पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७६१

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मीरजुम्ला-पोस्टं ६५७ . अकस्मात् घटनाचक्रने पला सार्या दृष्टि करनेके लिये भेज दिया और भाप ढाकाको रवाना हुए। इतनी हुई कि आसामके नद और नदी उमड़ गई जिससे , रास्तेमें विजिरपुर नामक स्थानमें उनको मृत्यु हुई। गासामप्रदेश जलमय हो गया। मुगल-सेना और ऐतिहासिक एलफिन्सटनका कहना है, कि १६६३ ई०को घोड़ोंको रसद घट गई। भासाम-राज जयदेवसिंह ठौ जनवरीको ये ढाका नगरमें मृत्युमुग्व में पतित हुए। यह देखने ससैन्य आये । मुगल चारों ओरसे आक्रान्त' किन्तु ष्टुवार्ट आदि लेखक कहते हैं, कि उन्होंने कोच- हुए । जलवायुको आर्द्रता यादि नाना प्रशारके प्राकृतिक । विहारके अन्तर्गत खिजिरपुरमे १६६३ ६०को ३१वी मार्च. उत्पातसे मुगल सेनामें महामारी फैल गई। यह सुयोग । को मानवलोला संवरण की। पा आसामवाले भी चढ़ाई कर मुगल सेनाका संहार औरंगजेब इनका मृत्यु संवाद पा वहुत दुःखित हुए । फरने लगे। मोरजुम्ला मागे पीछे किसी ओर पोछे उनके लड़के अमीनको पिनृपद पर नियुक्त किया न यढ़ सके। गया। मोरजुम्ला असाधारण युद्धिमान और कार्यदक्ष - कई महीनों के बाद गृष्टि शेष हुई । मोरजुम्लाने सेनापति थे । यपने घुद्धिवल और उद्यमसे उन्होंने अच्छा फिर भासामराज पर चढ़ाई की । राजाने सन्धिका नाम कमाया था। उनकी मृत्यु पर यूरोपीय णिकोंने - प्रस्ताव किया, किंतु मोरजुम्लाने वैरनिर्यातनकी इच्छासे भी विशेष दुःख प्रकाश किया था। उनका राज्य ध्वंस करनेको प्रतिक्षा की। लेकिन मोर मीरजुम्ला--एक मुगल-सेनापति । पारस्यराज्यके शाहरी- जुम्लाको सेना विद्रोहो हो गई। अन्तमें उन्होंने अपने स्थान नगरमें इनका जन्म हुआ। इनका असल नाम सेनापति दिलावर खांके परामर्शसे राजाके साथ सन्धि मीर महम्मद अमोन था। मुगल सम्राट जहांगोरफे कर ली। मासामराजने सन्धिकी शर्त के अनुसार मीर- राजत्यकाल १६१८ ई०में ये भारतमें पधारे। सम्राट जुम्लाको २०००० डोले अर्थात् ६ मन १० सेर सोना' शाहजहांने इन्हें पांचहजारी सेनानायकका पद और - तथा ३१५ मन चाँदी, ४० हाथी और दो लावण्यवती मोरजुम्लाको उपाधि दो। १६३७ ई०में इनको मृत्यु ललनाये उपहारमें दो । किसी किसीका कहना है, कि हुई। उनमे एक राजाको कन्या यो। मारजुम्ला-सम्राट फर्रुखसियरके एक प्रियपान । इनका . मीरजुम्ला जय आसाम पर चढ़ाई कर रहे थे उस । प्रकृत नाम अबदुल्ला था। सम्राट के अनुप्रहसे इन्हें -समय उनके प्रतिनिधि इसफान्दियर वेगक अत्याचार-' विहारप्रदेशको सूयेदारी मिली थी। सम्राट महम्मद • से कूचविहारमै अनेक प्रकारका उपद्रय चल रहा था। शाहके राजत्वकालमें इन्हें 'सदर उस सदूर' का पद यहांके अधिवासियो ने दल बांध कर भूतपूर्व राजा ' मिला था। १७३१ ईमें इनकी मृत्यु दुई। मोमनारायणको बुलाया था। भीमनारायणन प्रजाओं-'मोरट ( मेरठ )युकप्रदेशके छोटे लाटके अधीन एक की सहानुभूतिसे प्रोत्साहित हो इसफान्दियर खाँको विभाग। यह एफ कमिश्नर द्वारा शासित होता है । अक्षा राज्य छोड़ देने के लिये कहला भेजा। मुगल-प्रतिनिधि २७°३८ से ३०५६उ० तथा देशा० ७७७ से ७८४२ डर कर गीहाटो चले गये और यहीं मोरजुम्लाकी वाट पृल्मे विस्तृत है। देहरादून, सहारनपुर, मुजाफरनगर, जोहने लगे। मेरठ, बुलन्द शहर और अलीगढ़ नामक छः जिलोंको ले . मीरजुम्ला बंगालके लिये रवाना हुए। उनकी बड़ी । कर यह विभाग बना है। (प्रत्येक जिलेके वर्णनमें मारी सेना प्रायः सभी ध्यस हो गई थी। सैफड़े पोछे । उनका विस्तृत विवरण दिया गया है)। इसकी उत्तरी पश सैनिक जीवित थे, याकी सभी आसाम प्रदेश में मारे सीमा पर शिवालिककी पहाड़ियां हैं। इसके पूर्व गङ्गा- गये थे। । नदी, दक्षिण मधुरा और एटा जिला तथा पश्चिममे १६६३ ई०के प्रारम्भमें मोरजुम्ला गौहाटी पहुंचे तथा! यमुना नदी प्रवाहित हो रही है। इसका क्षेत्रफल याको सेनाओंको इसफान्दियरके साथ कोचविहार ऋजा ११३२० वर्गमोल है। ic xn. 170