पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८३९

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मुगाई-मुयोस उद्दीन सरके मदरके पृष्टगोर होने कारण प्रेजोंके हाय मुन्धबुद्धि (संशिक) जिनकी बुद्धि प्रान्त हो, पड़े मार मार डाले गये। दहादुरमादाने गदर के समय येव अपने नामोतिर नन्दादे। मुग्धोध (सं. ही मुन्धः मुन्दरः दोघः मानं पद- मुलांफा विक) मुगा -मा, मुगटोनशे रहा। पदायानां भवत्यस्मात् , रक्षा मुग्धान महान् अल्प मुगल पठान (का-पु.) एक प्रकारका मेन ! यह युद्धोन् जनान दोघदतीति दुघ भन्। दोपदेवकृत व्याक- उमीन पर माने सोन र मोरह मंडियों में मेला परिसर । यह च्याइरन पढ़नेसे पदपदायका यसो दरद मान हो जाता है अश्श मन्दबुद्धिवाले भी उत्तम गुमलाई फासी मुगल होने नाव, नगरान। मानदान कर मरते हैं. इसीने इसका नाम 'मुबोध मुल्तानी । फासोमुगलनातिको खो। कपडा सासरम' हुआ है । प्रायः सभी व्याकरनकारोन मानेवालों को। दातो. मजदूरना। पानिनिका अनुमान र व्याररप लिखे हैं : किन्नु अपनी कार खोपकारका पसी रोग जो छोटे दोरदेवने किसोया आधार नहीं लिया है, न दुनः पर छोटे बोको होता है। इनमें उनसे हाथ पैर जाने इन बारमकी रचना की है। इसमें जो सद संहार और वे बेहोर हो पड़ते हैं। और मूब है ये दुरुन्चागं और गूढःयुट है। इन्नोई नुगवन (६० पु०) दनन्ग मोउ।। यह च्या आसानीमै नमरमें नहीं पाता। विधेर नुनवाई संम्बी० । मदिनया, मयूरकही। युटिम्दा न रहनेने इम ब्याकरप ट्युत्पत्ति लाम नगलना (म.पु. घोसा मामा। करना कठिन है। मुगस्यान (संसो .) इनरदने। "कुन्द मच्चिदानन्द पिपत्य प्रपोपडे। गुरमदान्यापा.. पहा । २दिर पर मारवं पराये म्पा' ( नया) मुग -अध्यादेश गंदा हिलेरे. जागढ़ पहाडका एकस याकरपको सरन करनेके दिये मुन्धदोधपरि- मला और कन्दरा। फन्दा बहुत-सा देव देवियोंकी ,मुग्धोषपदीप. मुग्धदोघसम्बोधिनी, मुग्धदोघ- पटर्तियां हैं । बिडारीकोंक उरदरमे लात्म- दोधिनी आदि रोकार रची गई हैं। रमा करने के लिये इस मनके रिशमी इसा पर्यन र मुन्धमा । पुनरन्टना, बुद्धिहीनता। हिरएटे थे। यहां पर मेला लगता है। मुन्धयत् । संवि मोहित, नासल। मुबई.वि.) नत कर रहा हु, जो बहुत मुग्धा । सं की. ) नु-ध-राप । नायिकाभेद । यह सोनबर या सरकार न हो जाय। पु.)२ दांव- नायिका स्वाया और परकीयाके मेदसे दो प्रकारको है। में दइ मया जिसमें न हार दो मार न त। इन फिर म्यांमार तीन भेद है, मुग्या, मध्यमा और मुग्धा संदिमुह-कचरि ! मह मोह या मगजमा। यह तीनों नायिका झायौवना और अमात- बम पड़ा हुमा २ सुन्दर, खुदमुरन: ३ मोहित, पौवनाके भेदस दो प्रकारको है। फिर इसके भी माट। ४ नोन, नया दो प्रकार हैं, नबोढ़ा और विन्धनबोड़ा । सटजमाव मुग्धता (सं: मनोमय-चतराप। मुन्धत्व, और पराधीनरति होनेसे नवोदा तथा सद्भात-प्रजयाको रहा। २ सौन्दर्य मुन्दरता मोहित का प्रासद विद्यन्यनदोढ़ा कहते हैं। इसकी चेष्टा और क्रिया मनो- होनेछनार हारिणो है। इसका कोप दडुन हो मृदु होता है और नधय सं० सो विशाल दृष्टि, बड़ो बडो आने। इसे साइ सिगारका दहुन माब रहता है। .. ( निःसुन्दर नादिगिय मन्दी आंखघाटा। मुघोस उदोन-दिल्लीका गुलामवंशीय राजा दरबनमा नपा र संनिसरट दुद्धि। मोजा! इसका असल नाम मालिक डाकू था। राज- RITII. 166