पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८१३

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मुखरोग ७२५ इन्हें मोममें - मिला कर लगानेसे बहुत उपकार तरह सूजन पड़ जाती है और उससे पीप भो निक होता है। लती है। शिरावेध, यमन, विरेचन, तितधृतपान, मांसभोजन, चिकित्सा-जिहागत रोगौ रक्त निकाल देना अच्छा । शीतलप्रलेप और परिपेक द्वारा पैत्तिक ओष्ठ रोगको है। गुलञ्च, पीपल, नीम और कटको इन सय द्रश्योंका चिकित्सा करनी होती है। कफज ऑष्ठ रोगमे रक्त काढ़ा कर कुछ गरम रहने कुल्ली करनेसे जिहारोग शान्त निकाल कर शिरोविरेचन, धूम, स्वेद और फवलका | होता है। यातज भोप्टरोगोक्त चिकित्साकी तरह यातन प्रयोग हितकर है। मेदोज ओष्ठरोगमें क्षतस्थानको काट | जिहारोगी चिकित्सा करनी होती है। पित्तज जिहा. फर मेद निकाल देना चाहिये। पीछे उसे विशुद्ध कर स्वेद रोगमें रखे पत्तेसे जोभको घिस कर दूषित रक्त निकाल प्रयोग और अग्नि फर्म करना आवश्यक है। इसके बाद ) दे । पीछे काकोल्यादिगणरुत प्रतिसारण, गण्डप, प्रियगु, त्रिफला और मधु द्वारा प्रतिसारण करे। चूर्ण, नस्य और मधुर द्रश्यका प्रयोग करना होता है। कफज कल्क या अवलेह द्वारा दन्त, जिला और मुखको धोरे जिहारोगमें मण्डलादि अस्त्र द्वारा दूषित रक्तको निकाल धीरे उगलीसे घिसनेको प्रतिसारण कहते हैं। फर पीछे मधुयुक्त पिप्पल्यादिगण चूर्ण को उगलीसे दन्तयेष्टरोग, दन्तवेष्टरोग १६ प्रकारका है, जैसे- घिसे । ऐसा करनेसे रोग बहुत जल्द दूर हो जाता है। शोताद, दन्तपुप्पुट, दन्तयेष्ट, शैशिर, महाशशिर, परिदर, उपजिहिका रोगमें रुपये पत्ते से गोभको घिम कर • उपकुश, घेदर्भ, खलियर्डन, अधिमांस, पांच प्रकारको ययक्षार, हरीतकी और चिता इनका समान भाग ले कर दन्तनाड़ी तथा दन्तविद्रधि। चूर्ण करे । पोछे उस चूर्ण को घिसने अथवा उससे चतु जिहवागत रोगका निदान और संख्या । जिहारोग | गुणा जलमें तेल पाक करके प्रयोग करनेसे बहुत लाभ पांच प्रकारका है, बातज, पित्तज, कफज, अलास और होता है। उपजिशिका। ____ तालुरोग-तालुरोग है प्रकारका है, जैसे-गल- वातज जिहारोग-वातदूषित जिला विदीर्ण हो कर शुण्डी, तुण्डिकेरो, अमृप, फच्छप, ताल्वयुद. मांससंघात रसशानशून्य होती है और उसमें कांटे पड़ जाते हैं। तालपुप्पुट, तालुदेोप भोर तालुपाक। पित्तज लक्षण-जिहाज, पित्तसे दुपित होती है, तव ___गलशुपिडका लक्षण-दूपित कफ और रक्तसे तालु. , उसमें जलन देती है और छल्ले पड़ जाते हैं । कफज | मूलमें लम्या अधच यातपूर्ण चर्मपुटककी तरह अत्यन्त लक्षण-जिहा कफसे दूषित हो कर गुरु और स्थूल शोध उत्पन्न होनेसे उसको गलशुएको कहते हैं। इस . हो जाती है तथा उसमें शोमल कांटेके जैसे मांसाङ्क रोगमै प्यास खूब लगतो, यांसी. और दमा होता है। निकल आते हैं। तुएिडफेरी लक्षण-दूपित कफ और रक्तसे तालुमूलमें . भास लक्षण-पूपित कफ और रक्तसे जिहाका सुई चुभने सो घेदना और पाकयुक्त बनकपास फलके निम्न भाग जय सूज जाता है तब उसे अलास नामक। जैसा अब शोथ उत्पन्न होता है, तब उसे तुएिडफेरो जिहारोग कहते हैं। इस रोगके बढ़ने से जिला स्तम्मित । कहते हैं। अम्रप लक्षण-कुपित रक्तसे तालुमूलमें हो जाती और पकने लगती है। स्तब्धता वायुका कार्य : उपर और अत्यन्त घेदनायिशिष्ट रक्तवर्णका स्तब्ध शोथ है और पाक पिचका कार्य है। मनएय जिहाफे स्तम्मित उत्पन्न होने से उसे भीम्रप कहते हैं। कच्छप लक्षण- , और पाकयुक्त होनेसे समझना चाहिये, कि घायु और कुपित कफसे तालुमूलमें वेदनाचिदीन अथच विरो- पित हो इसका कारण है । अतएव यह रोग त्रिदोषज त्थित एय' कछुए-सी यातियाले सयका नाम कठप दुःसाध्य है। .. उपजिहिका मन्नण--उपजिहिका रोगमें दूपित कफ तरह तथा पूर्वोक्त . ' भौर रकसे जिहाके निचले भागमें जिहा मप्रभागको | होनेसे उसको ... ' red AII. 1826 है। ताल्वर्यु द ......... . ....