पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०४
हिन्दुस्थानी शिष्टाचार

लूले, लॅगड़े और अन्धे लोगों को सड़क पर मार्ग दिखाने की आवश्यकता हो, तो इस काम में उनकी सहायता करना प्रत्येक सभ्य और शिक्षित व्यक्ति का कर्तव्य है। सवारी में जाने वाले लोगो को इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिये कि उनके वाहनों से रास्ते में आने-जाने वाले दीन-दुखियो को कष्ट न पहुँचे । किसी को अपने सुभीते के लिये ऐसे लोगो को अपने स्थान से हटाना उचित नहीं। कई लोग अपनी प्रभुता मे मत्त होकर दीन-दुखियों के साथ निर्दयी व्यवहार करते हैं, परन्तु ऐसा करना महान् नीचता है। जो दीन-दुखी किसी के यहाँ काम-काज के लिए नौकर रखे जावें उनके साथ भी उदारता और शिष्टता का व्यवहार किया जावे।

धनवान् लोगो का यह कर्तव्य है कि वे अपने नगर अथवा ग्राम के दीन दुखियो की जीविका के लिए अपनी शक्ति के अनुसार कुछ प्रबंध अवश्य करें । जो बेकार लोग शरीर से सशक्त हैं उनको कुछ काम देना धनाढयों का कर्तव्य है। इन्हें अनाथ बच्चो के पालन-पोषण का प्रबंध भी करना चाहिये और जहाँ तक हो सके उनके लिए अनाथालय खोलना चाहिये।

जो कुछ यहाँ दीन-दुखिया के विषय में कहा गया है वही कुछ घटा-बढ़ाकर ग्रामीणों के विषय मे भी कहा जा सकता है। नगर के रहने वाले गांँव वालों को बहुधा बिलकुल मूर्ख समझकर उनकी हंँसी उड़ाते और उनका तिरस्कार करते हैं। शहर वाले कभी-कभी यहाँ तक नीचता करते हैं कि वे ग्रामीण स्त्रियों तक की हँसी उड़ाते हैं। हम लोग दूसरी जाति के लोगो के असभ्य व्यवहार की शिकायत करते हैं, पर यह नहीं सोचते कि हम लोग खुद अपने ही जाति-वालो के साथ इससे भी अधिक असभ्य व्यवहार कर रहे हैं।

परिचित अथवा अपरिचित रोगियों के यहांँ कभी-कभी जाना या उनकी सेवा शुश्रुपा में सहायता देना प्रत्येक सभ्य व्यक्ति का