पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८५३

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मुज-मुअवटं करते हैं। महाभारतमें शायद इस मुख गांधका उल्लेख : मुअकेतु (सं० पु. ) महाभारतके अनुसार एक राजाका भाषा होगा। नाम। मज (सं० पु०) मुझ यते मृज्यनेऽनेन मुञ्ज-फरणे मत्र । १ | मुझकेश (सं० पु०) १ मुञ्जके जैसा केशवाला। (पु०) तृणविशेष, मज नामक घास। पर्याय-मौली-तृणाण्य२शिव, महादेव । ३ विष्णु। ४ महाभारतके अनुसार 'ग्रामण्य, सेजनाहय, पाणीरफ, मुझनक, शोरी, दर्भाहय, | एक राजाका नाम। ५ आचार्यभेद । ६ विजितासुरके दूरमूल. दृढ़तृण, इदमूल, यहुप्रज, रअन, शत्रुभङ्ग। | एक शिष्यका नाम । इस घासमें संठल या रद्दनियां नहीं होती, जड़से ! मुबकेशवत् (सं० पु.) १ विष्णु। २ कृष्ण । बहुत ही पतली दो दो हाथ लंयो चारों ओर निफली | मुअकेशिन् (सं० पु० ) मा इव केशाः सन्त्यस्य इनि । विष्णु। रहती हैं। ये पत्तियां यहुत धनी निकलती हैं जिससे मुअग्राम ( स० पु०)एक प्राचीन नगरका नाम ! बहुत-सा स्थान घेर लिया जाता है। पौधेके ठोक बीचमें | Bा -एक सीधा कांड पतलो छड्के आकारमै ऊपर निकलता। (महाभारत २।३१।१४) है। उस छड़के सिर पर मंजरोके रूपमें फूल फूलते हैं। मुझनाल (सं० क्ली०) घोड़ोंकी आंखके मुझक रोगका उस सरकंटे और मजमें यहो मेद है, कि इसमें गांठे नहीं समयका नाम जय यह बहुत बढ़ जाता है। मुजक देखो। होतो, सरकंडे में बहुत-सी गांठे दोती हैं। मजकी छाल | मुअतृण ( सं० लो०) मुख, मज । 'चमकीली और चिकनी, पर सरकंडेकी ऐसी नहीं होती। मुझनक ( सं० पु०) मुञ्ज। सीकेसे यह छाल उतार फर यान सुन्दर सुन्दर हालियां | मुञ्जनजन ( सं० वि०) मुजतृण द्वारा शोधित, तृण- रहित । धुनी जाती है। मज यहुत पयित्न मानी जाती है।। • ग्राह्मणों के उपनयन संस्कारके समय घटुको मुआ-मेखला : मुझन्धय । सं० वि० ) मुजरस पानकारी, मूजका रस । पीनेवाला। पहनाया जाता है। धेचकर्म इसे मधुर, शीतल, फफ. पितज रोगनाशक माना है। | मुञ्ज पृष्ठ (सं० पु०) महाभारत के अनुसार एक प्राचीन प्रदेशका नाग जो हिमालय पर्वतमें था। सामधापस गोत्रम उत्पन्न एक व्यक्तिका नाम । म. मुन्नमणि (सं० स्त्री०) पुष्परागमणि, पुखराज । (पविंशत्रा० ४११) मुनमय (सं०वि०) मूज घाससे घिरा या यना हुआ। " महाभारतोक्त एक ब्राह्मणका नाम । मुअमेग्वला ( सं० सी० ) मजकी बनी हुई मेखला । यह (भारत वनपर्व) यज्ञोपवीतके समय पहनो जाती है। - . धाराराज्यके एक राजा और कविका नाम । मुझमेखलिन् (सं० पु.) १ विष्णु। २ शिव, महादेव । नापति देखो। मुअर ( सं० क्ली) मुन्यते मुख-याहुलकात् अरन् । १ .५ चम्पाराजके एक पुलका नाम । फमलकी नाल, मृणाल । २ कमलको जड़। मुक (सं० पु० ) घोड़ों की बिका एक रोग। कीड़ोंके जवट (सं० लो०) महाभारतके अनुसार एक प्राचीन ...कारण यह रोग नेत्रपटल पर होता है। जब यह यढ़ जाता है, तब मुलालक कहलाता है। यह लाल, स्फटिकके - जैसा. सफेद और सरसों के तेलफे जैसा होना है। | प्रथम तलव द्वितीयं स्फटिकप्रभम् । ..

अन्तिम लक्षणवाला मुझक असाध्य है 1. . रक्ताभश्च तृतीयञ्च चतुर्थ तैलमुच्यते ॥

प्रथमं पटानं साध्यं द्वितीयञ्च तथा भवेत्। .

  • "एकेन मुखमाल्यात बहुभिमुखजातकम् । ।

तृतीय कृच्छसाध्य स्यात् सवर्य नैय सिध्यति । -- मिभिः पटलान्तस्यैषिद्यान्नेत्रग्जाद्वयम् ॥