मिस्त्र
किन्तु उन्होंने आत्मविसर्जनके महामन्त्रको शिक्षा, वासन्ती परीगृप्ति की थी। किन्तु प्राचीन भारतके
नहीं दो । वहां साम्य, स्वाधीनता और साधारण , पियोंने संसारके सभी प्रलोभनोंको पद-दलित कर
स्वत्वाधिकारके प्रश्न पर बहुत वातवितण्डाके बाद यह भोग सुखकी तिलाञ्जलि दे नैमिपारण्य या वदरिकाश्रम-
निश्चित हुआ था, कि सहम्न सूर्यसमप्रम हमाण्डरसूत की शान्तिमय प्रतिकी गोदमै थैठ शाखसमुद्रको मन्शन
नरनारियोंमें कोई विषमता नहीं। मिस्त्रयासी स्त्री कर मनुष्पके लिये अमृत पैदा किया था। उनके उस
जातिको साधारण सम्पत्ति समझते थे। भ्राता भग्निका, अपार्थिव सुधासमुद्र में तत्त्वजिज्ञासु मानवप्राण सदा
पतिपत्नोत्व समाजयन्धनका मूलमन्त था। ये केवल अमृतपान कर सकेंगे।
भोगको ही धर्म जानते थे, त्याग करना नहीं जानते थे, मनु आदि भारतीय मुनि ऋषियोंने विवाह विज्ञानके
अर्जन करते थे किन्तु वर्जन नहीं करते थे। वहां मनु या गूढतत्त्वको समझ कर कालोपयोगी कल्याणकारी
'याशवरुपयकी तरह मानवक मङ्गलमय विग्रह धर्मशास्त्र नियमोंको प्रवर्तित किया था। देश, काल और पास-
की व्यवस्था देनेवाले भी नहीं थे। यहां धर्मको ग्लानि । भेदसे लोगोंने मनुके अनुशासनका पालन किया था।
और अधर्मका अभ्युत्थान हुआ था, कि तु साधुजनोंके | किन्तु मिस्रके किसी संस्कारकने लौकिक युगमें स्त्री-
यचाने और दुष्टोंके दमन करने अथवा धर्मको संस्था- जातिकी पविततारक्षाके लिये कोई व्यवस्था नहीं की।
पनाके लिये विधातृ शक्ति पृथ्वी पर अवतीर्ण हुई न मिस्र के देव और लौकिक युगकी रीतिनीति एक पथसे
यो। इसीसे मिस्रमें सभ्यताका प्रवाह कालभेदसे परि- परिचालित हुई थी। किन्तु भारतीय व्यवस्था लौकिक
मार्जित हो कर पवित्र प्रणाली द्वारा प्रराहित नहीं हो युगमे कालोपयोगी नई प्रणालीसे प्रचलित हुई थी। इसी
सका। इसीसे सभ्यत.गनित पराक्रान्त तथा प्राचीन- । लिये हिन्दू जातिने लाखों चैदेशिक संघाँको निदारण
तम मिस्त्र जाति शवनीमण्डलीसे लुप्त हो गई है। महारसे जर्जरित हो कर आज भी अपनी धार्मिक स्वत.
उसका आज पृथ्वी पर कोई सजीव नमूना रहने न न्त्रताको रक्षा की है। किन्तु भारतीय सभ्यताको शापा
पाया।
मिस्र में जो वर्द्धित हुआ था, यह समूल विनष्ट हुआ है।
मिनियोंके पिरामिड या मम्मो शादि कीर्तिस्तम्भा- जातीय और सामाजिक पवित्रताका अभाव हो मित्र.
यलो ) अथवा शिल्पोद्यानको प्रफुल्ल पुष्पराजि आज भो वासियोंके अधःपतनका कारण हुआ था। सिकन्दरने
नूतन विकसित गुलायके कमनीय सौन्दयेसे यूरोपोय! मिस्र और भारत दोनों देशों पर आक्रमण किया था;
चित्रशाला उज्ज्वल हो रही है, किन्तु कपिल या कणाद, किन्तु उस समयके वृत्तान्तोंको पढ़नेमे मिनगासियोंको
व्यास या वाल्मीकि, पाणिनि या पतञ्जलि, जैमिनि या | अपेक्षा भारतवासियोको महस्र गुना श्रेष्ट कहा जा
याशयल्प, शाफ्यमुनि या शङ्कराचार्यकी तरह मनीषियों सकता है।
की महनीय मानस-महिमा युगयुगान्तरसे देशदेशान्तरमें | ___जहां भारतमें ब्रह्मचर्य और पवित्रता है, वहां मित्रमें
मनुष्यों के चित्तको आत्मोत्कर्षके उच्चतम सोपान पर उच्छडालता और पापस्रोत है। स्त्री जाति हो पवित्रता.
अधिरोहण कराने में समर्थ नहीं हुई। इसीसे कहते है. रक्षाको मुख्यपान है। स्रोचरित्रमें व्यभिचारके स्पर्श
कि मिस्त्रको प्राचीन सभ्यता याह्यवेमयके विराट आउ करनेसे शीघ्र ही समाजतर जड़से उम्पड़ जाता है। यही
भ्यरसे पूर्ण है । वहां चिन्तामणिका उज्ज्वल प्रकाश अन्ध कारण है, कि मिनकी प्राचीन जातियों का आज संसार-
कारमय भविष्यतके राज्यमें किरण प्रदान कर न सका। में नामोनिशान दिखाई नहीं देता। मिस्रकी सभ्यताको
पिछले समयमें मिस्रके पुरोहित राज्यभोगकी विलास आलोचना करनेसे दिखाई देता है, कि यहांगी मभ्यता
लालसामें धर्मचिन्ताको परित्याग कर सस्त्रीक सिंहा दूसरे देशकी है। आर्या ने जद प्रानीनतम मिनदेशम
सन पर बैठे थे। उन्होंने राजप्रासाद अथवा पिरामिड उपनिवेश स्थापित किया था, तब स्वर्ग और नरकका
के निकट बने रक्तमय मर्मर पत्थरके प्रमोद-भवनमें भोग । चिवमात्र इनको मालूम था, किन्तु उन्होंने स्वर्गारोहणके
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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७०१
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