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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


में भी पुरुषों का यह कर्त्तव्य है कि जहाँ तक हो सके वे स्त्रियों के लिए आवश्यकता पड़ने पर जगह खाली कर दें।

(२) बड़ो और बूढ़ों के प्रति

छोटो का कर्त्तव्य है कि वे अपने से बड़े और बूढ़े लोगो की उचित आज्ञा का पालन करें, चाहे वे किसी भी जाति अथवा स्थिति के क्यों न हो । यदि वे लोग सभ्यता पूर्वक किसी कार्य में छोटों से सहायता मांगे तो इन्हें यथा सम्भव उनकी सहायता करनी चाहिये। बड़े ओर बूढ़े लोगो का उचित आदर किया जाय और उनसे आव श्यक कार्यों में सम्मति ली जावे । अपने से अधिक उमर-वाले परिचित लोगों से भेंट होने पर प्रणाम करना चाहिए और यदि वे कुछ पूछें तो सभ्यतापूर्वक उनकी बात का उत्तर देना चाहिये।

गुरु के प्रति विद्यार्थी को सदैव नम्रता और आदर का भाव प्रकट करना चाहिए । जब तक कोई सदिग्ध अवस्था उपस्थित न हो, तब तक गुरु की आज्ञा टालना अनुचित है। गुरु से जितने बार भेंट हो, उतने ही बार आदर पूर्वक प्रणाम करने में कोई हानि नहीं है। गुरु से व्यर्थ वाद-विवाद अथवा मुँह-जोरी करना विद्यार्थी के लिए निन्दा का विषय है । पाठशाला सम्बन्धी कार्यों में गुरु की आज्ञा न मानना अपने कर्त्तव्य को भूलना है। विद्यार्थी बहुधा पाठशाला में दिया हुआ शिक्षा सम्बन्धी कार्य न करने पर भूल जाने का बहाना करते हैं, पर यह काम समझदार विद्यार्थियों के लिए बहुत ही अनुचित है। गुरु के सामने पोशाक अथवा बातचीत में असाधारणता दिखलाना उचित नहीं । कई-एक विद्यार्थी दूसरे विद्यार्थियों के सामने शिक्षक की कई-एक बातों की नकल करके विनोद किया करते हैं, पर यह काम अशिष्टता का है । जहाँ तक हो विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह आवश्यकता पड़ने पर अपने शिक्षक को शकि-भर उचित सहायता देने में कमी न करे।