पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७७४

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८८ पोरापाई गौरा पहले जब गोविन्द मन्दिरमें म' कोन करतों : आश्चर्यान्वित दो उस मुकाको मालाको देशले लिपे तो यहां समाधारण नहीं जा सकते थे. फेयल चैत्रायों, आपे। जहरियोंने कहा था, कि इसका मूल्य १० लाय का मान जान होता था। जब सूबर फैलो. कि मीरा रुपया है। दिल्ली, मन्नार के मिया ऐसा मुक्ताहार वाई अब राजपथ पर सर्वसाधारणके सामने संकीर्तन और शिमीफे पास नहीं हो सकता। करेंगी, नो देश देशान्तरमे महदय और मम्मानित लोग वहां जितने लोग उपस्थित थे, मोंने कहा कि उनका अलौकि संगोनामुधा पान करनेको एकत्रित होने जामीनयेगी पुरुप अपने हायसे मोराको मुक्तामाला लगे। चित्तौरके गजपथ पर हरिसंकीसनको उत्सयमें पहनाने गये थे। शको रानाने मोचा कि केवल संगीत प्रति दिन मनुष्यों को धार छटने लगी। सभी जातिके गुन पर कोई दश लाग्न रुपया नहीं दे सकता। मीराके लोग मोराको महीनमुनाको पान करने के प्रयासो होने ' रूपलायण्य पर मुग्ध हो उसे लुभाने के लिये यह मुक्ता- लगे। लोग आदार निद्रा. गोक, दुम्न गादि भूल कर माला दी गई होगी। हो सकता है, मीराने सतीत्य थेन मोराफे, पेन्द्रजालि संगीतके मोहमन्वसे सपने आपको लिया हो। धीरे घोरे सन्देहपिशाचो उनकी बुद्धि भरने लगे। इस प्रकार सिद्धभूमि चित्तौरने भक्ति- शक्तिको अच्छन्न कर लिया। मूर्यातायशतः उन्होंने मखीवनो मरिताको आगन्दधारासे अपूर्व धो धारण को।। यह नहीं समझा, शिजो रमणो चित्तोरको चिरस्मर. ___इतिहास न जाननेवाले जीवन चरित लेखकोंने। णोय स्वर्णमिहासन है, मणिमाणिफ्ययुक्त रटनभूषण अनेक सत्य घटनाओको मोराफे जीवनचरित्रमें स्थान है, भोग-पिलासके सजीव प्रसरण राजभवन पर लात दिया है। भ्रममें पड़ उन्होंने लिखा है कि दिल्लीका मार कर कृष्णफे प्रेममें उन्मादिनी हे पद पया एक लड़. पादशाद आयर संगीताचार्य तानसेनको साथ ले मीरा.. मुकाको मालाफे प्रलोभनमें अपार्थिय मम्पद् सतीत्यरत्न का सोत सुनने आया था। यह मालूम होने पर राणा- को येचेगी ? ने मीराको दुश्चरित्रा समझ तलयारसे काम लेना चाहा सन्देवो पिशाच आयेशमे रामा हदय में इसी गातया विषमयोग आदि द्वारा अनेक काट दिये थे। तरह युरो घुरो भावनामोका उदय होने लगा। लेकिन १५४२ १०में अबरका जन्म हुआ। मतपत्र १५० : राजपथमें वैष्णवगण करताल यता पजा कर मोराका वर्ष पूर्व यह किस प्रकार मोराफे सङ्गोत सुनने आया और सङ्गीनगान करने लगे। 'मोरा का विना प्रेमसे मिले म ७ लाख रुपयेका मुक्काहार गोविन्दजीके गले पहनाश- ' नन्दलाल' या कविता मुन कर राणाने मममा, कि यद समझ नहीं आती । कहा जाता है, कि अयर । मर्वसधारण व्यङ्गम उनकी श्रेणता घोषित करता है दुमरे जन्म में मुकुन्द ब्रह्मचारी थी। उनका भी गौराफ : गव मौराका नाम सुनने हो ये जलने लगे। मीराको ममयमें होना असम्भय है। । कौन-मा दएट दिया जाय, इसका धिर न कर सके। भकमालमन्ध भो मोराय, विषयमें लिया है कि उन्होंने मममा था, कि मोराको चित्तोरमे निकाल देने पादनाह अकयर मोराके श्रीमुखसे निकला हुआ अपूर्ण | पर सर्वसाधाण उनके माथ हो लेंगे। मूह कुम्मको सङ्गीत सुधापान करने के लिये तानामेन के साथ वैष्णय- धारणा थो, फिजिम प्रकार ये पत्नोमायमें मीराफे कए. फे येगमें गाये थे। किन्तु यह कहां तक सत्य है, पहले लावण्ग पर मुग्ध हैं, उमो प्रकार ममी लोग उनके हो कर भाये हैं। सौन्दयं पर मुग्ध होंगे। इसो भमूलक धारणा यायती प्रयाद है, फि कोई उदामोनयेगी महाराज मीरा होये मीरा पाणनाश करनेको उनार हो गये। क्योकि, गोत.पराध हो बहुमूल्य मुक्कामाला उन] गलेमें पह। उनका म्याद घा, किऐमा करनेसे मोराको स्मृति मौर मानेको गार हो गये थे। किन्तु मोराने गयीशर उनका गोन मी सदा. लिये लोप हो जायगा । किन्तु करने पर उदासीने उमंगोविन्दनीय, गलेग पहना दिया। उन्होंने यह नहीं मममा, किमोगके मरने पर मो उनको धीरे धीरे मी रगणा कानों में पहुनी। ये. परिवादिनो और. मनोगध्यान मदा मर रदेगी।