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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार

पड़ोसी का महत्त्व इसी एक बात से सिद्ध हो सकता है कि लोग किसी भी दुष्ट अथवा अभिमानी व्यक्ति के पड़ोस में रहना पसंद नहीं करते।

(९) सेवकों के प्रति

सेवकों के साथ शिष्टाचार का व्यवहार करना कई कारणों से आवश्यक है। एक मुख्य कारण तो यह है कि हम अपने शिष्टाचार से सेवकों को स्वाभाविक अशिष्टता को सुधार सकते हैं। नीति की दृष्टि से तो सेवकों का पालन पोषण करना स्वामी का एक प्रधान कर्त्तव्य है । वन को जाते समय रामचन्द्र जी ने अपने दास और दासियो को बुलाकर तथा उन्हें गुरु को सौंपकर कहा था कि “सब कर सार-सॅभर गुसाई । करेहु जनक जननी की नाई ॥"

जहाँ तक हो नौकरो के प्रति कड़ा व्यवहार न किया जावे। उन्हें काम में बार-बार टोकना या उन पर सदा क्रोध करते रहना केवल शिष्टाचार ही की दृष्टि से नहीं, किन्तु उपयोगिता की दृष्टि से भी हानिकारक है। मालिक की रात-दिन की खट-खट से ऊवकर नौकर काम छोड़ देने के लिए तैयार हो जाता है और जिसके यहाँ नौकर बहुधा बदलते रहते हैं उसके विषय में लोग निन्दा करने लगते हैं। ऐसी अवस्था में उचित यही है कि नौकरी के साथ न्याय और दया का बर्ताव किया जावे।

इस बात का प्रयत्न करना आवश्यक है कि नौकर अपना काम मन लगाकर करे; इसके लिए उपयुक्त अवसर पर उसे कुछ पुरस्कार दिया जावे। नौकर की बीमारी और विपत्ति की दशा में भी उसके साथ सहानुभूति प्रकट करने की आवश्यकता है। जहाँ तक हो बीमारी या साधारण गेर-हाजिरी में उसकी तनखाह न काटी जाये । नौकर पर क्रमश विश्वास बढ़ाना चाहिये जिसमे वह अपना काम अधिक सच्चाई से करने का उद्योग करता रहे।