पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८०५

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मुक्ता-मुक्तात्मन् । ७५ छोटी मुक्तायें नजर नहीं आती । कोह में महाजन लोग समान छोटे छोटे मोती चीनदेश भेजे जाते है तथा सो सड़ने देते हैं। सड़ जाने पर असंख्य नीली नीली वे भीषधिक काममें आते हैं। करीद करीब दो महीनों- मक्खियां सोपोंका मांस खाने लगती हैं। उस समय बड़ो में समुद्र उपकूल एकदम जनशून्य हो जाता है। प्रति दुर्गधि निकलती है। इस दुर्गन्धसै कभी कभी हैजा भी फैल वर्ष तीनसे छः लाख रु०को मुक्का निकाली जाती है। जाता है । हैजा फैलने पर.मुक्ता निकालमा एक दम बंद होप नामक साहयके पास एक यहूत बड़ी हो जाता है। हांगरमछलीके उपद्रवसे भी किसी किसी वर्ग मुक्ता है । उसका घेरा च और यजन १००. रस्तो मुक्ता निकालगेका काम बंद रहता है १८६० ई०में हांगर अर्थात् थाध पाव होगा । रोममें एक व्यक्ति के पास देवताको पूजा अच्छी तरह न होने के कारण हगिरने वड़ा ८ लाख रुपयेकी एक मुक्ता-माला थी। इसके अलावा उपद्रव किया था। पीछे एक बूढ़ो औरतने मन्त्र पढ़ कर मिधोडिरिसकी प्रतिमूत्ति और दिल्लोको मोती मसजिद हांगरको भगा दिया । अङ्गरेज लोग जलके भीतर दिना- उल्लेखनीय है। माइटका शब्द फर हांगर भगाते हैं। यह शब्द जलमें। मिश्रदेशको-साम्राशी सुन्दरोश्रेष्ठ लियोपेट्राने डेढ़ लान तोन कोस तक जाता है। सेतुबन्धके पास एक ओर रात्री एक मुक्ताको चूर कर सेवन किया था। एलिजा. तुतिकड़ि और दूसरी ओर सिंहलमें मुक्ता निकाली वैयके समयमें सर टामस् प्रोस सादव अपनी माताको जाती है। सिंहल में मुसलमान लोग मुक्ता निकालनेके ढाई लास २०की एक मुक्तामालाको स्पेनकै राजदूतके लिये नियुक्त किये जाते है। सामने मदिरामें मिला कर पो गया था। प्रोस्म साहय अच्छी तरह सड़ने पर सीपके छिलकोको अलग पर स्पैनकी रानी के प्रेमी वायला हो गया था। सड़े मांसको भली भांति धोते हैं। वादमें उसीके भीतरसे मुफ्ताकण ( सं० पु० ) राजा अयन्तिवर्माके प्रतिपालित मुक्ता निकलती है। पश्चात् छोटो बड़ी मुकाओंको पक कवि । ( राजत्तर० ॥३४ ) पृथक पृथक करनेके लिये एक साथ पोतलके दश मुक्ताकलाप ( स० पु. ) मुक्तानां कलाप समूहोऽल । मकारको चलनी काम में लाई जाती है । चलनियों का । मुक्ताहार, मुफ्ताको माला । . आकार एक-सा रहता है। पहली चलनी में २० छेद मुफ्नाकार ( स० त्रि०) मुषवाको तरह भाकारविशिए। होते हैं। इसके द्वारा बड़ी बड़ो मुकायें अलग कर लो मुफ्ताशी (सपु०) एक प्रकारका बहुत उमदा बैंगन । जाती है। छोटी मुक्तायें छेद हो कर नीचे गिर पड़ती मुक्तागाछा--मैमनसिंह जिलेके अन्तर्गत एक प्राचीन हैं। दूसरो चलनोमें ३० छेद रहने हैं । इसी प्रकार ५२से भुसम्पत्ति । राजा ययाचार्य इस राजबंग आदि. ले कर १००० छेदयाली चलनी काममें लाई जाती है। पुरुप हैं। १००० छेदयाली चलनीके छेद सरसोंके समान मुक्तागार ( म० लो० ) मुफ्ताया आगारमिय, मुफ्तोत्पा- होते हैं । २० छेदहाली चलन में जो मुक्ताये भटक दनाधारस्वादस्य तथात्वं । शुक्ति, मोप।, , रहती हैं, ये बहुमूल्य होती हैं और उन्हें 'आनि' मुक्तागिरि---गाविलगढ़ के निकटस्थ एक गएडौल । कहते हैं । ८०० से ले कर २००० छिद्रयुक्त चलनियों में इसको गिगतो एक हिंदू नोर्थ में की गई है। मी मुकायें अटकती हैं उनका नाम 'टुल' है। चुनना , मुक्तागुण ( स० पु. । मुक्ताहार, मुक्ताको माला। -समाप्त होने पर बड़ी मुक्ताओंमें छेद किया जाता है। मुफ्तागृक्ष (सपु०) शुपित, मोष। . छोटे छोटे सुराखयाले तरीके हर एक छिमें एक , मुश्नाजाल ( स०सी०) मुक्ताका अलद्वारविशेष। पक मुक्ता भर दी जाती और तख्ता जलमें दुगा दिया मुक्तात्मन् (म० लि. मुक्ता मारमा यस्य । मुफ्तपुरुष जाता है। • जलमें तसता फल उठता और मोती सिद्रोंमें जो मायिक यन्धनको काट कर मुक्त होमो मच्छी तरह बैठ जाते हैं। तव तुरपुणके सश एक यन्त्र- सांसारिक या जागतिक सुख दुःसमें विमोदित नहीं से उनमें छेद कर धागा पिरोया जाता है। सरसों होते, ये हो मुफ्तात्मा हैं। मुनि देखो।