पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१११
छठा अध्याय

मित्र के विरुद्ध चुगली करने वाले लोगो की बातो पर सहसा विश्वास कर लेना उचित नहीं, क्योकि कुछ लोग ऐसे हैं कि उनके मन को दो मनुष्यो के बीच में गाढ़ी मित्रता देखकर ईर्षा होती है। जब तक अनेक उदाहरणों से चुगली में कहे गये अपराधों का कोई पक्का प्रमाण न मिले तब तक मित्र की ओर किसी प्रकार का संदेह न करना चाहिये । अधिकांश चुगलियां झूठ निकलती हैं और उन पर सहसा विश्वास करके कोई धृष्टता कर डालने से बुरा परिणाम होता है । चुगल खोर केवल मित्रता को शत्रुता बनाकर ही सन्तुष्ट नहीं होते, किन्तु शत्रुता को घोर घृणा में परिणत कर देते हैं।

( ६ ) विद्वानों और साधुओं के प्रति

प्राचीन काल से विद्वान पुरुष आदर के पात्र होते आये हैं। जो विद्वान् अनभिमानी और शान्त स्वभाव वाले होते हैं उनका आदर विशेष रूप से किया जाता है। विद्वानो के आदर का प्रधान कारण यह जान पडता है कि उनके पास प्राय सभी प्रकार की विद्यायों और ज्ञान का वह कोप रहता है जिसकी आवश्यकता औरो को पढ़ती है । उनकी आदरणीयता का एक और कारण यह समझ पड़ता है कि उनके समक्ष और मानसिक प्रभाव के कारण अल्प विद्या वाले मनुष्य अपना अल्पज्ञान स्वतंत्रता पूर्वक प्रदर्शित करने की धृष्टता नहीं कर सकते । इतना होने पर भी विद्वानो का यथार्थ मान बहुत कम होता है और इसका एक मुख्य कारण यह है कि अधिकांश विद्वान धनहीन होते हैं।

विद्वानों का मान करने में अवस्था पर विशेष ध्यान न देना चाहिये जिसमें विद्या के साथ अवस्था और स्थिति की श्रेष्ठता हो, वह तो सर्वमान्य है ही, परन्तु जहाँ पिछले दो गुण न हो वहाँ विद्या को ही उचित आदर देना चाहिये । विद्वान के आगे बढ़-चढ़कर बातें करना