पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/१०१

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पाँचवाँ अध्याय

कसरती लोग बहुधा अकड़कर या झुमकर चलते है, पर उनका यह कार्य शिष्टाचार के अनुकूल नहीं माना जा सकता। दुबले पतले और बूढ़े आदमियों का इस प्रकार चलना तो उपहास के योग्य है। कई-लोग हाथ पाँव फटकारकर ऐसी विचित्र चाल चलते हैं जिसे देखकर लोगों को हंँसी आजाती है। बहुधा किसी एक चाल में चलने का अभ्यास कुछ समय में ऐसा पक्का हो जाता है कि यह कठिनाई से छूटता है, इसलिए किसी को भी धनावटी चाल चलने की आदत न डालनी चाहिये। जहाँ तक हो चलने की रीति न बिलकुल धीमी हो ओर न बिलकुल सपाटे की। लोगों को सदैव अपने बांये हाथ की ओर चलना चाहिये और अपने को दूसरे के तथा दूसरो को अपने धक्के से बचाना चाहिये।

जहांँ चार आदमी बैठे हो वहाँ पैर फैलाकर अथवा दूसरो की ओर पैर करके बैठना उचित नहीं । कुर्सी पर दोनो या एक पर रखकर बैठना अथवा पैरों को नीचे रखकर उन्हें हिलाते रहना अशिष्ट समझा जाता है। अधिक प्रतिष्ठित लोगो की बराबरी से बिना उनका इन्छा के न बैठना चाहिये। फर्श पर जूता पहिने अथवा मैले पाँव से बैठना ठीक नहीं।

किसी की ओर लगातार टकटकी लगाकर देखना अनुचित है।चलते समय लोट-लौटकर पीछे देखना या बार बार दायें- बायें देखना उचित नहीं है। बातचीत करते समय सुननेवाले की ओर देखकर बातचीत करना चाहिये और उसकी बात सुनते समय भी वैसी ही दृष्टि रखना चाहिये । जब कोई मनुष्य स्नान अथवा भोजन करता हो या कपड़े पहिनता हो, तब जहाँ तक हो सके, उसकी पोर आवश्यकता से अधिक दृष्टि न डाली जाय । कभी कभी लोग परिचित लोगो से भी कारण वशात् आँख बचाकर निकल जाते हैं, पर ऐसा बहुधा न किया जावे । किसी की ओर