पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७९९

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द१र मुक्ता-दर-मेढ़क | मेढ़कके माधेमें भी लिखे जा चुके हैं। ८ स्थानों में उत्पन्न होनेके कारण मुफ्ता जन्म लेती है। यह मुक्ता नागमुक्ताफे समान | मुफ्ता भी ८ प्रकारको होती है। आदरणीय और गुणोंमें उसीके समान होती है। पारलौकिक देशकी (Paralia) मुफ्ता काले, उजले "भेकादिष्यपि जायन्ते मणयो ये क्वचित् चित् । और पीले रंगकी और खुरखुरी होती है। सिंहलदेशकी ____भोजङ्गममणेस्तुल्यास्ते विभेया बुधोत्तमः ॥" युक्तिकल्पतक) मुक्ता बड़ी, मंझौलो. छोटो और विन्दुपरिमाण, सभी शुक्तिमुक्ता-शुक्ति मोप। मीगमें जो मुक्ता उपजती ) प्रकारको होती है। इन सब मुफ्ता की छाया या है उसे शुक्तिज मुक्ता कहते हैं। यही मुक्ता सय स्थानों- कान्ति स्निग्ध और मधुर होती है। पारलौकिक देशको में पाई जाती है। 'तपान्तु शक्युद्भव मेव भूरि जितने मुफ्ता अत्यन्त कठिन और भारी होती है। कले, उसले प्रकारको मुक्तायें हैं उनमें शुक्तिजमक्ता बहुतायतसे और पीले इन तीनों रंगको मुफ्ता यहां होती है। इन सय उत्पन्न होती हैं। दूसरी दूसरी मुक्ता दुर्लभ है। मुफ्ताओं में कंकरका दाग रहता है और ये विषम अर्थात् कोई कोई कहते हैं, कि समुद्र में ही शुकिज मुका उत्पन्न विलकुल गोल नहीं होती। होती है, अतएव केवल समुद्र ही शुक्तिमुक्ताको स्नान है। सौराष्ट्रदेशको मुफ्ता स्थूल, सुगोल, सुन्दर, सुनिल 'लेकिन केवल समुदमें ही मुक्ता उत्पन्ग हो, दूसरी जगह | मल, शुभ्रवर्ण गोर धनी होती है। ताम्रपणों मुक्ता 'नहों, ऐसा कोई नियम नहीं। किसी किसी जलाशयमें | तानवर्णको और पारसय देशीय मुक्ताकी जेमी होती भी शुक्ति-मुक्ताकी उत्पत्ति देखी जाती है। समुद्री यह है। विरादेशको मुफ्ता उजली और रूग्यो लावण्य. यहुतायतसे होती है, इसीलिये समुद्रको मुक्तामा आकर रहित होती है। • कहते हैं। रुक्मिणी नामक एक जातिकी शक्ति होती है उसमें "यस्मिन् प्रदेशेऽभ्युनिधौ पपातत् सुवारमुक्तामणिरत्नबीजम् । मुसा प्रायः नहीं उत्पन्न होती। यदि उत्पन्न हो तो यह तस्मिन् पयस्तोयधरावकीर्ण शुक्ती स्थितं मौक्तिकतामवार | सबसे उत्तम माझी जाती है । गगड़पुराणमें लिया है- खात्यां स्थिते रखो मेधैर्य मुक्ता जलविन्दवः । । "क्मिययाख्या तु या शुचिस्तत् मतिः मुदुनमा । • शीर्गाः शुक्तियु जायन्ते ते मुक्ता निर्मातत्विषः ॥” (युक्तिकल्पतरू) तत्र जातं सित स्वच्छ जातीफल्मसम भयेत् ॥ शुषितज मुक्ताके सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है- छायावदहुन रम्यं निर्दोघं यदि लभ्यते । "यस्मिन प्रदेशेऽम्पनिधी पपात गुचारुमुक्तामयिारत्मवीजम् । । अमूल्य तद्विनिर्दिष्ट रलक्षणकोविदः॥ तस्मिन् पयस्तोयधरायकीयो शुक्तौ स्थितं मौक्तिकतामया ॥ । दुर्लभ नृपयोग्य स्यादल्पभाग्य रनभ्यते ॥" स्वात्या स्थिते रवी मेधैर्य मुक्ता जन्मपिन्दयः । (गरूदपुराण । शीर्णाः शक्तियु जायन्ते ते मुक्ता निर्मलत्विपः॥" __ रयिमणी नामक शुक्तिमें जो मुफ्ता जन्म लेती है (युस्तिकल्प०) वर्या-विशेषकी जलधारा ही मुफ्तोत्पत्तिका कारण है। मेघसे छूटा हुआ मुफ्ताबीज स्वरूप जल जिस "सिंहातक-पारलौकिक-सौराष्ट्रक-नायि-पारमयाः । देशमें या जिस समुद्र में गिरता है वहांके सोपों में यह कौवेर पापड्य पाटकहेमा हत्याकारा स्पष्टौ ॥" (सं.८२) जल रह फर मुफ्ता उत्पन्न करता है। स्वातिनक्षत्रके मेघका अल सोपोंमें पड मुश्ता हो जाता है। इस प्रन्यान्तरमें-सेंहग्निरु पारलौकिकौराष्ट्रिक सानपर्ण पारसवाः । मुक्ताकी आमा बड़ी निर्मल होती है। कौवर पापड्य विरारमुक्ता इत्याराश्चाप्यो । पृहत्संहिता सिंहन्ट, पारलौकिक माराष्ट्र, ताम्र! प्रथम श्लोकमें पापड्याटम से एक देन या पायउप और याट- पर्णी, पारसय, कोयेर, पाण्ड्य, वाटधान और हम इन ! पान समझा जाता है लेकिन दूसरे श्लोकसे पारमय और विराट ८ स्थानों को मुक्ताका उत्पत्तिक्षेन कहा है। इनके लक्षण | दो देशका बोध होता है।