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मुखमार्जन-मुखरोग
मुखरोगभेद, श्लेप्मारोगके विकारसे होनेवाला एक । हैं जिससे मुंहमें नाना प्रकारफे रोगोंकी उत्पत्ति
रोग। इसमें मुंह मीठा-सा बना रहता है।
होती है।
.:
मुखमार्जन (सं० को०) मुखधौत करना, मुंह धोना। ओष्ठरोगको निदान और संख्या-मोठरोग ८ प्रकारका
मुखमोद (सं० पु०) मुखस्य मोदः हर्पः अस्मात् । १ है, वातज, पित्तज, कफज, सान्निपातिक, रक्तज, मांसज,
शोभाअन, काला सहिजन । २शल्लको वृक्ष, सलईका मेदज और अभिघातज।
वातिक ओष्ठरोगका लक्षय-वातसे उत्पन्न गोष्ठरोगमें
मुखम्पच (सं० पुं०) भिक्षुक, मिखारी। '
दोनों ओष्ठ कर्कश, रुक्ष, स्तब्धं और वातघेदनाविशिष्ट हो
मुखम्मल (अ० वि०) १ पांच फोनों या अगोंका । (पु०)
जाते हैं तथा ओष्ठ और त्वक् कुछ फट जाते हैं। पैतिक'
२ उर्दू या फारसीको एक प्रकारकी कविता । • इसमें
लक्षण-पित्तसे उत्पन्न ओष्ठरोगमें ओष्ठके ऊपर दाह,
एक साथ पांच चरण होते हैं।
पाक और वेदनायुक पोली फुसियां चेहरे पर निकल
मुखयन्त्रण (सं० क्लो०) मुखं मवादीनां यन्न्यते सङ्को.
आती है। श्लेष्मज लक्षण-इसमें मोष्ठके ऊपरो भाग
पर फोड़े निकलते हैं। उन फोडोंका रंग शरीरके रंग-
ध्यते पेनेति यत्रि सङ्कोचने करणे ल्युट। फविका, बोड़े।
के जैसा होता है। दर्द बिलकुल नहीं होता। ओष्ठ
या बैल आदिकी लगाम ।
पिच्छिल, शीतल और गुरु हो जाते हैं।
मुखर (सं०नि० ) मुख अस्यास्तीति मुख (उपमूषिमुष्क-
सन्निपातज लक्षण-विदेोपके प्रकोपसे ओष्ठके ऊपरी
मधो रः । पा ५।२।१०७ ) इत्यत्न प्रकरणे 'स्वमुखफोभ्य
भागमें कभी काले और कमो पीले फोड़े निकलते हैं।
उपसंख्यान' इति काशिकोक्त्यार । १ अप्रियवादो, जो
____ रक्तज लक्षण-रक्तसे उत्पन्न ओष्ठरोगमें ओष्ठके ऊपर
भप्रिय बोलता हो । पर्याय-दुर्मुख, अवद्धमुख। खजूरफे रंगके जैसे फोड़े निकलते हैं। उन फोड़से रक्त ।
"एको भार्या प्रकृतिमुखरा चञ्चला च द्वितीया ।" (उद्भट) हमेशा बहता रहता है और गोष्ठ बिलकुल लाल दिलाई।
२ बहुत बोलनेवाला, यकवादो। ३ अनगण्य, प्रधान ।
(पु०) ४ काक, फौ । ५ शङ्ख।
__मांसन लक्षण-मांससे उत्पन्न ओष्ठरोगमें मांसपिंड.
मुखरोग (सं० पु०) मुखस्य रोगः। यफ्नामय, मुहका
को तरह पीड़का (फोड़े ) निकलती हैं। ये पौड़का
गुरु, स्थूल और उन्नत होती तथा उनमें कोड़े । उत्पन्न
रोग। इसके लक्षण और चिकित्साका विषय चैद्यक-
होते हैं। .
शास्त्र में इस प्रकार लिखा है। गलेसे ले कर तालुदेश
. मेंदोज लक्षण-इसमें घृतमण्डकी तरह खुजली होती .:
तकके भागको मुख कहते हैं।
है जिससे स्फटिककी तरह सफेद पीप हमेशा अधिक
"मोठी च दन्तमूलानि दन्ता जिहा च तालु च।
मातामें गिरती रहती है।
गलो मुखादिसकलं सप्ताङ्ग मुखमुच्यते ॥" (भायप्रकाश)
____ अभिघात लक्षण-यभिधातसे उत्पन्न ओप्तरोगमें
दोनों ओंठ, मसूड़ा, दांत, जीभ, तालू और गला इस ) मोष्ठ फट जाते हैं, पर दर्द नहीं होता गौर लाल दिखाई
सातों अङ्गको मुख कहते हैं। इन सब अङ्गों में जो रोग | देते हैं। इन ८ प्रकारके गोष्ठरोगोंको यथाविधि चिकित्सा .
होता है, उसे मुखरोग कहते हैं। मुखरोग कुल मिला कर करनी चाहिये।
६७ प्रकारके माने गये हैं। इनमेंसे ओंठमें ८, मसूड़े में | ___ चिकित्सा-उक्त सभी प्रकारके रोग रक्तकी अधिः
१६, दांतमें ८, जीभौ ५, तालूमें ६, कण्ठमें १८ और कतासे हुआ करते है। गले, मसूढ़े और दांत के रोग
मुहमें ३ हैं।
प्रधानता रक्तको अधिकतासे. उत्पन्न होता है। 'मत.
आनूपमांस, दूध, दही और उड़द आदिका सेवन | पव इन सब रोगों में दुष्ट रफ्तको निकाल देना, उचित
करनेसे फफप्रधान तीनों प्रकारफे दोष फुपित हो जाते है। रक्त निकालनेके याद तेल, घी, चषों और मना
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८१२
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