पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७८५

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मुकुटराय-मुकुन्ददत्त ६७ मुकुटराय-दिल्ली वादशाह द्वारा सम्मानित नवद्वीपवासो । १ काशीमाहात्म्यसंग्रहके रचयिता । २ केनोपनिषष्टिपन, एक ब्राह्मण। ये फोड़ियान् नामसे परिचित थे। गरुडोपनिषटिप्पन, चूलिकोपनिषट्टिप्पन और ब्राह्मसूत्र नुकुटिन् ( स० वि०) मुकुट-मस्यास्तीति मुकुट-इनि ।। व्याख्या नामक चार प्रन्योंके प्रणेता।३ रागानुगा विवृत्ति मुकुटधारी, जिसने मुकुट धारण किया हो। के रचयिता। मुकुटी (स० स्त्री० ) अंगुलि-मोटन, उगली मटकाना। मुकुन्दक (स० पु० ) १ पलाण्ड, प्याज | कोई कोई सुकु- मुकुटेकार्पपण (स' क्लो० ) प्राचीनकालका एक प्रकारका | न्दकको जगह मुकुन्दक पढ़ते हैं। राजकर जो राजाका मुकुट बनवानेके लिये लिया "विशापो तत्र भूयीठ वरुकः सुमुकुन्दकः ।" (मुभूत ॥४६) जाता था। २पष्टिकतीहि, साठो धान । मुकुटेश्वर (स० पु० ) १ राजपुत्रभेद । २ शिवलिङ्ग-1 "पष्टिकः शतपुष्पश्च प्रमोदकमुकुन्दको । विशेष। ३ प्राचीन तीर्थविशेष । महापष्टिक इत्याद्याः पष्टिका: समुदाहनाः ॥" ( भावप्र०) मुकुटेश्वरी (स० स्त्रो०) माकोट (मुकुट ) देशको दाशा ३ तैरभुक्तके अन्तर्गत एक स्थानका नाम । . यणी मूर्तिभेद । मुकुन्दकवि-धानविशतिके रचयिता। मुफटे श्वरीतीर्थ ( स० क्लो० ) मुकुटेश्वरी देवीमूर्ति प्रति- मुकुन्दगोविन्द--ब्रह्मामृत-चर्पिणीफे प्रणेता रामानन्दके ठित माचोन तीर्थभेद। गुरु। मुकुट्ट ( स० पु० ) एक प्राचीन जातिका नाम जिसका मुकुन्द दत्त-श्रीचैतन्य महाप्रभुके सहपाठी एक प्रसिद्ध उल्लेख महाभारतमे आया है। (भारत० समापर्व) वैष्णव । चट्टप्रामके चकशाला नामक गांवमें मुकुन्ददत्त. मुकुण्टो ( स० स्त्री०) युद्धास्त्रविशेप, लड़ाईका एक | का घर था, किन्तु पाल्यवस्थासे हो वे नबढोपमें रहते हथियार । । थे। श्रीमहाप्रभुके साथ हो उनको विद्याशिक्षा आरम्म मुकुन्ति--तैलङ्गके अन्ध्रवंशीय एक राजा। । हुई थी। मुकुन्द ( स० पु० ) १ विष्णु । मोक्ष देनेके कारण इनका मुकुन्ददत्त-एक प्रसिद्ध यन्याय । आयुर्वेद शास्त्रमें उनका . नाम मुकुन्द हुआ है । अधया वे भक्तिरसमय प्रेम विशेष अधिकार था। एक सुचिकित्सक होनेके कारण यचन ब्राह्मणोंको दान करते हैं, इसीसे इनका नाम ! उनको सर्वत्र प्रसिद्धि थी। नवाय हुसेन खां दिन्दू कर्म- चारियों के विशेष पक्षपाती थे। उन्होंने इन्हीं मुकुन्द- "मुकुमव्यमान्तञ्च निर्याणमोक्षवाचकम् । को राजचिकित्सक नियुक्त किया था । एक दिन तद्ददाति च या देवो मुकुन्दस्तेन कीर्तितः ॥ नयाव वायु सेवनके लिपे ऊंचे स्थान पर बैठे थे, मुकु भक्तिरसप्रेभवचनं घेदसम्मतम् । भृत्य मस्तकको बगलमें मोरपंखसे धोरे धोरे पंखा यस्तद्ददाति विप्रेभ्यो मुकुन्दस्तेन कीर्तितः ॥" कर रहा था। चिकित्सक भी उसी जगह उपस्थित थे। (ब्रह्मवै पु० जन्मख० ११० भ०) मोरपंखका गुच्छा नवायके मस्तकमें लगते देख चिकि- २निधिविशेष। त्सकके मनमें एक महान भावका उदय हुमा। उनको "यत्र पद्ममहापौ तथा मकरकच्छपौ. स्मरण हुमा-धापी नटवरयपुः कर्यायोः कार्यकार विन- मुकुन्दो नन्दकरचैव नीलः सोऽटमोनिधिः ॥" दासः कमककपिरा वैजयन्तीय माला । धान येोरपराधया ( मार्कण्डेयपु०६८।५ ) निधि देखो।। पूरयन् गोप बन्दै वृन्दारपय पदरमण' प्राविशदगीत कीर्तिः" __३ रनभेद। ४ कुन्दुरि कुदरू । ५पारद, पारा || ____ स्मरण होते हो ये मलित हो नीचे गिर पड़े। बहुत ६ श्यत करवी, सफेद कनेर । 0 उपोदिका, पोईका देरफे बाद मूर्छा दूर होने पर नवाबने पूछा, 'तुम्हारे साग। ८गाम्मारयक्ष, गम्भारो नामका पेड़। हठात् गिरनेका कारण क्या है ? बैद्यने उत्तर दिया, मुकुन्द-कुछ प्राचीन संस्कृत प्रत्यकारों के नाम । यथा- 'शाहनगाह ! हमें यह एक रोग है।' Vol. III. 175