पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७७५

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पोरापाई ६८६ मूर्ख राणा समझते थे, कि मोराको जो कुछ करने | देती है उसी प्रकार मीराके मागमनसे पृन्दायनमें कहा जायगा उसे घे खुशीसे करेंगी । इसी विश्वासके वक्ष प्रेमतरंगकी बाढ़ उमड़ आई । निजींच वृन्दापन मानो उन्होंने मोराको एक पत्र लिखा, 'मीरा! तुम्हारे कारण | कृष्ण-प्रेमके नये प्रसादसे सजीव हो उठा। मैं रात दिन येचैन रहता हूं। तुम रातको नदीमें इव । ____कृष्णके लोलाक्षेत्रमें कलनिनादिनी कालिन्दीरूपिणी प्राण त्याग करो, तो मैं निश्चिन्त हो जा। मक्तिको मूर्तिमती सरित्को देख मीराका भक्तिरसाकान्ति मोराने पत्र पढ़ फर पत्रवाहकसे राणाके साथ एक बार हृदय प्लावित होने लगा। उनके दोनों नेता प्रेमाशु अजस्त्र मुलाकात करा देनेको कहा। पत्रबाहकने उत्तर दिया, धारामें यह चले. मानो गृन्दावनफे सभी स्थानोको पूर्व- कि राणाका ऐसा हुकुम नहीं है। इस पर मोराने | स्मृतिने मूतिमतो हो उन्हें उद्वेलित कर दिया हो। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, वे चुप हो रहीं। गहरी रात- देखा, कि गोपालवेशने श्रीकृष्ण विविध यख और भूपोंसे को जब राजभवनके समी सो रहे थे, उसी समय मोराने | भूषित युवतो गोपियोंसे घिरे हुए, कालिन्दोके सुनील- भक्तिपूर्वक गोविन्दजोको प्रणाम कर अलशित भावमें / अलमें कोड़ा करनेके लिये उत्सुक, मुफ्तामाला धारण राजमवनका त्याग किया। नदीके किनारे उपस्थित हो। किये, सुवर्णवलय, नूपुर और किरीट पहने कदम्यक्षमें पतिव्रता मीरा नदी में कूद पडी। संज्ञाशन्य हो मोराने संलग्न स्वर्णमण्डपिकामें येठ मुस्कुराते और कटाक्ष म्याप्त देखा कि, 'एक सुन्दर यालक उदे गोद लेनेके लिये मारते, सुन्दर मोठी पर वंशी लगाये सुमधुर स्वरसे हाथ बढ़ा रहा है। ये नवीन नीरदश्याम, नीलेन्दीवर- गोपियोंका मन मोह रहे हैं। उस घंशी गानफे महो. लोचन, वनमालाविभूषित गोपालरूपी कृष्ण उन्हें अड़गे | लासका स्मरण कर मीरा भक्तिके आवेशमें क्षण क्षण लगा कर कर रहे हैं, 'मीरा! तूने पतिकी आज्ञाको मूच्छित होने लगीं। उनका प्रेमाथु चंद न था। इस प्रतिपालन करके पविमक्तिकी पराकाष्ठा दिखाई है। प्रकार वृन्दावनके आनन्दसागरमें गोता मार मीरा हरि- अभी उठो, त्रितापित संसार दुःखसे दग्ध नरनारीको कीर्तन करने लगी। भक्तिकी सोवनी गाथा सुना कर अपने कर्तव्यका | __कहते हैं, कि भगवद्भपत रूपगोखामो इस समय वृन्दा- पालन करो। कर्तव्य कर्मका अभी भी शेर नहीं हुआ वनमें रहते थे। उन्होंने कामिनोकाञ्चनका त्याग किया था। है। · उठो! मेरी याहाका पालन करो।" यहां तक, कि ये नियों के मुख तक नहीं देखते थे। मीरा- .. होशर्म आ मोराने देखा कि मैं वाल पर पडी हुई। वाईने परमभपत रूपगोसामीफे भी माथ मिलनेकी इच्छा हूं। मीरा फिर चित्तौर न लौटी। हरिगुण गाने | प्रकट की। किन्तु गोस्वामीने इसे स्वीकार नहीं किया। गाने वृन्दावनधाम चली गई। गन्दावनचन्द्र कृष्ण इस पर मीराबाईने पन द्वारा उन्हें सूचित किया, पालक भेषमें मीराको पथ दिखलाने, उनको भूख प्यास 'गोस्वामी ठाकुर ! आज भो स्त्री पुरुषका ममझ न सके ! को शान्तिका उपाय करते उनके साथ चले। इस प्रकार | भगवान्के लीलाक्षेत्र वृन्दावनधाममें केवल एक पुरुषका ही . पालकों के साथ संकीर्तन करते करते मीरा वृन्दावनको आविर्भाय सम्मन है। ये ही सयं कृष्ण हैं। इसके अलावा मोर जाने लगो। रास्ते में मीराके संकीर्तन भावसे, सभी कृष्णगत प्राणा गोपनी है।' याद रूपगोस्वामी उन्मत्त हो भायुक लोग उनके साथ गृन्दावन चले। इस | आपको पुराप पतला कर अभिमान फरें, तो भगवान्फे प्रकार देश देशान्तरमें कृष्णप्रेमको सरिता उमड़ चली।। लोलाक्षेत्र वृन्दावनमें उन्हें यास करना उचित नहीं। शोक तापविभूत लोग उस सजीवनी-शान्ति सरिताका फ्योंकि, घे गीन ही किसी अन्य गोपीसे लामिछत शान्तिसुधा पान कर सन्तप्त-हृदयको शोतल करने होंगे।" लगे। रूपगोस्वामी भपतघ्रष्टा मीराबाईके पत्रका धाशय ____ जैसे भूतुराज वमन्तके आविर्भावसे बमुन्धराक समझ कर उन्हें युनाया और दोनो शाखालोचनामे परम विशाल-पक्ष पर अपूर्व सौन्दय और दिव्य शोमा दिखाई । सुषसे दिन विताने लगे। Vol. xvll. 173