पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८१४

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मुखरोग दुपित कफसे तालुमूलमें वेदनारहित फोड़े निकलते। वातज लक्षण-वातसे उत्पन्न रोहिणो रोगमें जीभके हैं, इसीको मांससंघात कहते हैं। तालुपुप्पुट लक्षण- चारों ओर दर्द करनेवाला और गलेको रोकनेवाला मेदोयुक्त फफसे तालुमूलमें वेदनारहित शोथ होनेसे मांसका अंकुरं निकलता है। पित्ता लक्षण-पित्तसे. उमे नालुपुप्पुट कहते हैं। उत्पन्न रोग, मांसका अंकुर बहुत जल्द निकल माता ___ तालुंशोथका लक्षण-दूषित वायुसे जव तालुदेश है। उसमें जलन देती है और वह पकने पर भा जाता सूज आता और दर्द करता है तथा रोगोको श्वास गति , है। इस समय उयर भी चढ़ आता है। श्लेष्मज तेज हो जाती है तब उसे तालुशोप कहते हैं। तालुपाक लक्षणा-कफसे उत्पन्न रोहिणी-रोगो मांसका अंकुर लक्षण-दूषित वायुसे तालुमें जब अत्यन्त पाक उप- गुरु, स्थिर और अल्पपाकविशिष्ट होता है तथा कण्ठ- स्थित होता है, तब उसे तालुपाक कहते है। स्रोत बंद हो जाता है। ___ इसको चिकित्सा-कुट मिर्च, वच, सैन्धव, पोपल, सनिपातिक लक्षणं-दोषिक रोहिणीरोगमें उक्त तीनों अकवन और केवटी माथा इनके चूरको मधुके साथ प्रकारके लक्षण दिखाई देते हैं तथा मांसांकुर गम्मोर. मिला कर घिसनेसे गलशुण्डी नष्ट होती है। पृद्धांगुलो। पाकी हो उठता है। यह रोग असाध्य है। और तर्जनी अंगुलिसे संदंशया संडसी नामक हथियार ! : रक्तज लक्षण-रक्तजन्य' रोहिणीरोगमें जीभके को पकड़ बाहर खींच कर मण्डलांप्र अस्त्र द्वारा जिहा पर । निचले भागमें छल्ले पड़ जाते हैं और पित्तज रोहिणीके की गलशुण्डीको काट डाले। यह काम बड़ो सावधानी ' सभी लक्षण दिखाई देने लगते हैं। यह रोग साध्य है। से करना होता है, क्योंकि, अधिक फट जानेसे रोगीकी : त्रिदोपसे जो रोहिण रोग उत्पन्न होता है. यह उसो जान पर पड़ती है। फिर अच्छी तरह नहीं काटनेसे समय रोगीका प्राण हरता है। कफज रोहिणी रोगमें भी शोथ, लालसाव और भ्रम होता है। अनन्तर पीपल, ५ दिनमें और यातजमे ७ दिनके अन्दर रोगीका प्राण अतीस, कुट, यच, मिर्च, सैन्धव और सोंठ इनके चूर्ण-, नाश होता है। फो मधुके साथ मिला कर प्रतिसारण करना होता है। ____ काठशालूक लक्षण-कफके विगड़नेसे गलेमें जो मांस- यच. अतीस, रास्ना, कटकी और नीम इनका काढ़ा बना पिण्ड निकल आता है उसोको कण्ठशालक कहते हैं। कर कुलो करनेसे तुण्डिफेरी, अभ्रप, कच्छप, मांससंघात यह रोग शस्त्रक्रिया द्वारा आराम होता है। . और तालुपुप्पुट नष्ट होता है। शस्त्रक्रियाके याद और। अधिजिटिक-रतमिश्रित कफसे जीभके ऊपर सूजन अवस्याविशेषमें यह क्रिया करनी चाहिये। तालुपाक- पड़ जाती है, इसीको अधिजिहिक कहते हैं। पकने पर रोगमै पित्तनाशक क्रिया करनेसे बहुत उपकार होता है। इस रोगको असाध्य समझना चाहिये। तालुशोपमें स्नेह स्वेद तथा वायुनाशक क्रिया करनी ____घलय -फफके विगढ़नेसे गलेमें शोध उत्पन्न होता होती है। . हैं। यह शोध विस्तृत, उन्नत और अन्नपहा नाडीको ___ गमरोग--गलरोग १८ प्रकारका होता है। जैसे- रोकता है। इसी का नाम चलय है। यह रोग मो पांच प्रकारको रोहिणी, फराठशालूक, अधिजिह, असाध्य है। वलय, पलास, एकन्द, पृन्द, शतघ्नी, शिलाघ, गल यन्नास-जिस रोगमें कुपित वायु और कफसे गलेमें विद्रधि, गलौघ, स्वरघ्न, मांसतान और विदारो। चेदनायुक्त शोथ उत्पन्न होता है तथा रोगी मुई चुभने- · · पांच प्रकारको रोहिणीके लक्षण- दुषित वायु, पित्त, कफ, सी घेदना अनुभव करता है उसीको वलास कहते है। और रक्त गले के मासको दूषित कर गलेमें मांसका यह रोग असाध्य है। कर पैदा करता है। यह अफर गलेको रोक देता है। एकन्द-दूपित कफ और रक्तसे गलेके भीतर जलन "ईसीका नाम रोहिणो है। यह रोग जीयनाशक माना देती है और वर्तुंलाकार शोथ उत्पन्न होता है, इसीफा गया है। . . . . . . नाम एकन्द है।