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छठा अध्याय


ही नहीं कराते, किन्तु और भी कई प्रकार के अनुचित काम लेते हैं। यदि ये लोग सभ्यता का व्यवहार करें तो गाँव के निवासी अपनी मान मर्यादा भूलकर इनके छोटे-छोटे काम भी प्रसन्नता पूर्वक कर सकते है, पर ये कर्मचारी बहुधा अपनी प्रभुता के अभिमान में पढ़े लिखे लोगो से भी कभी-कभी ऐसा काम करने को कहते हैं जो केवल अनपढ़ नौकर के करने योग्य होता है। ऐसी अवस्था में गाँव के प्रतिष्ठित, शिक्षित और उत्तरदायी सज्जनों का यह काम है कि वे राज कर्मचारियो को अनुचित इच्छाओ का सदैव सभ्यता पूर्वक प्रतिवाद करें और अपनेको उनकी किसी ऐसी सेवा में न लगावें जिसमे गाँव के आत्म सम्मान में कलंक लगे। यदि कोई कर्मचारी अपने अशिष्ट व्यवहार को बंद न करे तो उसकी रिपोर्ट उच्च कर्म-चारियों के पास की जावे, अथवा उसके साथ उदासीनता का ऐसा व्यवहार किया जाये जिससे उसे अपनी भूल पर पछताना पड़े।

(८) पड़ोसी के प्रति

पड़ोसी के साथ प्रेम भाव रखना केवल शिष्टाचार ही की दृष्टि से नहीं, किन्तु उपयोगिता और सहयोग की दृष्टि से भी आवश्यक है। नीति के विचार से भी पड़ोसी के प्रति सद्भाव प्रगट करना उचित है। पड़ोसी चाहे ऊँची जाति का हो अथवा नीची जाति का, धनवान् हो या कड़्गाल, विद्वान हो अथवा अशिक्षित, उसके साथ सदैव शिष्ट व्यवहार किया जावे। कई लोग प्रभुता पाकर बहुधा पड़ोसियों को पीड़ित करने में अपना गौरव समझते हैं, परन्तु उनका यह व्यवहार सर्वथा निन्दनीय है। यदि किसी कारण से पड़ोसी के साथ मित्र भाव स्थापित हो सके तो ऐसी दशा में शिष्ट उदासीनता का व्यवहार करना उचित होगा।

घर बनाने अथवा विस्तार करने में मनुष्य को इस बात की सावधानी रखनी चाहिये कि पड़ोसी को उससे कोई अड़चन अथवा