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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


में शिष्टाचार की छोटी-छोटी भूलों से बहुधा बाधा नहीं पहुँचती, तथापि यही छोटी छोटी बातें एकत्र होकर कभी-कभी बड़ा परिमाण प्राप्त कर लेती है और मित्रता-रूपी बन्धन को ढीला करके तोड़ देती है।

मित्र के साथ व्यवहार करने में उसे ऐसा न जान पडे कि उसके साथ भिन्नता का व्यवहार किया जाता है। मित्र के अनजाने में किये हुए दोषों पर उदारता की दृष्टि रक्खी जावे और उसको अप्रसन्न करने का अवसर सदैव टाला जावे। जहाँ तक हो सच्चे मित्र के साथ सगे भाई का सा व्यवहार करना चाहिये । मित्र के कुटुम्बियो को मित्र ही के समान आदर और प्रेम का पात्र समझना चाहिये । मित्र से जहाँ तक हो छल-कपट का व्यवहार न किया जावे और न उस पर किसी प्रकार का अनुचित दबाव डाला जाये।

मित्रता-रूपी पौधे को सदैव सदाचार-रूपी जल से सींचने की आवश्यकता है। मित्र से कभी अनुचित हँसी न की जावे और न उसे नीचा दिखाने का अवसर लाया जावे । यदि मित्रता भिन्न- भिन्न स्थिति के लोगो में हो तो उन्हें आपस मे ऐसा व्यवहार करना चाहिये जिससे उनकी स्थिति की भिन्नता के कारण भेद-भाव उपस्थित न हो। मित्र के साथ अनावश्यक बाद विवाद करना भी अनुचित है, क्योकि मत-भिन्नता के कारण बहुधा गाढ़ी से गाढ़ी मित्रता भी टुट जाती है। संसार में विद्या और ज्ञान की कोई सीमा नहीं है, इसलिये बड़े से बड़े विद्वान को भी अपनी विद्वत्ता पर अभिमान न करना चाहिये क्योंकि इससे अल्पज्ञान वाले मित्रों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

मित्र के साथ अनुचित विनोद करना भी हानिकारक है। यद्यपि हँसी मजाक साधारण बात है, तथापि इससे बहुधा भयङ्कर परि-