पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७४७

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पीर कासीम ६६७ उधर भाग गई । मोर महदी का यहादुर दलबल के साथ हुए, तब ये अग्रगामी अंगरेज सेना-दलको गति रोकनेके मुरकी ओर भागे। हिन्दु सेनापनि लालसिद्ध और लिये मुट्ठी भर सेना ले कर अमितविक्रमसे आगे बढ़े। महम्मद अमीनने चेहाल सातुन या दरवार-प्रासादमें १वी जुलाईको युद्ध आरम्भ हुआ। विपक्षियों के छिप कर जान बचाई। अंगरेजी सेनाने सधेरे फरीर । | माघातसे उनका शिर फट गया। उन्होंने सहयोगी सेना. तीन पहर तक नगर लूटा था। उधर मीरकासिम द्वारा पतियोंके कर्तव्य कार्य की अवहेलाके लिये प्राण विस. प्रेरित अर्मनी-सेनापति मारके अधीन कुछ सेना जन किये। सेनापतिके मरने पर सैन्यदल छत्रभङ्ग हो पटना आ धमकी । दुर्गादि शत्रुओंके हाथ लगा न देव गया। युद्धको शेपावस्थामें भी यदि दूसरे दूसरे सेना- मार पटना उद्धारफे लिपे चल दिपे। लुएठन प्रिय दलको सहायता मिल जातो तो युद्धको यवनिका किसी अंगरेजी सेनामें लूटका माल ले कर तकरार खड़ा हुआ। दूसरी तरहसे गिरती, इसमें सन्देह नहीं । यह देख नबाव-सेनापति मीर नासिरने पूर्वद्वार पर खड़े ___ इधर अगरेजोंकी कृपासे मोरजाफर पुनः बङ्गालके शतदलको हरा कर नगर में प्रवेश किया। मारने जव! सूवेदारी पद पर अभिपिक्त हुए । २३वी जुलाईको नवाय अगरेजोंकी कोठीमें घेरा डाला, तब वहांको अंगरेजी मीरजाफरने दूसरी बार अगरेज वन्धुवर्गो के माथ - सेना २६वीं जूनको रातको गङ्गा पार कर छपराकी ओर मुर्शिदाबादमें प्रवेश किया । फिरसे सिंहासन पर बैठने के भाग चली। इधर श्ली जुलाईको माजी नामक स्थानमें थाद उन्होंने अलीवदों खांक प्रासादमें रहना चाहा। नयायके फरासीसी-सेनापति समरूके साथ युद्ध छिड़ तको सांके मृत्युसंवादसे व्यथित हो मोरकासिम गया । सेनापति काटयर आदिके युद्ध में मारे जानेसे निरुत्साह नहीं हुए। उन्होंने माकर, समरू, दैवतउल्ला, अगरेजीपक्ष नियत्साह हो गया। कितने अगरेज कैदो मोरनासिर असदउल्ला गादि सेनानायकोंको अपने तौर पर मुर लाये गये। अपने अधीनस्थ सेनादलको ले कर नदीको किनारे . इसके बाद समरानल घूध जोरने : अधकने लगा। विस्तीर्ण मैदानमें एकत्रित होनेका हुकुम दिया । पूर्णिया- ६ठी जुलाईको अगरेज दरवार, मीरजाफरको पुनः के फौजदार भी दलबल के साथ आ कर उनने मिले। नवायको सेनाने भागीरथोके पश्चिमी किनारे छावनी बङ्गालको ममनद पर विठाने के लिये सन्धिपत्रका मस- डाली। नवाव मोरकासिम चाहते थे, कि ज्योहो अंग. विदा तैयार हुआ। रेजी सेना वांशुली नदी पार करेगो, त्यों हो पाशुली नघाव मीरजाफर सङ्गरेज-वणिकोंका मनोरथ पूर्ण और भागीरथोके मध्यपत्ती स्थानमें उन पर चढ़ाई कर कर १७६ : ई०को १७वी जुलाईको दलबलके साथ कल- कत्तेसे भप्रद्वीपमे आ कर अङ्करेजोंसे मिले। इसके पहले दूंगा। दोनों पक्षमे घमसान युद्ध छिड़ा। अगरेज विजयी हुए । मुसलमान धुड़सवारने अंगरेजी सेनाको कासिम याजार जीत पर मोरकासिरके सेनापतिगण वांशुली नदीको गहरे जलमें धकेल दिया था। इससे मदलबल साग्रसर हो भागीरथीके पश्चिम पारमें तथा वहुतोंकी जान गई थो। नाना विषयमें अंगरेजोंकी इस महमूद तकी म्याके सेनादल पूर्वी किनारे सटे हुए थे। इस समय मुर्शिदाबाद फौजदार सैयद महम्मदको अवि. प्रसिद्ध युद्धर्म क्षति होने पर भी युद्धजयके साथ साथ उन्हें शव की १७ कमाने और डेढ़ दो सौ अन्नसे लो मृष्यकारितासे युद्धके आरम्ममें ही मीरकासिमके अधः- पतनका पथ खुल गया था। यदि ये महम्मद तकोके नायें हाथ लगी थी। सैन्यक्षय होने पर भी अंगरेज लोग जरा भी भग्नोत्साह नहीं हुए। सच पूछिये, तो कथनानुसार काम करते, तो बङ्गालका शासनदण्ड कभी गिरियाकै प्रसिद्ध रणक्षेत्रस हो भारतमें अगरेजों के भी दूसरे हाथ नहीं जाता। सौभाग्य-सूर्यका उदय हुआ था। महम्मद तकोत्रांने पलासीके दक्षिण भागमें छावनी गिरियाको रणरिजयसे स्पदित हो अंगरेज और डाली थी। मजयके दक्षिणी किनारे पराजित मुसलमान मीरजाफरकी सेनाने उधुआ नालाफे मुद की और सेना-दल जव भागोरथी पार कर तकोके शिविरमें इकटे । कदम बढ़ाया।