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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


खेद न हो । कई महानुभाव छल-कपट से अथवा अधिकार के बल पर पड़ोसियों की जमीन दवाने, उनका विस्तार रोकने और अपने निरड़्कुश व्यवहार से उन्हें तङ्ग करने का प्रयत्न करते रहते हैं जिसका,परिणाम यह होता है कि बहुधा दोनो मे कई पीढ़ियों तक शत्रुता चली जाती है। ये सब कार्य मनुष्य की जंगली अवस्था के चिह्न है। उचित तो यह है कि यदि कोई पड़ोसी सभ्य ओर शान्त स्वभाव वाला है तो उसकी सब प्रकार से सहायता को जावे । यदि पड़ोसी का मकान नीचा हो तो अपने मकान से उसके घर की ओर झॉकना अथवा उसे अड़चन देने वाला कोई विस्तार करना अशिष्ट है। पड़ोसी के मकान की ओर छज्जे, खिडकियाँ अथवा नालियों निकालना किसी भी अवस्था मे उचित नहीं है।

पड़ोसी के लड़को-बच्चों पर प्राय अपने ही बच्चों के समान प्रेम-व्यवहार करना चाहिये और पड़ोसी की माँ बहिनों को अपनी माँ-बहिनो के समान मानना चाहिये । समय-समय पर पड़ोसी के यहाँ आना-जाना और उसके उत्सव आदि कार्यों में योग देना शिष्टता का चिह्न है । यदि हो सके तो कभी-कभी उसे भोज नादि के लिए भी निमंत्रित करना चाहिये । यदि पड़ोसी गरीब हो तो मनुष्य को पड़ोसी के आगे अपने धन आदि का ऐसा वैभव न दिखाना चाहिए जिससे उसे आन्तरिक वेदना हो । पड़ोसी के लड़को-बच्चो की उपस्थिति में कोई मनुष्य अपने बच्चों को खाने- पीने की ऐसी चीजें न देवे जिन्हें यह दूसरे बच्चो को न दे सके।

पड़ोसी की बीमारी की दशा में उसकी सहायता करना चाहिये और समय-समय पर उसका समाचार लेना चाहिये। पड़ोस की स्त्रियों की बीमारी में खबर के लिए स्त्रियों का जाना उचित है। यदि पड़ोसी के यहाँ गमी हो जाय तो उसमे भी सम्मलित होना आवश्यक है। निर्धन पड़ोसी की बीमारी अथवा विपत्ति की