मुखे ग्र-मुख्यमन्त्री
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.. "एवमुक्त्वा ततः शीघ्र कृत्वा चैव प्रदक्षियम्। सबसे पहले करनेवाला, मंगुमा। २ यलमस प्रदायके
ज्वलमानं तथा वहिं शिरः स्थाने प्रदापयेत् । मन्दिरोंका कर्मचारीविशेष। इसका प्रधान काम मूर्ति
... चातुर्वयोंधु संस्थानमेय भवति पुत्रिके ॥" (शुद्धितत्व ) पूजना और भोग लगाना है। ऐसा कर्मचारी प्रायः पाक-
मुखान ( स० क्लो०) १ भोष्ठ, मोठ । २ किसी पदार्थका विद्या में भी निपुण हुमा करता है।
अगला भाग । (नि०) ३ कण्ठस्थ, जो जवानी याद हो। मुखुली ( स० स्त्री०) बौद्ध देवताभेद, धौद्धोंको पक
मुखातिव (अ० वि०) जिससे वातको जाय, जिससे कुछ देवीका नाम ।
कहा जाय ।
| मुग्वेभय (स० वि० ) मुखजात, जो मुहसे निकला हो।
मुनानिल ( स० पु०) मुखस्य अनिलः । मुखमारत, मुख. मुखोत्कीर्ण (सपु०) काश्मीर-पति कुमारसेनका मन्त्री।
वायु।
(राजतरमियी ३१४)
मुखापेक्षक ( स० त्रि०) अनुग्रहलामेच्छु, दूसरोंका मुह मुखोल्का (स० पु० ) मुखं उल्केव यस्याः। दायानल,
ताकनेवाला।
दावाग्नि ।
मुखापेक्षा ( स० लो०) दुसरोके आश्रित रहना, दूसरोंका | मुख्तलिफ (म० वि०) १ भिन्न, अलग । २ विविध प्रकार-
मुंह ताकना।
का, तरह तरहका।
मुखापेक्षी (सपु० ) दुसरेकी रूपाटिके भरोसे रहने- मुख्तसर (अ० वि०) १ सक्षिप्त, जो थोड़े में हो । २ अला,
पाला, वह जो दुसरोंका मुंह ताकता हो।
थोड़ा । ३ शुद्र, छोटा।
मुखामय ( स० पु०) मुखस्य आमयः ६ तत् । मुखरोग। मुप्तार (अ. पु० ) मुख्तार देखो।
मुखामृत (स० क्लो०) मुखनिःस्तृत अमृत ना सौन्दर्य, मुख्य ( स० पु०) मुखामिय मुख्या विकार सत्यादिना
मुखभी । २ यह लार जो छोटे छोटे योंके मुहसे , इवार्थे य । १ प्रथम कल्य, यशका पहला फल्प ।
बहती है।
यागादिषु शास्त्रोक्तपथमः फल्पो मुख्यः स्यात् ।
1. 'मषामोह (स० पु० स्त्री०) १ शल्लको पृक्ष, स लईका पेड़।
(अमरटीका भरस २१३४०)
२काण शिग्रु. काला सहिजन। .
२ घेदका अध्ययन और अध्यापन। ३ अमाम्त
- मुखाचिस (स' क्ली० ) मुखे दत्तं अञ्चिः । माखग्नि । | मास। (त्रि.) ४ श्रेठ, सबमें पड़ा।
मुखार्जक (सपु०) अर्जक वृक्ष, यनतुलसीका पौधा ।। "प्रधानमुत्तर्ग रम्य ' मुख्यमगुत्तमम् ।
। मुखालिफ (१० यि०) १ विपरीत, जिलाफ। २ शत्र, वर गरेपयं प्रमुछा पराद प्रवरन्तथा ॥"
दुश्मन । ३ प्रतिवन्धी।
(पंचक रत्नमाला)
मुखालिफत (अ०वि०) १ विरोध १२ शठता, दुश्मनो। मुम्पनान्द्र ( स० पु०) मुस्यश्चान्द्रः। चन्द्रसम्यन्धीय
मुम्बाल (सपु०) स्वनामख्यात कन्दशाकविशेष, एक प्रधान मास, चान्द्रमासके दो विभागोंमेंसे एक चान्द्र.
प्रकारका बड़ा मोठा कंद । इसे स्थूलकन्द, महाकन्द या मास दो प्रकारका है, मुरुपचान्द्र भीर गौणचान्द्र ।
दीर्घकन्द भी कहते है। यह मधुर, शीतल, रुचिकारी, मुख्यतस् ( सं० अध्य० ) मुख्य-तसिल । धेष्टरूपसे,
धानबर्द्धक तथा पित्त, शोप, दाह और प्यासको दूर करने
अच्छी तरह।
याला माना गया है।
मुख्यता (म खो०) मुरुष भाये सल् टाप् । प्रेता,
मुखासर (सपु०)१ धूक । २ लार। .
मुख्य होनेका भाय ।
मुवान (स० पु०) मुख अस्त्रमिय यस्य । फर्कट, केकड़ा गदास्पियुद्ध रावांपु च सापुमौ ।
मुनास्राव (-सपु०) महसे बहनेवाली लार या चक। अचिरान्मुख्यता प्राप्ती सर्व मोके धनुष्मता -
मुखिक (सं० पु०) मुष्का श, मोखा नामक पेष्ठ। मुख्यनृप ( स० पु०) मुख्यः ष्ठ नृपः।
मुखिया (हिं० पु०) १ नेता, प्रधान । २.किसी कामको मुण्यमन्त्री (स पु०) Trail
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८१९
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