित है । मिल्टनके हृदयको वीरता देखने के लिये (Satan) माना स्थानोंमें तीनभावसे समालोचित हुआ था। उन शैतानको उतिका स्मरण करना होता है। एयर्गके की पैरालाइम लोट नामक कवितामें राजद्रोहको गन्ध पा . दासत्वको अपेक्षा गरकका राजत्य सदस्न गुणा उत्तम फर राजकीय पुस्तक-परीक्षकने उसको छापनेको साक्षा है। मनुप्पका मनशिक्षा और दीक्षाफे प्रभायसे दुग्ध- देनेमें आनाकानी की थी। किन्तु सन्तमें यह काश्य छप फेननिमाया कोमलाभरण पर या जेलको फएटका. दो गया। कीर्ण दुःप्रद शय्या पर शो कर समान भायमे रह सकता मिल्टनके जीयनको पालोचना करने पर स्पष्ट दिग्गाई है। गिल्टनने मो तरहका भार अपनी कवितायलोमें देता है, कि वे याल्यकालसे महाकाव्य-रचनाफे प्रयासमें भर दिया है। पैराडाइस लोट में धीररम तथा देवासुर- .