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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


कर्तव्य पालते जावें, तो अछूतोद्धार की समस्या बहुत कुछ हल हो सकती है।

( ११ ) प्रार्थियों के प्रति

अदालतो में प्रार्थियों की प्राय बड़ी दुर्दशा होती है। वहाँ चपरासी से लेकर न्यायाधीश तक और वकील के मुन्शी से लेकर स्वंय वकील साहब तक प्रार्थियों की ओर बहुधा अशिष्टता का व्यवहार करते हैं । किसी किसी न्यायाधीश के विषय में तो यहाँ तक सुना गया है कि वे प्रार्थिनी स्त्रियों तक को गालियाँ देते हैं । कचहरी के अधिकांँश कर्मचारियो की अशिष्टता का एक कारण यह जान पडता है कि वे लोग प्रार्थियों से बहुधा बात बात पर पैसे खींचना चाहते हैं और जब वे इस काम में सफल नहीं होते तब बहुधा अशिष्टता का व्यवहार करने लगते हैं। बहुत दिन के अभ्यास से इन कर्मचारियों का, जिनमे बहुतसे शिक्षित भी होते हैं, स्वभाव बहुधा इतना बिगड जाता है कि वे छोटी छोटी बातों पर भी बड़ी ऐंठ दिखाते हैं । भले से भले आदमी को मूर्ख बना देना इनके लिए एक साधारण बात है। यद्यपि कचहरी के अशिट कर्मचारियो को अपनी ऐंठ की सफलता पर आनन्द होता है, तथापि शिक्षित और सभ्य समाज में इन्हें सच्चा आदर प्राप्त नहीं हो सकता।

अशिष्ट न्यायाधीश को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि वह किसी अपराधी को शिष्ट वचन कहकर दण्ड देगा तो अपराधी दण्ड पाकर भो उस न्यायाधीश की प्रशंसा करेगा। इसके विरुद्ध जो न्यायाधीश कठोर वचन कहकर अपराधी को दण्ड आज्ञा सुनाएगा, वह अपराधी की दृष्टि में दुहरा कठोर समझा जायगा और सम्भव है कि अपराधी आगे पीछे उससे बदला लेने । यदि कोई न्यायाधीश किसी कैदी को फाँसी का हुकुम सुनाने के पश्चात् उससे यह कहे कि “मुझे तुम्हारे प्राण पर