पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७७०

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पोरयम्प-मीरापाई मौर मसूम-एक मुगलसेनापति और विण्यात् कवि || था। मीरा विष्णु की उपासिका थो। परन्त इनका पति सम्राट अकयर और जहांगीरके राजत्वकालमें यह एक- कुल शक्तिका उपासक था। पनपनसे ही इनके अन्तः. हजारो मनसबदारफे पद पर नियुक्त था । इसका म्यमाय | करणमें असाधारण भक्तिका विकाश दिई देता कठोर था सही, पर इसको कविता बड़ी कोमल होती | था। ये मसामान्या रूपयती थीं। इनका सौन्दर्य थी। यह 'मादन उन अनवार' नामक मसनयो, पक दर्शकमात्रको ही इन्द्रजालको तरए मुग्ध करता दीवान और तारीख-इसिसंद नामक सिन्धुदेशका इति- था। कोकिल शावक जिस प्रकार भाविक संस्कार हास-प्रन्थ लिग्न गया है। १६०६ ई०में विषर नगरमें वलसे मधुर जनसे दिदिगातमें मझोतधाराको वर्षा. इसको मृत्यु हुई। फरता है, मीरा मी उसी प्रकार पूर्वजन्मार्जित भक्तिको मीर महला (अ० पु०) किसो महल्लेका प्रधान सरदार। प्रेरणासे शैशयकालमें ही फल फण्ठके सगोतसे सोको मीरमीरासुत (सं० पु० ) असालतिप्रकाश नामक अभि• विमुग्ध करने लगा। इनके अलौकिक रूपलावण्यके धागके प्रणेता। साथ सुललित फराठध्यनि मिल कर पृथ्यो पर अमरा. मीरमुशो ( 1० पु०) मुशियोंमें प्रधान या सरदार, यतीकी छाया प्रदर्शन करने लगी। सबसे बड़ा मुशी। ____ मोरा वचपनसे ही निर्जनमें रहना पसन्द करती थी। मोरराजो-दिलीवासी एक मशहूर कवि । एक गजल गा) इनको समययस्का कीड़ा सहिनो जय सुन्दर विलौने ले फर इसने एक शाहजादासे लाख रुपया इनाम पाया था। इधर उधर दौड़ती थी. तब यह गाड़में यैठ पर हरिगुण मोर. शिकार (फा० पु०) यह प्रधान फर्मचारी जो अमीरों गान किया करती थी। जद सगिनोगण इनके साथ या पादशाहोंको शिकारको व्यवस्था करता है। मिल कर खेलती थी, तब ये भी मोराफ सुमधुर हरि. मोर सैयद जयाराफ-फारसफा रहनेवाला एक तांतो।। कीर्तनसे मत्त हो जाती थीं। मीरा पुष्पमालाको बहुत अपने कविता-गुणसे यह १५६२ ६०में मारतयपं माया | चाहती थी। जय पुसुमदामालंकृता चन्दन चनिता था । सम्राट् अस्यरशाद इसको कविताका बहुत | मोरा भक्तिके मोहन मन्बसे हरिगुण गाती गों, उस आदर करने थे। १५६५ १०में भारतवर्षमे ही इसकी समय मभो देवमाला फह फर इनसा अभिवादन करते मृत्यु हुई। यह सवाई नामक कविता लिखता था, इस | थे। अलौकिक रूप-गुणके मेलसे मोरामें मणिकाचनको कारण लोग इसे मोर-सवाई फाहा करते थे। । संयोग हो गया था। मीरसामान ( फा० पु०) यह प्रधान कर्मचारी जो अमीरों। धीरे धीरे मोराके सौन्दर्य और सगोतको म्याति दूर या यादवादोंकी पाकशालाकी यवस्था करता है। दूर देशोंमें फैल गई। भक्तगण किन्नरकराठी मीराकी मोरहाज ( १० पु. ) हाजियोंका सरदार, हाजियोंके । स्वरलदरी सुननेके लिये मेरता आने लगे। मीराफे समूहका प्रधान पिता एक सङ्गतिसम्पन्न मामग्त थे। ये यथोचित मोरहाजी-दिलीपासो एक दुर्य त मुसलमान सम्दार । अभ्यर्थना द्वारा अभ्यागौंका सत्कार करते थे। ५७. गदर में इसने कप्तान इगलस मादि भनेक अंग- राना मोकलदेयके लड़के चित्तोर युवराज सुमाकर्ण रेजपुडयोंकी हत्या का था। गदरफे पाद यह पकड़ा के कानों में जब माराको अलौकिक काहिनीको र पहुंची, और फैदमें इस दिया गया। पोछे १८६८ ई०की २६षों तब ये स्थिर न रह मफे। एक बार मीराफे भुयनमोदन दिसम्यरको दिला नगराके लाहोर दरवाग इसे फांसो मौन्दर्यको टेमा कर तथा कलकण्टको मधुरकाफली सुन हुई थी। फर ने और फर्णको परिसृप फगा, यह यामना गम्भ- मागवार-मेशड़के एक अधिपति महाराणा पुमाको स्रोत के मनमें बलवती हो उठो। किन्तु चित्तोराधिपनि पक सन् १४२०३० मारवाड़ राज्य के अन्तर्गत मेरता प्रामफे सामन्तकं घर एक बालिकाका सहात सुनने मागे, रतिया राना नामक एक सामन्तके घर इनका जन्म हुमा यह दिलकुल असम्भय । भीमका ननिहाल मारयादमें