पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७९५

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७०" . वैद्यकमतसे मुफ्ताफे गुण ये है-शीतवोय, ! नागदन्ता मवानाम्याः कुमशुकरमत्स्यजाः । 'शुक्रवर्द्धक, नेत्रहितफर, वलकर तया पुष्टिकारक । भावः । वेणुनागभयाः श्रेष्ठा मौनिक मेघमं । वरम् ॥" प्रकाशके मनसे शुफ्ति (सीप ) आदि ऊपर लिखे सात (परिपुरामा २४६ म०) , पदार्थोसे मुफ्ना उत्पन्न होती है। हायो, सांप, सूमर पोर मछरीफे मस्तकमै 'मुना . . भातशोरगमीनपोत्रिशिरसस्त्वक्सारशङ्खाम्बुमृत् । होतो है । वाम, मांप और शंखके पेट में भी मुक्ता उत्पन्न शुक्तीनामुदराच मौक्तिकमणिः स्पष्ट' मवत्यष्टधा ।" होती है। (युक्तिकल्पतरू) "गजाहिकोलमत्स्यानां गो मुनाफा दवः । - "हाथी, सांप, मछली, सूअर, वांस, शंख तथा सीप त्वकसारशुतिशंखाना गर्ने मताफलोद्रयः ॥" इन सबके पेटसे आठ प्रकारको मुफ्ता उत्पन्न होती है। (युक्तिकल्पतरु ) पृहत्संहिताके मतसे- मुक्ता नौ रनोंमें एक प्रधान रत्न है। द्विपभुजगशुक्तिशङ्खाम्रवेणु तिमिशूकर प्रसूनानि । "भुक्रामाणिक्यत्रदुर्यगोमेदान् पनविद्रुमौ । ' मुक्ताफलानि तेषां यह साधु च शुक्तिजं भवति ।" पुष्पर:गं मरकत नीमन्येति यथाश्रमात् ।" । (वृहत्स०७११) (तन्त्रवार) .. हाथी, माप, सीप, शंख, अभ्र, घेणु, तिमि मछली मुक्ता बहुमूल्य रत है। इसको छाया, यर्ण और . तथा भूकर इन्हों सबसे मुक्ताको उत्पत्ति होती है। इन | विशेष विशेष गुण परीक्षादिके विषय है। इस .सव मुक्ताओंमें सीपसे उत्पन्न मुफ्ता ही उत्तम है। सम्बन्धमें अग्निपुराण, गाहपुराण, शुक्रनीति, गृहत् शुक्तनीति के अनुसार मछली, सांप, शकर, शङ्ख, वांस, संहिता तथा युक्तिकल्पतर आदि अन्धोंमें यहुत कुछ कहा मेघ तथा सीप ये सब मुक्ताके आफर है अर्थात् इन्हों| गया है। ज्योतिषशास्वमें भी इसकी यड़ी प्रशसा को सबसे मुक्ता उत्पन्न होती है। ऊपर लिखो मुफ्ताओं में गई है। इसको पहननेले विशेष फल होता है। चंद्रमा और सीपसे उत्पन्न मुफ्ता हो वहुतायतसे मिलती है, दूसरी वृहस्पति ग्रह जिसके विमुख है उसके लिये मुक्ताधारण दूसरी मुक्तायें दुर्लभ हैं। विशेष शुभप्रदफल है। जो रत्न धारण करने योग्य है ... मत्स्याहिशंखयाराहवेगुजीमूतशुक्तितः। वही रत्न धारण करना नाहिये, नहीं तो अशुभ फल .: जायते मौक्तिक तेषु भरि शुस्मु द्भव स्मृतम् ॥" होता है। ग्रहोंफो प्रसन्नता लिये मूल, धातु तथा ( शुक्रनीति । अन्तमें रत्न धारणको व्यवस्था देखो जाती है। गाहपुराणके मतसे बड़े बड़े हाथी, मेघ, शकर, ___ वृहत्संहितामें लिखा है-सिंहलका, पार- शत्र, मछली, सांप, सीप तथा वांस ये सव मुक्ताके लौकिक, सौराष्ट्रक, ताम्रपर्णी, पारसय, कावेर, पाण्डय. - उत्पत्ति-स्थान हैं। वाटक तथा हम आदि देशोंमें हाथी आदिसे मुक्का "द्विपेन्द्रजीमूतवराहशचमत्स्याहि शुफ्त्सुद्भय गुजानि । निकाली जाती है। मुक्ताफनानि प्रथितानि लोके तेपान्नु शु क्त्यु द्भवमेव भरि ॥" ___इन सब मुक्ताओं में जो यियिधारुति, स्निग्ध और (गरुडपुराण ६९ अध्याय) ईसकी जैसी आभायुक्त बड़ी बड़ा मुक्तायें है यह लंकामें - अग्निपुराणमें लिखा है-सोप, शंग्य, हाथीदांत, | कुम, सूयर, मछली, चांस तथा मेघ इन सबसे मुनाको ___ ताम्रपणि देशमें उत्पन्न मुक्ता कुछ तामड़ा रंग लिये उत्पत्ति होती है। मफेद होती है। सफेदं या पीली कर्कश और विषम ... ', . "सौगन्धिकोत्याः काराया मुक्ताफमास्तु शुकिजाः। मुनाफो पारलौकिक मुक्ता करते हैं। विमानास्तेभ्यः उत्कृष्टा ये च शंखाद्या भुनेः मौराष्ट्र देशको मुक्ता और .' '